: ऐसे जजों ने ही पूरी ज्यूडिसरी को मजाक में तब्दील कर दिया : जिला जज की गाड़ी में हर ओर चस्पां है जिला जज : दोनों नम्बर-प्लेट, अगले शीशे पर और पिछले शीशे पर दो ओर ऊपर चस्पां कर रखा है जज का लोगो : सीतापुर से लखनऊ की सड़क पर फर्राटा भर रही है यूपी-81 नम्बर की स्विफ्ट-डिजायर :
कुमार सौवीर
लखनऊ : सुप्रीम कोर्ट के जज चंद्रचूड़ ने एक मुकदमे की सुनवाई के दौरान हाल ही यह कहा था कि जजों पर मानहानि की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, जो एक खतरनाक संकेत भी है। न्यायपालिका के किसी अधिकारी पर ऐसे कोई भी आरोप लगाने के पहले लोगों को बचना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के ही कुछ अन्य जज भी कई बार ऐसे कमेंट कर चुके हैं। यह हो सकता है कि ऐसे आरोपों से न्यायपालिका के अधिकारियों का मनोबल और चरित्र पर धब्बा पड़े। लेकिन यह सच भी तो है कि कुछ ऐसे जज भी हैं, जो अपनी करतूतों से बाकी ज्यूडिसिरी के अफसरों पर धब्बा डालने पर आमादा हैं।
ऐसे ही जिला जज लिखी एक कार कल लखनऊ की सड़कों पर फर्राटा भरते दिखायी पड़ी। कार है सिल्वर कलर वाली स्विफ्ट-डिजायर। भटौली से बहुत तेजी से फर्राटा भरती यह कार मुझे बहुत तेज टेक-ओवर कर गयी। जाहिर है कि मैं चकित हो गया। उस कार को देखा तो उसकी नम्बर प्लेट पर यूपी-81 एएक्स 7969 लिखा था, लेकिन उसी पर मोटे हर्फों में लाल रंग में जिला जज भी लिखा हुआ था। फिर मेरी नजर कार के पिछले शीशे पर गयी, तो मैं चौंक गया। उसकी दोनों ही ऊपरी ओर जज का लोगो चिपका हुआ था।
मैं चौंका। कार को भगाया, लेकिन वह लगातार आगे ही बढ़ा रहा। मैंने इस कार के फोटो खींच लिये। पुरनिया चौराहे पर मैं आगे बढ़ पाया, तो देखा कि इसकी अगली नम्बर-प्लेट पर भी जिला जज लिखा हुआ था। इतना ही नहीं, हैरत की बात है कि इसकी विंड-स्क्रीन के सबसे बायीं ऊपर ऊपर भी जज का लोगो चिपका हुआ था। अजब है कि इस कार पर लगे सारे के सारे लोगो कार के भीतर और बाकायदा प्रिंटेड ही थे। मैंने अपने मित्र से कार की फोटो खींचने को कहा, लेकिन उस भागती कार में एक भी फोटो साफ नहीं आयी।
कानून और नियम है कि किसी भी वाहन पर नम्बर-प्लेट के अलावा कुछ भी नहीं लिखाया जा सकता है। ऐसा न होने पर जुर्माना का प्राविधान है। लेकिन एडवोकेट, पुलिस और प्रेस जैसे नाम अक्सर लोगों के वाहन पर लिखे मिल जाएंगे। जज जैसे नाम पर अक्सर मिल जाएंगे, लेकिन जिला जज स्तर के अधिकारी की कार पर पांच स्थानों पर जिला जज अथवा जज एकसाथ लिखा हो, तो ऐसे जिला जजों की मनोवृत्ति का आभास आसानी से मिल सकता है। किसी भी अपराध के लिए ही जजों की व्यवस्था संविधान में है, लेकिन जब जिला जज के स्तर का अधिकारी ही ऐसी हरकत करे, तो बेहद शर्मनाक घटना है।