परिवहन विभाग: एक अफसर बड़ा कुदक्‍कड़, दूसरा शांत-कर्मठ

बिटिया खबर

: ब्‍यूरोक्रेसी वाले सिक्‍के के दो चेहरे, एक पाखंड के लिए खजाना लुटाता है, दूसरा खामोशी से ड्यूटी : निगम ने हर बस का किराया वसूला, दूसरे ने साढे पांच हजार बसों की व्‍यवस्‍था नि:शुल्‍क :
कुमार सौवीर
लखनऊ : नौकरशाही के भी कई-कई चेहरे होते हैं। इनमें दो चेहरे तो बहुत ही खास हो जाते हैं। इनमें से एक होता है लोकप्रशासन के प्रति पूरी तरह समर्पित, कर्तव्‍यशील, संवेदनशील और शांत, जिसके बल पर ही सरकार की छवि संवर पाती है। जबकि दूसरा है सड़क पर डमरू बजाते हुए और बंदर नचाने वाले मदारी की तरह, जहां केवल झूठ, मक्‍कारी और धोखा होता है। सिवाय एक बेहूदा ढम्‍म-ढम्‍म आवाज के, या फिर नसों में नयी रवानी लाकर लोगों में जवानी की उमंगें उछालने वाले सांडहा तेल के नाम पर मोटी रकम उगाहने वाली विशुद्ध नौटंकी के। लेकिन ऐसे चेहरे वाले अफसर लोकतंत्र, सरकार और लोकप्रशासन को किसी चूहा-दल की तरह छलनी बना डालते हैं। जनता का विश्‍वास लोकतंत्र और सरकार पर से डिगने लगता है।
इन दोनों को एक ही जगह पर एकसाथ देखना चाहते हों तो आपको उत्‍तर प्रदेश के परिवहन विभाग में आना होगा, जहां व्‍यवसाय और प्रशासन की अलग-अलग धाराएं बह रही हैं। एक है प्रदेश में गाडि़यों का प्रशासन, पंजीकरण और उनकी निगरानी आदि का काम, जहां की अधिकांश गाडि़यां निजी क्षेत्र ही होती हैं। चाहे वह स्‍कूटी, बाइक या फिर तीन पहिया जैसी हल्‍की-फुल्‍की गाडि़यों से लेकर 22 चक्‍के तक की भारी-भरकम गाडि़यां हों। हालांकि सरकारी और निजी तथा सार्वजनिक व व्‍यावसायिक गाडि़यां का नियंत्रण भी इसी विभाग से होता है।
जबकि परिवहन विभाग की दूसरी धारा के तहत उप्र राज्‍य सड़क परिवहन निगम जैसे भारी-भरकम ढांचा मौजूद है, जहां हजारों बसें सैकड़ों डिपो के माध्‍यम से यात्रियों को उनके गन्‍तव्‍य तक ढोने में जुटी रहती हैं। इनमें सरकारी ढांचे के लिए अनुबंधित कारें भी मौजूद हैं। इसके नियंत्रण के लिए निगम प्रशासन के पास करीब 45 हजार से ज्‍यादा कर्मचारी जुटे हुए हैं।
अब आइये, हम आपको ले चलते हैं इस परिवहन विभाग वाले सिक्‍के के इन दोनों चेहरों को दिखाने, जहां एक धारा का अफसर सरकारी खजाने का इस्‍तेमाल अपनी झूठी वाहवाही में लुटा रहा है, जबकि दूसरी धारा का अफसर बिलकुल खामोशी से अपने दायित्‍व और कर्तव्‍य को निभाता रहा है। इन दोनों की धाराओं को देखने-परखने के बाद आपको अंदाजा मिल जाएगा कि यूपी की नौकरशाही इस वक्‍त कितने पानी में है।
तो पहला चेहरा तो परिवहन विभाग का देखिये। लॉक-डॉउन के दौरान न ट्रेनें चल रही थीं, न बसें। निजी बसें, ट्रक और ट्रालियां भी बंद थीं। ऐसे में दिल्‍ली, मुम्‍बई, पूना, सूरत, अहमदाबाद, गुड़गांव, अमृतसर, लुधियाना, गाजियाबाद, नोएडा और देश के बड़े-बड़े महानगरों में रोजी-रोटी कमाने गये बिहार और पूर्वांचल के प्रवासी श्रमिकों का रेला अपने परिवार के साथ पैदल ही हजारों मील की दूरी सड़क पर ही निकल पड़ा।

