कसम से, यह रिपोर्टर तो एमडी का भोंपू बन गया

दोलत्ती

: दोलत्ती टीम ने तजबीज किये हैं तीन दर्जन सवाल : यह सवाल सीधे एमडी से पूछो, पूरा मामला खुल जाएगा : खबर लिखना और दलाली करना अलग-अलग प्रोफेशन है- 3 :
कुमार सौवीर
लखनउ : (गतांक से आगे) जब चौकीदार ही बिक जाएगा, तो फिर क्या बचेगा। खास तौर पर वॉच-डॉग। यही हालत हो गयी है पत्रकारिता की, और वह भी पत्रकारिता के निर्विवाद स्तम्भ अमर उजाला की। उप्र सडक परिवहन निगम में हुए 38 करोड रूपयों के घोटाले में जिस तरह की खबरें अमर उजाला ने प्लांट की हैं, वह स्तब्धकारी ही हैं।
इस पूरे मामले को हमने सिलसिलेवार हस्तक्षेप किया है और इस घोटाले की पर्द-दर-पर्द खबरें श्रंखलाबद्व ढंग से प्रस्तुत करते रहे हैं। इस मामले से जुडी खबरो को देखने के लिए यदि आप इच्छुक हों तो निम्न न्यूज लिंक पर क्लिक कर सकते हैं।

परिवहन निगम: 38 करोड फंसा, कहानी सुना रहे हैं एमडी
परिवहन निगम: अमर उजाला की करतूत, यकीन नहीं होता

सूत्र बताते हैं कि इस खबर में निगम के प्रबंध निदेशक से इस रिपोर्टर ने बहुत सतही और बेहूदा अंदाज में पेशबंदी की। यह साबित करने की कोशिश की कि निगम के अफसर दरअसल दूध के धुले हैं, वे बहुत समझदार और सतर्क भी हैं। इतना ही नहीं, परिवहन निगम के हितों को लेकर निगम के आला अफसरों की टीम पैनी नजर से निगहबानी करती है।

