: 72 छेदों वाली चलनी में बड़े पहिया को निहारने का पाखंड, तैयारी जोरों पर : तनिक सोचियेगा जरूर कि इस पूरे आडंबर में आपकी भूमिका किसी क्रीत-दासी सी है या नहीं : हावर्ड फास्ट के विश्वप्रसिद्ध आदि-विद्रोही उपन्यास वाले गुलामों के सारे दुख, कष्ट, अवसाद और स्वप्नहीनता व इच्छा से उल्लास खोने की दास्तान करवा-चौथ की महिला :
कुमार सौवीर
लखनऊ : पहले तो यह तय कर लिया जाए कि स्त्री और पुरुष किसी दाम्पत्य का रथ का मूल होता है दोनों स्तर का पहिया अथवा नहीं। कोई छोटी है या बड़ी, किसी की औकात किसी से बेहतर है या कमतर, या फिर बराबर की जिंदगी वाले दाम्पत्य और परिवार में किस पहिया की औकात ज्यादा होती है या कम एक पहिया दूसरे पहिया का पूरक है या नहीं। और अगर पूरक है तो इनमें से किसी एक का दूसरे से कम होना उचित है या नही। दोनों ही पहिए जिंदगी को संभाल लेने या उन्हें बर्बाद करने के लिए बराबर का जिम्मेदार हैं या नहीं। और अगर ऐसा नहीं है तो बात बिल्कुल बेबुनियाद है कि प्रत्येक परिवार में दांपत्य सम्बन्धों रूपी पहिया पर एक कोई न कोई बड़ा पहिया होता ही है, जो दूसरे पहिया से घटिया और छोटा ही होता है। और अगर और उनमें अगर कोई छोटा बड़ा है तो फिर वह बराबरी का दावा और पाखंड कैसे कर सकता है। ऐसी हालत में अगर दांपत्य जीवन रथ है तो फिर ऐसा रथ हमेशा लगड़ा, अपाहिज, डिसबैलेंस्ड और अराजक ही रहेगा। और कहने की जरूरत नहीं किस पहिया की सबसे बुरी स्थिति किसी स्वस्थ पर रथ पर ही थोपी जाएगी।
आप कैसे परिवार रूपी रथ की हिमायत करना पसंद करेंगे ? ऐसा एक पहिया, जो अपने बड़े पहिया को मनचाहे तरीके से किसी भी गड्ढे में कुदा है या आसमान में लटकाए और लगातार कोशिश में लग रहता हो। बड़का पहिया अपने छोटा पहिया को हमेशा छोटा ही बनाये रहे। इतना ही नहीं, बल्कि नए बनने वाले रथ रूपी दांपत्य संबंधों को घटिया और बेहूदा बनाए रखने आमादा रहा परिवार रूपी रथ का बड़ा पहिया लगातार अपने बड़प्पन का प्रदर्शन करता रहे और छोटा पहिया बात-बात पर बड़े पहिया का मुंह ताकता है। बेहद दीन-हीन भाव में, किसी भिक्षु-भाव में, जिसे भिक्षा तब नहीं मिल पायेगी, जब तक बड़ा पहिया की इच्छा नहीं मिल सकेगे। छोटा पहिया हमेशा बड़े पहिया के इशारे पर घूमता, चलता और लगभग करता रहेगा, अनुगामी बना ही रहेगा छोटा पहिया। इसमें सवाल का कोई स्थान ही नहीं होगा। बड़ा पहिया का आदेश ही छोटे पहिया का ऑक्सीजन और उर्जा होगा, उसके अलावा कुछ भी नहीं, तनिक भी नहीं।
बदहाली की हालत यह होगी कि जहां-तहां धक्के बर्दाश्त करता रहेगा छोटा पहिया, और बड़े पहिया के सामने हमेशा अपने छोटे पहिया होने का घटियापन के सामने अपने बड़े पहिया के सामान साष्टांग समर्पित बना रहेगा। वह लगातार बड़े पहिया के सामने अपने आप को सबसे छोटा दीन-हीन, अपाहिज, असहाय बनाए रखेगा और बात-बात पर बड़े पहिया को अपना सर्वश्रेष्ठ और सर्वशक्तिमान भगवान बनाए रखे हुए उसके सामने नहीं, बल्कि उसके चरणों में हमेशा झुक कर बात करेगा, उसकी आज्ञाओं का पालन करता रहेगा और बड़ा पहिया की खुशी में ही अपनी खुशी को समझता रहेगा। और उसी को अपना सर्वस्व न्योछावर करता रहेगा। अपनी अस्मिता और अपनी खुद्दारी को हमेशा-हमेशा के लिए जल-प्रवाहित कर देगा।
