: दलित-ब्राह्मण में कुकुर-झौंझौं, महिलाओं की हालत द्रौपदी सी : दलित-पत्रकारिता में राजेद्र अपना खूंटा सलामत रखने की जद्दोजहद में जुटे : हेमंत तिवारी की पहचान धंधेबाज, घटिया और कलंक। राजेंद्र ने हेमंत की नस दबोच डाली : राजेंद्र का तो पता नहीं, लेकिन हेमंत की पत्नी निहायत शालीन :
कुमार सौवीर
लखनऊ : पत्रकारिता के मामले में लखनऊ का नाम अब दलित-सवर्ण, गुंडागर्दी, अराजकता और परस्पर झोंटा-नुचव्वर के अलावा आला अफसरों के नाम पर चल रही पत्रकारों की छीछालेदर के तौर पर बन चुका है। इन मामलों में सबसे बड़े गुंडे का नाम माना जाता है हेमंत तिवारी। लेकिन हेमंत तिवारी का कद एक दलित राजेंद्र गौतम ने उसे घुटने के बल तक कम कर डाला है। कहने की जरूरत नहीं कि अपनी ऐसी छीछालेदर कराने की शुरुआत हेमंत तिवारी ने खुद कर दी। मामला अब थाने, कचेहरी और धर्म तथा जाति तक पहुंच गया है। अपनी ही करतूत के चलते हेमंत तिवारी ने अपने और राजेंद्र गौतम की पत्नी और उनके घरवालों तक को सड़क पर घसीट लाने की शुरुआत कर दी है।
हालत यह है कि हेमंत तिवारी ने पुलिस और प्रशासन को अपनी चेरी-नौकरानी साबित करने के चलते कानून को माखौल बना डाला है, तो जवाब में राजेंद्र गौतम ने हेमंत तिवारी को उनकी औकात में लाने का अभियान छेड़ दिया है। फिलहाल तो यह दोनों ही लोग आपस में कुकुर-झौं-झौं में जुटे हैं। लेकिन इसमें उनके परिवार की महिलाओं को द्रौपदी के तौर पर पेश किया जा रहा है। कहने की जरूरत नहीं कि इसकी शुरुआत खुद हेमंत तिवारी ने ही की है।
लखनऊ की पत्रकारिता में हेमंत तिवारी का नाम केवल एक धंधेबाज, घटिया और कलंक के तौर पर जाना-पहचाना जाता है। किसी शातिर और छिछोरे गुंडे की तरह अक्सर शराब पीकर सड़क-चौराहा के ढाबों पर गाली-गलौज करना, आला आईएएस और आईपीएस अफसरों के साथ करीबी संबंधों के नाम पर छुटभैया पुलिसवालों पर रौब गालिब करना, पत्रकारों की मान्यता समिति को गुटों, धर्म और जाति के तौर पर सर्वनाश कर दिया हेमंत तिवारी ने। एक लाइन में अगर यह कहना हो तो पत्रकारों का चरित्र, पहचान और पत्रकारिता को रसातल तक गिरा डालने वाले व्यक्ति के तौर पर एक मुकम्मिल पहचान है हेमंत तिवारी की। सचिवालय और डीजीपी ऑफिस में बड़े-बड़े अफसरों के बीच अपनी घिनौनी घुसपैठ रखने वाले लोगों में अव्वल है हेमंत तिवारी।
हेमंत तिवारी के बारे में हाल ही एक खबर राजेंद्र गौतम ने अपने अखबार दिव्य संदेश में छापी थी। इस खबर में राजेंद्र गौतम ने हेमंत तिवारी की सारी काली-करतूतों का खुलासा कर दिया था। उन्होंने हेमंत तिवारी को मिले सरकारी मकान, उसके बिजली के बकाया और दीगर मामलों का खुलासा करते हुए हेमंत तिवारी की कमजोर नसों को कस कर भींच लिया था। बताते हैं कि इससे नाराज हेमंत तिवारी ने हजरतगंज कोतवाली में एक एफआईआर दर्ज करायी थी, जिसमें राजेंद्र गौतम, उनकी पत्नी और उनके कर्मचारियों को भी अभियुक्त बनाया था। लेकिन बताते हैं कि इस एफआईआर को थाने के रजिस्टर से बाहर नहीं लाने की साजिश भी की थी हेमंत तिवारी ने। मगर इतने से भी हेमंत तिवारी का मन नहीं भरा, तो उन्होंने राजेंद्र गौतम और उनके परिवारीजनों को अदालती नोटिस भी जारी कर दिया।
जाहिर है कि इससे राजेंद्र गौतम भड़क गये। राजेंद्र गौतम के लिए यह पहचान का संकट था, क्योंकि दलित-पत्रकारिता में राजेद्र अपना खूंटा सलामत रखने की जद्दोजहद में रहते हैं। खबर है कि एक दिन पहले उन्होंने हेमंत तिवारी, उनकी पत्नी और उनके बेटे के खिलाफ हजरतगंज कोतवाली में ही दलित-उत्पीड़न का एक मुकदमा दर्ज करा लिया। कहने की जरूरत नहीं कि राजेंद्र गौतम शुरू में हेमंत तिवारी के गुट में ही शामिल थे। लेकिन बाद में उन्होंने अपना पल्ला हेमंत के गुट से अलग कर दिया। लेकिन यह अलगौंझा होने का मूल कारण क्या रहा है, इसका खुलासा अब तक नहीं हो पा रहा है। हालांकि यह सच है कि हेमंत तिवारी कई पत्रकारों को फोन पर गालियां और धमकियां देने में खासे कुख्यात रहे हैं। इसके बावजूद चाहे कुछ भी रहा हो, लेकिन हेमंत तिवारी ने कभी भी फोन या पीठ-पीछे मेरे बारे में कोई भी ऐसा कुकर्म नहीं किया है, जिसे सुन कर मैं अपने जूते लेकर हेमंत तिवारी के सम्मुख पहुंच जाने पर बाध्य हो जाऊं।
लेकिन इतना जरूर है कि इस मामले में इन दोनों का ही अहं टकराया हुआ है, मगर इनके अहं के चलते इन दोनों ही परिवारों की महिलाओं को कानून-कचेहरी में घसीटा जाएगा। राजेंद्र गौतम की पत्नी के बारे में तो मुझे कोई जानकारी नहीं है, लेकिन इतना जरूर है कि हेमंत तिवारी भले ही कितने निकृष्ट और अराजक हों, लेकिन उनकी पत्नी का स्वभाव ऐसा कत्तई नहीं है, जैसा राजेंद्र गौतम ने अपनी रिपोर्ट में लिखाया है। लेकिन सच तो यही है कि यह दोनों की ही एफआईआर केवल उनके अहंकार का नतीजा भर हैं, न कि किसी घटना-विशेष। साफ कहें तो केवल एक-दूसरे पर रौब गालिब करने की कवायद मात्र हैं यह रिपोर्ट। सत्यता से कोसों दूर।