सुशांत-कोण: बाराबंकी के कप्‍तान ने जुटायी पांच किलो अफीम

दोलत्ती


: वरिष्‍ठ पुलिस अफसर ने मांगी थी अफीम की भारी-भरकम खेप : दावा था कि छुटभैयों को अफीम-पुडि़या के साथ जेल में ठूंसा जाएगा : रिया-दीपिका सी नन्‍हीं मछलियों की क्‍या बिसात खूंखार मगरमच्‍छों की भीड़ में? :

कुमार सौवीर

लखनऊ : सुशांत सिंह के मामले में रिया से लेकर दीपिका समेत पूरे बॉलीवुड की जो छीछालेदर हो रही है, वह अभूतपूर्व है। ओछे घिनौने आरोप-प्रत्‍यारोप लग रहे हैं कि लगता ही नहीं, हम किसी सभ्‍य समाज का हिस्‍सा हैं। चटखारों का दौर है। कोई बॉलीवुड को नशेड़ी करार दे रहा है, तो कोई गर्म-गोश्‍त का काला धंधा कह रहा है। कोई बॉलीवुड को माल का सप्‍लायर कह रहा है, तो कोई उसे खुद ही माल साबित करने पर आमादा है। दुर्गति की हालत यह है कि राज्‍यसभा तक में यह मसला भड़क चुका। लोगों के निजी कमरों और रिश्‍तों के चेहरों पर कालिख पोती जा रही है। बहन, बेटी और पोती तक नंगी की जा रही हैं। मीडिया बेशर्मी पर है और ऐसा प्रमाणित करने में जुटा है कि देश में कोरोना, जीडीपी, बेरोजगारी जैसी आपदाओं पर भी बॉलीवुड सबसे बड़ा सवाल है। कहने की जरूरत नहीं कि यह मीडिया की ऐसी हरकतें पेड-न्‍यूज का साफ इशारा कर रही हैं जिसमें क्षेत्रवाद और कई राज्‍यों में आसन्‍न चुनाव की गतिविधियां भी प्रमुख कारक हैं।

सुशांत की मौत के बाद सीबीआई के बाद नाटकीय घटनाक्रमों में फिलहाल सर्वोच्‍च पायदान पर है नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो। लेकिन सच बात तो यही है कि इस मामले में शीर्षस्‍थ पुलिस अफसरों की भूमिका केवल नाटकीय ही नहीं, बल्कि मादक-उपलब्‍धकर्ता से भी भी गम्‍भीर होती है। यूपी पुलिस में तो कई अफसर ऐसे शामिल रह चुके हैं, जो जाने-अनजाने मादक पदार्थों का आदान-प्रदान करने में अपनी भूमिका अदा करते रहे हैं। छोटे अफसरों से बड़े अफसर मादक पदार्थ मंगवाते हैं। दावा किया जाता है कि छुटभैया किस्‍म के अपराधियों को नाथने के लिए यह मांग की जाती है। ऐसा हो भी सकता है कि पुलिसवाले समाज में घूम रहे अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को मादक पदार्थ रखने के आरोप में समाज से बाहर खींच कर उन्‍हें जेल के सीखचों में बंद कर दें। लेकिन जिस शैली में यह आदान-प्रदान होता है, उससे शंकाएं तो खूब उबलती हैं। खास कर यह कि एकाध पुडि़या स्‍मैक, गांजा या अफीम में चिरकुट लोगों को नाथने के लिए जो काम किसी दारोगा से हो सकता है, उसके लिए भारी-भरकम मात्रा में मादक पदार्थ मंगवाना और उसे भिजवाना अपने आप में ही मादक पदार्थ की तस्‍करी से कमतर नहीं, बल्कि उसे भी ज्‍यादा भयावह अपराध होता है। उसकी गम्‍भीरता का अंदाजा इसी बात पर लगाया जा सकता है कि यह डील में कप्‍तान से लेकर आईजी तक की हिस्‍सेदारी है।

बाराबंकी का एक वाकया मुझे आज भी याद है। यह घटना करीब दो-ढाई दशक पुरानी है। मैं एक मामले में बाराबंकी के पुलिस अधीक्षक से मिलने गया था। सर्दियों के दिनों की कोई गुनगुनी दोपहर का वक्‍त रहा होगा, जब बातचीत करने मैं उनके आवास पर पहुंचा। फोन पर समय पहले ही ले चुका था। शौकीन मिजाज वाले कप्‍तान अपने आवास में एक खूबसूरत झोंपड़ीनुमा बैठक में बैठे कामकाज निपटा रहे थे। यह हमारी पहली भेंट थी। बातचीत अभी कुछ मिनट ही हो पायी थी, कि अचानक फोन बज गया। फोन पर हलो बोलने के बाद वे सरकारी पुलिसिया शैली में अचानक सजग और चैतन्‍य हो गये। कुछ क्षणों के बाद कप्‍तान ने जयजयकारा लगाया:- जय हिंद सर

