कैंसर संस्‍थान का नाम आखिर कल्‍याण सिंह के नाम पर क्‍यों ?

बिटिया खबर

: लखनऊ तो कैंसर के श्रेष्‍ठ योद्धाओं की कर्मभूमि रही, उनको श्रेय क्‍यों नहीं : एडी इंजीनियर, डी कुट्टी, एसआर नायक, एमसी पंत और एससी राय ने दिया चिकित्‍सा को जीवन-दान : अखिलेश ने किया संस्‍थान की स्‍थापना, नाम दिया कल्‍याण सिंह का : सम्‍मान देना हो तो योद्धा डॉक्‍टरों को श्रेय दें, कल्‍याण को सम्‍मान देना था तो अयोध्‍या में मूर्ति लगाते :

कुमार सौवीर

लखनऊ : आप कभी केजीएमयू के क्‍वीन मेरी कॉलेज में जाइये। वहां दो महान चिकित्‍सा प्रमुखों के नाम पर मेडिकल छात्राओं के हॉस्‍टल बने हैं। एक तो है प्रोफेसर एडी इंजीनियर और दूसरी हैं प्रोफेसर डी कुट्टी। ठीक इसी तरह लोहिया संस्‍थान में सीनियर रेजीडेंट के रहने के लिए बना करीब 15 मंजिला हॉस्‍टल का नाम डॉ एससी राय छात्रावास। इन सभी ने चिकित्‍सा जगत को अपना पूरा जीवन दिया है। लेकिन इनमें से भी दो अन्‍य महान चिकित्‍सक रहे हैं लखनऊ में, जिन्‍होंने कैंसर से पीडि़त होने के बावजूद अपने संस्‍थान और अपने छात्रों को अपना आखिरी एक-एक क्षण समर्पित किया है और छात्रों व चिकित्‍सा जगत को साबित कर दिया है कि मृत्‍यु तो अनिवार्य है, लेकिन कैंसर से कुछ इस तरह भी किसी योद्धा की तरह युद्ध किया जा सकता है।
और कहने की जरूरत नहीं है कि कैंसर संस्‍थान में मरीजों को कैंसर से रोग और उसके भय से निजात दिलाने के लिए कल्‍याण सिंह का नाम दूर-दूर तक तनिक भर नहीं। हालांकि अखिलेश यादव ने अपनी सरकार में इस कैंसर संस्‍थान की स्‍थापना की शुरुआत कर दी थी, लेकिन इसके बावजूद योगी-सरकार के उप मुख्‍यमंत्री ब्रजेश पाठक ने इस संस्‍थान पर भाजपा के नेता रहे कल्‍याण सिंह के नाम पर नामकरण कर दिया। इतना ही नहीं, ब्रजेश पाठक ने ऐलान किया है कि आगामी 21 अगस्‍त-22 को इस संस्‍थान में कल्‍याण सिंह की नौ फीट ऊंची एक विशालकाय कांस्‍य प्रतिमा भी स्‍थापित कर दी जाएगी। लेकिन यह सवाल अनुत्‍तरित ही है कि आखिर कैंसर संस्‍थान में कल्‍याण सिंह का क्‍या लेना-देना रहा है।
आपको बता दें कि लखनऊ मेडिकल कालेज की क्‍वीन मेरी अस्‍पताल महिला और प्रसूति आदि रोगियों के लिए पूरी दुनिया में मशहूर रहा है। यहां सन-1953 से लेकर सन-1976 तक प्रधानाचार्य रहीं हैं एडी इंजीनियर। इसके अलावा इसके ठीक बाद से लेकर सन-1981 तक प्रधानाचार्य रही हैं प्रोफेसर डी कुट्टी। हैरत की बात है कि महिलाओं के रोगों को पहचानने, उनका निदान करने और प्रसूति तक का काम इन दोनों ने अपने पूरे कार्यकाल में निभाया है। यह भी कहने की जरूरत नहीं कि इस दौरान इनके हाथों और उनके निर्देशन में लाखों-लाख बच्‍चों का जन्‍म इसी क्‍वीन मेरी में हुआ। इनमें से एक मैं यानी कुमार सौवीर भी शामिल हूं, जिनको एडी इंजीनियर की छात्रा रहीं प्रोफेसर कल्‍याणी दास ने जन्‍म दिलाया। आप लोगों को यकीन नहीं आयेगा कि लाखों-लाख बच्‍चे पैदा करने के अपने दायित्‍वों और कार्यभार के दौरान इन दोनों महान विभूतियों ने जीवन भर शादी ही नहीं किया, और इसी में ही अपने प्राण त्‍याग दिया।