चलते-चलते इन प्रवासी श्रमिकों के पांव लहूलुहान हो चुके थे। हर ओर केवल रूदन, शोक, भूख, प्‍यास और अनिश्चित भविष्‍य का डरावना काला साया। क्‍या मर्द और औरतें, मासूम नन्‍हें-मुन्‍ने बच्‍चे भी रोते-बिलख रहे थे।
transportऐसे में मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ सामने आये। उन्‍होंने अफसरों को आदेश दिया कि वे बसों से विभिन्‍न महानगरों में फंसे या पैदल सफर कर रहे श्रमिकों को सुरक्षित पहुंचाने की व्‍यवस्‍था करें। इसी बीच रेलवे ने भी कई स्‍पेशल ट्रेनें चला दीं। इन ट्रेनों को लेकर श्रमिक प्रदेश के विभिन्‍न रेलवे स्‍टेशन पर आने लगे। अभियान शुरू हो गया। परिवहन निगम की बसों को लगा दिया गया, लेकिन श्रमिकों के रेला के मुकाबले यह व्‍यवस्‍था काफी कम थी। ऐसी हालत में परिवहन विभाग ने भी अपने स्‍तर पर प्रयास शुरू कर दिया।
बताते हैं कि परिवहन आयुक्‍त ने योग-संकल्‍प को पूरा करने के निजी क्षेत्रों की बसों को जुटाने का अभियान छेड़ दिया। उन्‍होंने अपने क्षेत्रीय परिवहन अधिकारियों ( आरटीओ ) के माध्‍यम से प्रदेश के निजी क्षेत्र से अनुरोध किया कि जो भी संस्‍थान इस लॉक-डॉउन के चलते बंद हैं, उनके प्रबंधकों से आग्रह किया जाए कि वे इस अभूतपूर्व भयंकर आपदा में बेहाल प्रवासियों का सहयोग करें। कहा गया कि मानवता के आधार पर जो भी बसें अगर उपलब्‍ध हो सकें तो परिवहन विभाग उनका आभारी होगा। नतीजा बेहद उत्‍साहजनक निकला। बताते हैं कि प्रदेश के आरटीओ इस अभियान में जुट गये और चंद घंटों में ही करीब सवा पांच हजार बसों की व्‍यवस्‍था हो गयी। इनमें स्‍कूल, कारखाने और अन्‍य विभिन्‍न व्‍यावसायिक क्षेत्र भी शामिल थे। एक अधिकारी ने बताया कि इस योगदान में सबसे ज्‍यादा सक्रियता तो मेरठ के स्‍कूलों ने दिखायी, जहां दो घंटों के भीतर ही तीन सौ से ज्‍यादा बसें परिवहन विभाग को उपलब्‍ध करा दी गयीं।

हैरत की बात तो यह है कि इन बसों में तेल-पानी, ड्राइवर, कंडक्‍टर आदि स्‍टाफ भी उन्‍हीं संस्‍थानों द्वारा उपलब्‍ध कराया गया। इतना ही नहीं, इन बसों के स्‍टाफ के लिए भोजन व उनके विश्राम आदि की व्‍यवस्‍था भी उन संस्‍थानों ने ही वहन किया।

तो यह रहा चेहरा परिवहन विभाग के परिवहन आयुक्‍त की धारा का। जबकि दूसरे चेहरे की धारा यानी परिवहन निगम की उपलब्धियों को तो हम सिलसिलेवार आप तक पहुंचा ही चुके हैं, और लगातार भी इस पर रिपोर्ट-श्रंखला भी तैयार हो रही हैं, कि किस तरह परिवहन निगम ने न केवल प्रवासी श्रमिक ही नहीं, बल्कि अपने कर्मचारियों को भी भारी खतरे में झोंक डाला था। लेकिन इसी बीच परिवहन निगम के अफसरान किसी जोरदार जंगल में मंगल जैसे जश्‍न में निगम का खजाना लुटाने में जुटे रहे। परिवहन निगम में दो घंटे के भीतर साढ़े दस लाख यात्रियों का जो घोटाला आंकड़ों में किया, वह वाकई पूरी दुनिया की दुनिया में लोकप्रशासन की नकारात्‍मक उपलब्धियों में एवरेस्‍ट से भी महान साबित होगी। सड़क परिवहन निगम की करतूतों को पढ़ने, जांचने और परखने के लिए आप निम्‍न लिंक पर क्लिक कर सकते हैं।
अब हालत यह है कि परिवहन आयुक्‍त कार्यालय में अधिकारियों-कर्मचारियों के चेहरे पर योगी-संकल्‍प को पूरा करने के बाद एक बेहद प्रशांतशांति और आनंद की लहरें उमड़ रही हैं, वही परिवहन निगम में कर्मचारी निगम अधिकारियों के प्रति बेहद नाराज हैं।

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