उसके बाद तो फिर कृपा सर, सही सर, जी सर, ओके सर, अभी सर, बिलकुल सर, फौरन सर जैसे संतुलित वाक्‍य ही बोलते रहे कप्‍तान साहब। दो-चार मिनट तक यही सर-सराहट करने के बाद उन्‍होंने फोन का चोंगा क्रेडिल पर रख दिया। और फिर मुझे देख कर हल्‍की खीझ और झुंझलाहट मिश्रित मुस्‍कुराहट के साथ बोले कि हम सरकारी नौकरी में हैं।

अब अगर मैं उनके इस लहजे पर कोई प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त नहीं करता, तो शिष्‍टता का तकाजा ही टूटने लगता। लिहाजा मैंने अनमने-पन के साथ पूछ ही लिया कि:- क्‍या बात है, क्‍या हो गया है?

मेरे इस सवाल से मानो उनके मन में भरी गैस खुल गयी। वे बोलने लगे, बताने लगे। उनके कहने का तात्‍पर्य यही था कि उनके सीनियर अफसर कई बार ऐसी बातें कहते हैं, ऐसी ख्‍वाहिशें करते हैं, या फिर मांग कर बैठते हैं कि कुछ समझ में ही नहीं आता है कि क्‍या किया जाए। दरअसल उन्‍होंने बताया कि उनके सीनियर पुलिस अफसर ने उनसे अफीम की मांग की है। वह भी दस-बीस ग्राम या एकाध किलो नहीं, बल्कि पूरा का पूरा पांच किलो। जी हां, बाराबंकी के पुलिस अधीक्षक से पांच किलो अफीम चाहता था वह वरिष्‍ठ पुलिस अफसर। मैंने पूछा कि वह अफसर इतनी अफीम का क्‍या इस्‍तेमाल करेंगे, इस पर कप्‍तान ने गदगद और प्रफुल्लित भाव में मुझे बताया कि पुलिस का काम ही हर तरह की डील करना होता है, मजबूरी है। मान लीजिए कि किसी शातिर अपराधी को सींखचों में बंद करना हो, तो फिर उसके पास दस-पांच ग्राम की पुडि़या बरामद दिखा कर जेल भेजना ही इकलौता रास्‍ता यही है। इसके बावजूद मैंने पूछा कि बाराबंकी तो देश में अफीम उत्‍पादक क्षेत्र के तौर पर सर्वाधिक कुख्‍यात है, जहां हेरोइन जैसे मादक पदार्थ तक बनाये जाते, विदेशों में तस्‍करी के लिए दुबई तक के कनेक्‍शन हैं बाराबंकी का। यहां का टेरा और टिकरा जैसे अत्‍याधुनिक गांव केवल अफीम की तस्‍करी के बल पर पनप रहे हैं। आप तो जिले के पुलिस कप्‍तान हैं, और आपका काम गली से लेकर अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर तक के अपराधियों को निपटाना है, लेकिन आप खुद कैसे पांच किलो अफीम की व्‍यवस्‍था करेंगे ? मेरे सवाल पर एसपी साहब मुस्‍कुराते हुए बोले:- अरे सब मैनेज हो जाता है।

जाहिर है कि मुझ में अब तक सवालों के बवंडर घूमने लगे थे। मैंने पूछा कि आखिरकार यह अफसर कौन है, जो प्रतिबंधित अफीम जैसे पदार्थ को गैरकानूनी तरीके से मांग रहा है ? इस सवाल पर उस पुलिस प्रमुख ने बात ही टाल दी।

जाहिर है कि किसी कप्‍तान से इस तरह की मांग डीआईजी नहीं कर पायेगा। इसके लिए कम से कम आईजी स्‍तर की अफसरी की जरूरत पड़ती होगी। मेरा माथा घूमने लगा था। सवाल थे कि यह मांग कौन आईजी कर रहा होगा? क्‍या क्षेत्रीय स्‍तर पर तैनात आईजी, या फिर किसी विशेष मुहिम में लगा आईजी स्‍तर का अफसर? जो काम दारोगा आसानी से कर सकता है, उसके लिए अगर कोई वरिष्‍ठतम स्‍तर का पुलिस अफसर संलिप्‍त है, तो मामला वाकई गम्‍भीर बन जाता है। होने को तो यह भी हो सकता है कि पांच किलो अफीम को तोहफा-डाली के तौर पर कुबूल लिया जाए। या फिर उस अफीम का इस्‍तेमाल छुटभैये बदमाशों को बुक करने के बजाय तस्‍करों के हाथों तक पहुंचा दिया जाए।

ऐसी हालत में जब पुलिस के ऐसे बड़े जिम्‍मेदार अफसर ऐसे मादक पदार्थों का खुला आदान-प्रदान कर रहे हों, तो रिया और दीपिका पादुकोण जैसी नन्‍हीं झींगा जैसे कीड़ों या मछलियों की बिसात क्‍या है? उनकी औकात क्‍या है, जब बड़े-विशाल और खूंख्‍वार मगरमच्‍छ ताक में घूम रहे हों?

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