: केवल “जन और लोक-कल्याण” की ही चिंता में न जाने कितनी डालों में कूदा : आका की देखादेखी बाकी अफसर भी झूठ, बेईमानी, अनुशासनहीनता और भयावह लूटपाट शुरू करें तो अचरज क्या :
कुमार सौवीर
लखनऊ : हातिमताई बड़ा कारसाज था। उसे केवल “जन और लोक-कल्याण” की ही चिंता रहती थी। बस का ही काम। उसे केवल काम ही चाहिए, काम, काम, काम। हातिमताई सबसे बढ़ कर काम करता था, लपक-लपक कर। चाहे कितनी भी डालें पकड़नी पडें या फिर कितनी ही डालों पर कूदना पड़े। चल कर या कूद-कूद कर, हातिमताई के मुंह से कभी भी हिचकना नहीं सीखा था। चाहे रेडियो मिर्ची में अपनी गिरफ्तारी देने वाला काम हो, या फिर काम को चूना लगाने का काम। जहां भी काम है तो वहीं पर हातिमताई है, और जहां भी काम नहीं भी है, वहां भी हातिमताई हाजिर है। काम तो यह हातिमताई खोज-खोज कर निकालता था, जैसे चालीस चोरों की गुफा का पासवर्ड चुरा लेना। खुल जा सिम सिम।
दरअसल, सामान्य तौर पर लोगों को गलतफहमी थी कि इस हातिमताई का शगल कोई ठोस-कांक्रीट काम करना था। नहीं यार, हरगिज नहीं। सच बात तो यही थी कि काम करना तो उसका बाइ-प्रोडक्ट था। प्रति-उत्पादन। इस हातिमताई का असल मकसद था शेखी बघारना और जहां-तहां अपनी पीठ ठोंकवाना। इसके लिए वह सरकारी खजाने को लुटाने में तनिक भी परहेज नहीं करता था। दो हाथों से उलीच लेता था खजाना। अरे इस हातिमताई ने तो अपनी इस शेखी बघारने की उतावली के मतवाले जोश में यूपी के परिवहन अशोक कटारिया ही नहीं, बल्कि सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक को कर्रा चूना लगा दिया। लेकिन इसी शेखी बघारने के चक्कर में वह एक दिन ऐसा गच्चा खाकर मुंह के बल गिरा, कि आजकल सचिवालय में उसकी ऐसी की तैसी हो रही है।
किस्सा है कोरोना संक्रमण के दौरान लॉक-डॉउन के हालातों का। नट्रेनें चल रही थीं, न बसें। निजी बसें, ट्रक और ट्रालियां भी बंद थीं। ऐसे में दिल्ली, मुम्बई, पूना, सूरत, अहमदाबाद, गुड़गांव, अमृतसर, लुधियाना, गाजियाबाद, नोएडा और देश के बड़े-बड़े महानगरों में रोजी-रोटी कमाने गये बिहार और पूर्वांचल के प्रवासी श्रमिकों का रेला अपने परिवार के साथ पैदल ही हजारों मील की दूरी सड़क पर ही निकल पड़ा। चलते-चलते इन प्रवासी श्रमिकों के पांवलहूलुहान हो चुके थे। हर ओर केवल रूदन, शोक, भूख, प्यास और अनिश्चित भविष्य का डरावना काला साया। क्या मर्द और औरतें, मासूम नन्हें-मुन्ने बच्चे भी रोते-बिलख रहे थे।
ऐसे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अफसरों को आदेश दिया कि वे बसों से विभिन्न महानगरों में फंसे या पैदल सफर कर रहे श्रमिकों को सुरक्षित पहुंचाने की व्यवस्था करें। इसी बीच रेलवे ने भी कई स्पेशल ट्रेनें चला दीं। इन ट्रेनों को लेकर श्रमिक प्रदेश के विभिन्न रेलवे स्टेशन पर आने लगे। इन स्टेशनों पर परिवहन निगम की बसों को लगा दिया गया कि वे स्टेशन से श्रमिकों को उनके गन्तव्य तक पहुंचा दें। अभियान शुरू हो गया। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में किसी भी बस या डिपो ने न तो बसों-डिपो को सेनेटाइज करने की जरूरत समझी और न ही निगम के कर्मचारी, कंडक्टर,ड्राइवर आदि को मास्क या सेनेटाइजर की व्यवस्था की गयी। डिपो या तैनाती वाले स्टेशनों पर तैनात कर्मचारियों को न तो भोजन दिया गया और न ही उनके लिए विश्राम की कोई व्यवस्था ही की गयी। सबसे ज्यादा शोषण तो संविदा कर्मचारियों के साथ हुआ, जिन्हें हफ्ते भर तक ड्यूटी पर बुलाया तो गया, लेकिन ड्यूटी दी नहीं गयी। ऐसे में मात्र डेढ़ रूपये प्रति किलोमीटर का मेहनताना पाने वाले कर्मचारी भुखमरी की हालत तक पहुंच गये।
कर्मचारियों के साथ ही नहीं, बल्कि प्रवासी श्रमिकों के साथ भी जानलेवा संक्रमण फैलाने की हालत पैदा कर दी परिवहन निगम के अफसरों ने। हालांकि दावा किया गया कि इस प्रक्रिया में सोशल डिस्टेंस लागू किया जाएगा, लेकिन इन बसों में 21 से 26 यात्रियों के बजाय सामान्य तौर पर 42 और 61 तक यात्रियों को ढोते हुए नियमों को ठेंगा दिखाया गया। ऐसे में कितने लोग इस प्रक्रिया में कोरोना संक्रमित थे, या हो गये, इसका कोई भी आंकड़ा जुटा पाना अब मुमकिन नहीं है।
लेकिन इस हातिमताई ने अपनी डींगें खूब हांकीं। चूंकि अपनी सफलता का प्रदर्शन करने के लिए आंकड़ों की जरूरत होती है, इसलिए इस हातिमताई ने एक बड़ा भयावह झूठ बोला, और बाकायदा अपनी छाती ठोंक कर झूठ बोला।
12 जून को अपने ट्विटर पर इस हातिमताई ने इन यात्रियों को लेकर आंकड़ों का खेल किया, उसमें महज एकाध घंटे के भीतर ही एकाध हजार या लाख ही नहीं, बल्कि सीधे-सीधे साढ़े दस लाख यात्रियों की तादात बढ़ा ली। अब सवाल तो यह है कि जब उप्र राज्य सड़क परिवहन निगम का प्रबंध निदेशक भी इस तरह का बेशर्म झूठ बोलना शुरू करेगा, तो परिवहन निगम के बाकी अफसर तो वाकई झूठ, बेईमानी, अराजकता, अनुशासनहीनता और भयावह लूट-पाट करना शुरू कर देंगे। लेकिन इस हातिमताई ने इस बारे में कत्तई भी सोचने की कोई जरूरत नहीं समझी।
जियो राजा हातिमताई।