पारस छूते ही कतील बना होलसेल का बेताज महा-विक्रेता

बिटिया खबर
: जौनपुर में रंगीले-गोश्त का पुराना धंधा मशहूर है कतील का : पारसनाथ यादव ने शिवपाल यादव की सेवा में कतील को लगाया : तब के डीएम जीतेंद्र कुमार ने ढेरों असलहे मंजूर किये :
कुमार सौवीर
जौनपुर: पुराने हिन्दुस्तान की बात छोड़ दीजिए, लेकिन ताजा हिन्दुस्तान में जितने भी बडे हैसियतदार लोग हैं, उनमें से ज्यादातर के कपडों, चेहरों और चरित्र पर निहायत बदबूदार कींचड पोता हुआ है। इस मामले में जौनपुर की हालत तो शायद सबसे ज्यादा घिनौनी है। यहां के अधिकांश बडे हैसियतदारों की पूंछ आप उठा लीजिए, उनकी हकीकत का मुख्य-द्वार आपको सामने साफ दिख जाएगा। ताजा मामला है चंद बरसों पहले तीन लडकियों को मुजफ़्फ़रनगर से लाकर गर्मगोश्त बेचने वाले उस मोहम्मद कतील शेख की, जो आज लखनऊ से लेकर दिल्ली तक पत्रकारिता और राजनीतिक क्षेत्र में बहुत बडी हैसियतदार हो गया। लेकिन उसकी चमक बस डेढ दशक तक ही रही, आज वह किसी बुझे धूमकेतु की तरह लखनउ के गोमतीनगर पुलिस थाना की हवालात में बंद है। आरोप है अपनी बेटी की उम्र से भी कम युवती से दुराचार का, और तैयारी है उसे जेल भेजने की।
हिन्दुस्तान का इतिहास और जौनपुर की बहुरंगी रौशनी हमेशा से ही दिलचस्प रही है। विश्वविख्यात इतिहासकार एएल बाशम की एक​ किताब है अदभुत भारत। 18 साल पहले यह किताब मुझे टीडी कालेज के प्राचार्य प्रो अरुण सिंह ने दी थी। इसमें हिन्दुस्तान का रोचक और प्रमाणिक इतिहास दर्ज है। किताब के मुताबिक फारस से आये योद्धाओं ने आठ सौ साल पहले हिन्दुस्तान आकर अपना शर्की-साम्राज्य स्थापित किया। कन्नौज से लेकर बंगाल तक। राजधानी बनाया फारस में शिक्षा के सर्वोच्च केंद्र शिराज के नाम पर स्थापित शिराज-ए-हिन्द को। इस शिराज-ए-हिन्द को जौनपुर के नाम पर पहचाना जाता है। शासन के अलावा बाकी सारी दिशाओं और शिक्षाओं में शर्की साम्राज्य ने बेहद मेहनत कर डाली, मसलन संगीत और नत्य आदि। राग-जौनपुरी नामक प्रख्यात राग इसी जौनपुर में जन्मा। गोमती नदी के किनारे बसे एक मोहल्ले में कलकल बहती जल-धारा की तरह ही इस मोहल्ले में नृत्य-संगीत की लहरियां गूंजा करती थीं। मुगलों के आने के बाद यह पूरा चहारसू इलाका देह-व्यवसाय वाले वेश्यालयों के कोठों में तब्दील हो गया। यह हालत सन 1990 तक बदस्तूर रही।
सडक की दूसरी पटरी पर है मीर मस्त मोहल्ला। शहर की बच्चियों की शिक्षा-दीक्षा के लिए यहां साजिदा इंटरकालेज जरूर है। लेकिन इस मोहल्ले में गंदगी भी खासी पसरी है। मीर-मस्त, जहां मीर की परम्परा में अहमद निसार जैसे देश के विख्यात, संवेदनशील और अजीमुश्शान शायर बसते हैं, वहीं मस्त के तौर पर यहां एक शेख-खानदान भी मौजूद है, जिसने अपने इस पूरे खानदान को देह-व्यापार में खपा डाला। इसी के नूर-ए-चश्म हैं मोहम्मद कतील शेख। इस खानदान का यह धंधा तो खैर खासा पुराना है, लेकिन कतील शेख के चाचा ने इस धंधे की धंधेवालियों के खून-पसीने के बल पर खूब पुष्पित-पल्लवित किया।