लेकिन कैंसर के साथ युद्ध करने ही नहीं, बल्कि उसके साथ जूझने का तरीका सिखाने वाला अगर कोई डॉक्‍टर रहा है, तो वह थे प्रो एसआर नाइक और केजीएमसी के प्रो एमसी पंत। इन लोगों ने पूरी दुनिया को सिखाने का जीवन दिखाया कि कैसे कैंसर जैसे रोग को लड़ा जा सकता है। प्रो एसआर नाइक संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्‍थान में गैस्‍ट्रोइंट्रोलॉजी के मुखिया थे। सन-06 में उन्‍हें कैंसर हुआ, डॉक्‍टरों ने जांच करके बताया कि प्रो नाइक का जीवन अधिक से अधिक केवल छह महीना ही बचा है। यह सुनते ही प्रो नाइक घबराये नहीं, लेकिन कैंसर से लड़ने के लिए झटपट रणनीति बना ली। उन्‍होंने अब सारी सोशल-कॉल्‍स को कैंसिल कर दिया, और अपने छात्रों के साथ केवल पढ़ाई और योग-प्रयोग। अब चिकित्‍सा के अलावा न किसी से बात करेंगे और न ही चिकित्‍सा-जगत से इतर किसी से कोई सामाजिक संबंध। छात्रों के साथ तीन गुना समय देना शुरू कर दिया और साथ ही अपने विषय पर भी लेखन प्रारंभ किया। जब तक जिये, किसी योद्धा की तरह जिये और ठीक छह महीने बाद उनका निधन हो गया। उनकी पत्‍नी भी इसी संस्‍थान के इम्‍युनॉलॉजी में प्रोफसर थीं। प्रो नाइक के प्रति सम्‍मान देने के लिए संस्‍थान ने अपने प्रतिभाशाली छात्रों ही नहीं, बल्कि वरिष्‍ठ प्रोफेसरों को भी प्रो एसआर नाइक अवार्ड भी तय किया।
दूसरे महान योद्धा रहे हैं प्रो एमसी पंत। केजीएमसी में ही पढ़े और यहां रेडियोलॉजी के प्रमुख भी रहे। बाद में लोहिया संस्‍थान में निदेशक और फिर उत्तराखंड मेडिकल यूनिवर्सिटी के कुलपति भी रहे एमसी पंत को भारत सरकार ने पद्मश्री सम्‍मान भी दिया था। इतना ही नहीं, डॉ बीसी अवार्ड से लेकर पद्मश्री सम्मान प्राप्त डॉक्टर पंत लखनऊ के केजीएम यूनिवर्सिटी में कैंसर स्पेशलिस्ट रहे। स्वामी राम कैंसर इंस्टिट्यूट हल्द्वानी की स्थापना में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। लेकिन इसी बीच प्रो पंत को कैंसर हो गया। यह पता होते ही उन्‍होंने उत्‍तराखंड चिकित्‍सा विश्‍वविद्यालय के कुलपति का पद त्‍याग दिया और केजीएमसी के उसी विभाग में दिन-रात और अथक काम करने लगे, जिसमें वे कभी एचओडी रह चुके थे। हालांकि इसके कुछ समय बाद प्रो एमसी पंत का लखनऊ के कैंसर इंस्टिट्यूट में निधन हो गया।
लेकिन इन महान विभूतियों के त्‍याग को पहचानने के बजाय अब राजनीति में रह कर अटल जी से सीधे-सीधे दो-दो हाथ करने वाले कल्‍याण सिंह के नाम पर इस कैंसर संस्‍थान का नामकरण करना और अब इसी संस्‍थान पर उनकी विशाल मूर्ति लगाने से सरकार का क्‍या औचित्‍य और मंशा है, समझ ही नहीं आ रहा है। अगर सरकार कल्‍याण सिंह को उनके मृत्‍योपरांत कोई सम्‍मान देना ही चाहती थी, तो सीधे-सीधे उनकी मूर्ति अयोध्‍या में स्‍थापित करना चाहिये थे। वहां राममंदिर परिसर में भी उनकी राम-सम मूर्ति स्‍थापित की जा सकती है, जिसके लिए उन्‍होंने अपनी सरकार को शहीद करा दिया और जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने उनको एक दिन की सजा भी दी थी।
सबसे बड़ी हैरत की बात तो यह है कि भाजपा में अमित शाह गुट के विश्‍वसनीय और यूपी के चिकित्‍सा-स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री ब्रजेश पाठक में आजकल कल्‍याण सिंह के प्रति स्‍नेह यूं ही नहीं टपकना शुरू हो गया है !

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