खुद को अपना दास यानी जर-खरीद नौकर ही समझता रहेगा, जीवन भर और जीवन के बाद भी उसके खुद के कोई भी अपने सपने न तो होंगे और अगर कोई सपना होगा भी तो, केवल वही होगा जो बड़ा पहिया उनके प्रति सोचता रहेगा। छोटा पहिया हमेशा और लगातार ही बड़े पहिया का चरण-स्पर्श करता रहे, उसके पैर दबाता रहे, उसकी प्रत्येक आज्ञा को अपना हर कीमत पर निपटाने का दायित्व रहे। खुद भले स्वस्थ न हो, लेकिन बड़ा पहिया के एक काम को खुश रखना उसका सबसे बड़ा सपना हो। केवल बड़ा पहिया की सोचे और लागू करें जबकि छोटा पहिया अपने किसी भी सपने को साकार करने सोच भी न सोचे। बड़ा पहिया के हर आदेश पर ही साचे और उसके प्रत्येक आदेश को ही कोई अपना जीवन का एक सत्य और सर्वोच्च संकल्प और नियम ही मानता रहे। खुद भूखा रहे और बड़े पहिया को भरपेट छकाये रखे। बड़ा पहिया के लिए हमेशा सोचे, और मनौती भी मानता रहे। बड़ा पहिया हमेशा खुश रहे, सैकड़ों साल जीवित रहे, स्वस्थ रहें जबकि छोटा पहिया की जिन्दगी की हर-एक सांस बड़े पहिया के इशारे पर ही ले और छोड़े। दाम्पत्य, परिवार और उसके जीवन के हर छोटे-मोटे सपनों पर मजबूत ताला लगा रखे, जैसे किसी गधे के पिछले दोनों पावों को रस्सी से बांध लिया जाता है, घोड़े की नाम पर लगाम बांधी जाती है, और बैलों के गले पर घंटी और नाक पर नकेल बांधी जाती है। लेकिन उसके कांधों पर जुआ बांधा जाता है।
यही तो है हावर्ड फास्ट का विश्वप्रसिद्ध ग्लैटियर, हिन्दी में आदि-विद्रोही। इस उपन्यास में गुलाम को सारे दुख, कष्ट, अवसाद और स्वप्नहीनता अथवा अभी भी इच्छा न होने का हत्यारा-भाव भर दिया जाता है।
खैर, फिलहाल तो करवा-चौथ का पर्व है। यह बाद में सोच लिया जाएगा कि यह करवा-चौथ की अवधारणा कैसे सोची गयी, कैसे साकार की गयी, उसका तर्क क्या था, उसकी रणनीति किसकी थी, इसमें पुरोहित और जजमान कौन-कौन थे और कैसे तथा किस आधार पर बुनाये गए थे ? और सबसे बड़ी बात यह है कि यह किसी उत्साह के तौर पर कैसे पेश किया गया ? जब कोई पति-पत्नी अपने दाम्पत्य-संबंध में किसी रथ के दो पहियों की तरह होते हैं, तो उसमें क्यों दिन भर भूखा रहता है, निर्जला रहता है और क्यों दूसरा मुस्टंडा पहिया दिन भर छुट्टा सांड़ की तरह जहां-तहां चरता और दुंदवाता ही रहता है ? प्रेम, समर्पण, आस्था, अपेक्षा और दूसरे में समर्पित करने का भाव क्या छोटे पहिया के ही खाते में धंसा रहता है ?
आज तो आप आज बहुत बिजी होंगी, 72 छेदों वाली चलनी में बड़े पहिया को निहारने में व्यस्त होंगी, तैयारी में होंगी। ऐसे में आज तो आपको समय मिल ही नहीं सकता है। लेकिन मेरी गुजारिश जरूर है कि कल से अपनी इस हैसियत और औकात पर दृष्टिपात जरूर कीजिएगा, कि इस पूरे आडंबर में आपकी भूमिका एक किसी क्रीत-दासी सी है या नहीं ?