लेकिन इस पूरी मूर्खतापूर्ण खबर में इस अखबार के रिपोर्टर नरेश शर्मा ने यह सवाल ही नहीं उठाये जो हमारे दोलत्ती सूत्र कहते हैं। सूत्रों द्वारा उठाये गये सवालों के मुताबिक निगम के एमडी राजशेखर से इन सवालों को सिलसिलेवार पूछा ही जाना चाहिए, ताकि यह साबित हो पाता कि इस अखबार के रिपोर्टर का मकसद इस खबर के माध्यम से निगम के अफसरों की दलाली करना नहीं, बल्कि सच को खोद-खोद तक आम पाठक तक पहुंचा देना ही है।
1- यह पैसा किस मद का था ?
2- उस रकम को किन राष्ट्रीय बैंकों से किन निजी बैंकों को ट्रांसफर किया गया ?
3- कब और किस चरणबद्व तरीके से जमा किया गया था पैसा इन बैंकों में ?
4- प्रस्ताव किस अधिकारी की सिफारिश पर हुआ या बोर्ड का फैसला था ?
5- उस ट्रांसफर की जरूरत क्यों आ पडी ?
6- उस ट्रांसफर से निगम को क्या लाभ हुआ ?
7- किस-किस बैंक और किस शाखा में जमा था ?
8- बैंकवार और शाखावार जमाओं का ब्योरा दीजिए ?
9- यस बैंक को चार चरणों में क्यों जमा किया 423 करोड ?
10- निजी बैंक के लिए राष्ट्रीय बैंक से एफडी क्यों तोडी गयी ?
11- नयी बसें खरीद करने के बजाय उसे बैंक में क्यों रखा गया ?
12- पूरी समयावधि में मिले ब्याज और बसों की कीमत में आयी उछाल का फर्क ?
13- 38 करोड रूपया किस शाखा में किस तारीख को जमा किया गया ?
14- इस ट्रांस्जेक्शन के लिए तैयार मसौदा में हेरफेर किस अफसर ने की और उसे किन-किन शीर्षस्थ अधिकारियों ने देखा और जांचा ?
15- इस ट्रांसफर के लिए प्राधिकारी अधिकारी कौन था और उसकी सूचना किस उच्च स्तरीय अधिकारी को होती थी ?
16- पैनी निगाह रखने अफसरों को 38 करोड की फंसी रकम क्यों नहीं दिखी ?
17- बिचौलिया टीम कौन है जिसने अधिक ब्याज वे खुद के लाभ के लिए यह सौदा कराया ?
18- एमडी राजशेखर को 2019 को यह खबर कब मिली और उसके बाद कार्रवाई क्या हुआ ?
19- एफडी को कभी भी तोडने का प्राविधान किस स्तर के अधिकारी ने हटाया ?
20- एआरएम जैसे पिद़दी अफसर के पास क्या ऐसे आर्थिक फैसले होते हैं ?
21- रकम पर निगरानी के लिए तो फाइनेंस कंट्रोलर जैसा दिग्गज अफसर भी होता है, क्या वह भी खर्राटे भर रहा था ?
22- किस स्तर का अफसर एफडी के मामलों पर अंतिम फैसला लेता है ?
23- क्या प्रबंध निदेशक स्तर का अधिकारी की इस मामले में कोई भी जिम्मेदारी नहीं होती है ?
24- जब एफडी तोडने का प्राविधान नहीं है, तो अब निगम को यह रकम कैसे वापस मिलेगी ?
25- प्रबंध निदेशक का नौकर तो है नहीं यस बैक का मैनेजर, ऐसी हालत में उसे वापस दिलाने का पत्र भेजने का औचित्य क्या था ?
26- इस खबर में अमर उजाला के रिपोर्टर ने न जाने यह सवाल उछाला है कि अब सवाल यह उठा रहा है कि यह खेल किस के इशारे पर खेला गया ?
27- घोटाला करने वाले या वालों का नाम क्या है और उन पर क्या कार्रवाई होने जा रही है ?
28- इस मामले को निगम ने देखा और कब कब उस पर दोषी अफसरों की जिम्मेदारी तय करने के लिए क्या कार्रवाई की। मामले की जांच कौन कौन अफसर कर रहा है ?
जांच के लिए क्या-क्या बिन्दु तय किये गये हैं ?
29- जांच कब पूरी होगी ?
30- उसमें क्या अडचनें आ रही हैं ?
31- जिन अफसरों ने अपने जवाब दे दिये हैं, जवाब में उनका क्या तर्क है ?
32- अगर जांच में विलम्ब हो रहा है तो उसका कारण क्या है ?
33- प्राथमिक स्तर पर दोषी ठहराये जाने के बावजूद एआरएम समेत बाकी अफसरों पर क्या कार्रवाई की गयी है और अगर अब तक कोई भी कार्रवाई नहीं हुई है तो उसका कारण क्या है ?
34- और आखिरी सवाल तो अमर उजाला अखबार के संपादक को अपने रिपोर्टर नरेश शर्मा से पूछना चाहिए कि उसने इस मामले में खबर लिखने से पहले किस-किस अफसर से जांच-पडताल की, और उनसे पूछताछ के दौरान उसने सहज सवालों को इग्नोर क्यों किया ?
अरे यार यह तो पता चले कि तुम अफसरों को बचाने की कवायद में जुटे हो, या फिर पाठकों के सामने इस घोटाले के हर एक पहलू को पर्दाफाश करना चाहते हो।
प्रबंध निदेशक से पूछना चाहिए कि उस अफसर के नाम क्या है ? (क्रमश:)

उप्र सडक परिवहन निगम में हुई इस भारी धोखाधडी और उसके लेकर आला अफसरों की करतूतों पर दोलत्ती की कडी नजर है। हम जल्दी ही इस मामले को लगातार श्रंखलाबदध खबरें पेश करने जा रहे हैं। उससे जुडी खबरों को देखने के लिए कपया दोलत्ती डॉट कॉम पर क्लिक करते रहियेगा। और हां, आपको निगम की करतूतों से जुडी बाकी सूचनाएं हैं और आप हमसे किन्हीं मामलों पर खबरों को दोलत्ती डॉट कॉम के साथ शेयर करना चाहते हैं तो हमारा सम्पर्क फोन नम्बर:9453029126, 8840991189 है। अगर आप चाहेंगे तो हम आपका नाम, परिचय वगैरह पूरी तरह गुप्त ही रखेंगे।

कुमार सौवीर

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