पत्रकारिता: शेर की घेराबंदी में जुटे जंगली कुत्‍ते

दोलत्ती

: आप उसे निपटाना चाहते हैं, क्‍योंकि वह सच बोलता है : झगड़ालू, जिद्दी और बवाली है दृष्‍टांत का संपादक अनूप गुप्‍ता, लेकिन बेमिसाल :
कुमार सौवीर
लखनऊ : यह पत्रकारिता का शेर है। और उसके सामने भौंक रहे हैं जंगली कुत्‍ते और लकड़बग्‍घे। मकसद है कि कैसे भी हो इस शेर को निपटा दिया जाए। शेर के आसपास सब भौंक रहे हैं। चारों ओर घेराबंदी चल रही है। लेकिन सब के सब कुत्‍ते और लकड़बग्‍घे एक सुरक्षित दूरी बनाये हुए हैं इस शेर के साथ। वजह यह कि सभी को पता है कि इस शेर का एक थप्‍पड़ ही उनमें से दस-पांच को एकसाथ निपटा सकता है।
पत्रकारिता जगत में झगड़ालू, जिद्दी और बवाली शख्‍स के तौर पर कुख्‍यात हैं अनूप गुप्‍ता। उनके विरोधी उन पर यह आरोप भी फेंकते हैं कि अनूप गुप्‍ता का मूल धंधा दलाली है। लेकिन उनके साथ अपने संपर्क के दौरान मुझे एक बार भी ऐसा नहीं महसूस हुआ कि अनूप गुप्‍ता दलाली में लिप्‍त हैं। और सिर्फ मैं ही क्यों, अनूप के साथ रहे सभी लोग मानते हैं कि अनूप और चाहे कुछ हों, लेकिन वो दलाल हर्गिज नहीं।
इसके बावजूद अनूप गुप्ता पर कुख्याति का कोहरा काहे फैला रहता है, इसका जवाब तो सिर्फ इतना ही है कि अनूप का अशांत भाव। किसी भी सवाल को वे बिना सुलझाये छोडने को तैयार नहीं होते। और इसके लिए झंझट होना अनिवार्य होता है। ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई जीवन और पत्रकारिता के मूल्यों पर अडिग रहे और उसके खिलाफ घेराबंदी न हो। अपने संकल्पों के साथ अनूप अपने विरोधियों को भी गतिशील बना देते हैं।
अनूप के साथ एक खास बात तो है ही, कि अपने जीवन में कम ही सही, लेकिन बेहतर दोस्त जरूर कमाये हैं। वरना उनका खर्चा चल पाना मुमकिन नहीं होता। ठीक उसी तरह, जैसे मैं कुमार सौवीर। बस फर्क इतना ही है कि मैं भिक्षा मांगता हूं, जो लोग देने से बिदकते हैं। जबकि अनूप सहयोग मांगते हैं, जो उन्हें सहज ही मिल जाता है। वैसे एक बात जरूर है कि खबरों के साथ कठोर परिश्रम जरूर करते हैं अनूप गुप्‍ता। शायद मुझसे भी ज्‍यादा।
हां, झंझट करना उनके खून में शामिल है। चाहे वह सतीश महाना हों, या फिर नवनीत सहगल। जिससे भिड़ गये, तो भिड़ गये। हेमंत तिवारी जैसे बेहूदा, अराजक और दलाल पत्रकारों पर भी अनूप ने जम कर कलम चलायी। बल्कि पत्रकार और नेताओं तथा अफसरों के गंठजोड के खिलाफ भी अनूप ने खूब आग उगली है। यही वजह है कि अनूप गुप्‍ता को लेकर पत्रकार बिरादरी भी उनसे चिढ़ी रहती है, पंगा लिये रहती है। उनके संघर्षशील चरित्र का ही यह परिणाम है कि सरकार ने उनका निरालानगर वाला सरकारी मकान भी बेवजह खाली करा लिया था। मकान खाली कराने के मामले में अनूप गुप्ता कभी भी नवनीत सहगल को माफ नहीं कर पाये। और अपने जीवन के प्राथमिक लक्ष्य के तौर पर ही नवनीत सहगल को अपने निशाने पर रखते हैं। खुलेआम।
तो जाहिर है कि जो अनूप की पत्रकारिता होती है, उसी की प्रतिक्रियास्वरूप होती है उनके विरोधियों की गतिविधियां। अनूप का ताजा विवाद यूपी सरकार के मंत्री सतीश महाना से है। अब चूंकि सतीश महाना यूपी सरकार में खासा दखल रखते हैं, इसलिए उन्होंने अनूप और उनकी पत्रिका दृष्‍टांत को मिटियामेट करने के लिए अपनी कमर कस ली है। हैरत की बात है कि यूपी सरकार के अफसरों की मिलीभगत के चलते मंत्री सतीश महाना ने ऐतिहासिक ढंग से अनूप के खिलाफ विशेष जांच दल यानी एसआईटी गठित करा लिया। इसके तहत अब सरकार ने अनूप गुप्ता की घेराबंदी शुरू कर दी है। उधर एक नया मोर्चा खोलते हुए अनूप गुप्ता और दृष्‍टांत के खिलाफ एक वकील के माध्यम से निराधार तरीके से नोटिस भी जारी करा दी गयी।
इसका अंजाम होगा, इस पर तो चर्चा बाद में होती रहेगी। लेकिन इस पूरे दौरान पत्रकारिता जगत की चुप्पी अपने आप में एक निहायत शर्मनाक मोड पर खडी दिखने लगी है। अपनी बिरादरी के साथ खडे होने के बजाय पत्रकारिता के बडे-बडे दिग्गजों ने पत्रकारिता को ही बेशर्मी से निर्वस्त्र करना शरू कर दिया है। लेकिन इसके बावजूद अनूप गुप्ता के तेवर लगातार धारदार होते जा रहे हैं। मतलब यह कि शेर को अब ऐसे कुत्तों और लकडबग्घों से डर नहीं लगता। वह ऐसे प्राणियों से निपटने को तैयार हैं। (क्रमश:)

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