पकड़ इस अमर उजाली संपादक को। तुम खबरची हो या धंधेबाज ?

बिटिया खबर

: बिल्‍डरों की करतूतों पर मूर्ख-रुदन। न सिर और न पैर, चौथाई पन्‍ना में छाप दिया फर्जी महाभारत : ऐसे संपादकों के चलते दो-कौड़ी का अखबार बनता जा रहा है अमर उजाला : सिर्फ एलडीए की दलाली करने का मकसद हो तो दीगर बात है, लेकिन पाठकों को मूर्ख क्‍यों बनाया :

कुमार सौवीर

लखनऊ : यह है अमर उजाला, यह है इस अखबार का बकलोल संपादक और यह है इसका दो-कौड़ी का रिपोर्टर। न तुक, न ताल और न कोई तर्क और न ही जमीनी हकीकत। बस घर में दुबक कर दिन भर आराम किया, और शाम को आकर सपने में जो भी ऊल-जुलूल समझ में आया, अखबार में उगल दिया। संपादक भी गांजे की पिनक में था, उसने रिपोर्टर की इस बकवास को पूरे एक-चौथाई पन्‍ने पर आलीशान अंदाज में छाप दिया, मानो यह कोई सामान्‍य नहीं, बल्कि दशकों-सदियों के बाद खोजा गया कोई स्‍कूप हो।
आइये, तनिक निहारिये इस अखबार को, उसके रिपोर्टर की करतूत को और उसको अपना सिरमौर बनाये संपादक को। मसला इन तिकड़ी की खबर पर है, जिसे इन लोगों ने अखबार को मजाक तो बनाया ही, पाठकों का भी पैसा और समय बर्बाद करने के साथ ही पत्रकारिता को भी शर्मसार कर डाला है। यह ख़बर हकीकत कोसों दूर है, जाहिर है कि यह न तो खबर है और न ही विज्ञापन। बल्कि निरी अफवाह है। निराधार। पाठकों को मूर्ख बनाने की एक साजिश है।
अमर उजाला लखनऊ वाले संस्करण के संपादक हैं राजीव सिंह। अपने आप को दुनिया का सबसे बड़ा संपादक मानते हैं राजीव सिंह। लेकिन पूरा अखबार में मगज के बजाय अधिकांश भूसा ही भरा होता है। आप देख लीजिए इस खबर को। अमर उजाला ने इसे अपने एक पन्ने पर लीड के तौर पर पेश किया है। यानी पन्‍ने की सबसे बड़ी खबर हेडिंग के साथ। एडिंग है:- नक्शा पास कराया दस बीघा का, प्लाटिंग 50 पर। लेकिन इस पूरी खबर में न किसी घटना का जिक्र है, और न ही हेडिंग के मुताबिक खबर की मौजूदगी। न किसी सोसायटी या बिल्‍डर की योजना के नक्शा का जिक्र है और न ही खबर की हकीकत का जस्‍टीफिकेशन, जिससे पता चल सके कि ऐसी किसी प्लाटिंग की वास्तविकता है।
पूरी खबर एक-चौथाई पन्‍ने पर चकाचक छापी गयी है। इतना ही नहीं, इस फर्जीवाड़े का संजाल बुनने वाले रिपोर्टर नरेश शर्मा की कारस्‍तानी पर खुश हो कर संपादक राजीव सिंह ने उसे बाईलाइन यानी खबर अपना नाम का झंडा फहराने की अनुमति दे दी है। जब कि यह फर्जीवाड़ा केवल जुगाड़ के तौर पर है, जिसमें न सूत है न कपास, लेकिन लट्ठमलट्ठा बेहिसाब है। खबर को लिखने की तमीज न तो नरेश शर्मा रिपोर्टर को है और न उसको एडीट करने की औकात है संपादकीय टीम में । लेकिन ऐसी फर्जी और अनाचार करती खबर को छापने का जिगरा जरूर है अमर उजाला के संपादक राजीव सिंह में।
पन्‍ने में इस बकवास की हेडिंग को देखते ही ऐसा लग रहा है कि यह कोई ऐसा बड़ा ग्रुप होगा, जो बड़ी गड़बड़ी कर रहा होगा और इसमें एलडीए की संलिप्‍तता भी खूब होगी। बहुत बड़ी खबर के तौर पर इस बकवास में साफ दिख रहा है कि इस बड़ी खबर नक्शा यानी मानचित्र को एलडीए से पास करा दिया गया है, जिसके मुताबिक 10 बीघा की जमीन पर एलडीए के अफसरों के साथ साजिश करके प्लाटिंग करा दी है। इसके बाद उसे 50 बीघा कर दिया गया। लेकिन इस पूरी खबर में ऐसा लग ही नहीं पा रहा है यह कहां हुआ है, किसने किया है, कब किया है और एलडीए इसमें कहां से जिम्मेदार हैं। इतना ही नहीं, बिल्कुल हवाई और फर्जी तरीके से इस खबर को पेश किया गया है कि जैसे 10 एकड़ भूखंड पर प्लाटिंग का प्रोजेक्ट होता है लेकिन उसमें एक एक नक्शा पास कराया जाता है। यानी बिल्डर लोग उसमें से साजिश करके इसमें लैंडयूज़ चेंज करा देते हैं। लेकिन यह कहां हुआ है, कब हुआ, कैसे हुआ और किसने किया है इसका कोई जिक्र ही नहीं है इस खबर में। बल्कि हेडिंग के मुताबिक बाकी बकवास खबर में भी इसका कोई तारतम्‍यता ही नहीं है।
खबर में तो यह भी लिखा है एक आवासीय सोसायटी चलाने वाले प्रॉपर्टी डीलर ने अपनी जमीन का मानचित्र पास कराने के लिए एलडीए को एक फार्च्यून कार गिफ्ट में दे दी थी क्योंकि उस अफसर का बेटा अपने दोस्तों के साथ त्यौहार मनाना चाहता था, लेकिन यह कार किसने दी और किसको दी इसका कोई फिक्र ही नहीं। हां, एलडीए में मानचित्र सेल प्रभारीअधीक्षण अभियंता का कहना है कि प्रशासन ने इस बारे में एक टीम सौंपी है। लेकिन इसमें ऐसी फर्जी आवासीय सोसाइटी विकसित करने का कोई जिक्र ही नहीं किया गया है। इतना ही नहीं, रिपोर्टर को यह भी पता नहीं है आवासीय सोसाइटी का काम एलडीए के बजाय उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद करता है।
फिर इस खबर को इस रिपोर्टर ने किस तर्क पर शामिल कर लिया इसका कोई फिक्र ही नहीं है। और सबसे बड़ी बात यह है इस खबर में एलडीए ने गोसाईगंज में किसी अनियोजित कॉलोनी की बाउंड्री ध्वस्त करने की फोटो लगाई है। लेकिन इस बड़ी बकवास खबर में इस घटना का कोई नहीं। जाहिर है कि नरेश शर्मा नामक यह रिपोर्टर अपना धमक, रुतबा और हौंक जमाने के लिए अमर उजाला के बड़े पन्ने पर अपने का आधिपत्य जमा रहा है और दुकान चला रहा है। जबकि इस अखबार का संपादक ऐसे मूर्ख या धंधेबाज रिपोर्टरों को पूरी तरह प्रश्रय देता है।

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