स्कूल में अपने मास्टर की भरपूर सेवा करने की एवज में कक्षा पांच ही पास कर पाये कतील शेख। दरअसल, स्कूल के ओस्ताद ने ही इससे ज्यादा मेहनत कर पाने में अपनी असमर्थता व्यक्त कर दी थी। ऐसे में मरता न क्या करता। आखिरकार गर्म-गोश्त के अपने पुश्तैनी व्यवसाय को मोहम्मद कतील शेख ने बचपन में ही थाम लिया। इस धंधे में कतील के ओस्ताद थे कतील के चचा जान। सूत्रों का आरोप है कि क़तील और उसके चाचा ने न जाने कितनी मासूम लडकियों को इस धंधे में उतार कर उनकी जिन्दगी तबाह कर दी, जहन्नुम में तब्दील कर डाली। लेकिन इन चचाजान की एक उपलब्धि तो जरूर ही रही कि उन्होंने इस धंधे में अपने पूरे खानदान को उतार दिया। जाहिर है कि घर के हर शख्स में जन-सम्पर्क का गुण भी विकसित हो गया। और सबसे ज्यादा लाभान्वित हुए मोहम्मद कतील शेख, जो अनपढ होने के चलते अपना नाम कतील के बजाय कातिल आज भी लिखते हैं।
दरअसल, कतील के सितारे लगातार चमकने-दमकने लगे थे। उधर जिले में समाजवादी पार्टी के सर्वोच्च नेता पारसनाथ यादव थे, जो मुलायम सिंह यादव को अपना महबूब कहते हुए पार्टी की हर गोटी पर कब्जा किये थे। पारसनाथ को गर्म-गोश्त का कोई शौक था या नहीं, यह तो पता नहीं। मगर जमीन देखते ही उनकी लार टपकने लगती थी। पारस को पता था कि उनकी ताकत जुटाने के लिए खुद से बडे असरदार लोगों की सेवा करना बहुत जरूरी होता है, इसलिए पारसनाथ की पारखी नजर ने मोहम्म्द कतील शेख को अपना चेला बना लिया। कतील को इतना बडा सम्मान और क्या हो सकता था। वह पारसनाथ के अंग-अंग को पोसने और धोने-पोंछने को तत्पर हो गया।
एक दिन कतील की लॉटरी निकलने का वक्त आ ही गया। हुआ यह कि सन-2003 के आसपास शिवपाल सिंह यादव यहां अपने लाव-लश्कर के साथ यहां के रिवर-व्यू होटल में टिके। पारसनाथ यादव ने शिवपाल की सेवा के लिए कतील शेख को लगा दिया। सूत्रों ने बताया कि वह शिवपाल के कपडों को धोने-प्रेस करने औ
र दीगर वांछित जरूरतों को पूरा करेगा। दो दिन की सेवा में ही शिवपाल सिंह यादव मोहम्मद कतील शेख की सेवाओं और उनकी कार्य-पद्यतियों की सम्भावनाओं से प्रसन्न हो गये। हुक्म हुआ कि कतील शेख अब जल्दी ही लखनऊ आकर शिवपाल से मिलेंगे। बस दो-चार मुलाकातों में ही कतील ने शिवपाल सिंह यादव को जीत लिया।
इसी बीच चुनाव हुए और मुलायम सिंह यादव के साथ ही साथ शिवपाल सिंह यादव की पौ-बारह हो गयी। सरकार बनने के बाद पहली बार शिवपाल जब जौनपुर आये, तो सीधे मोहम्मद कतील शेख के घर ही नाश्ता-भोजन किया। दाम उचक गये कतील शेख के। शिवपाल की करीबी के चलते कतील शेख ने जिले में पार्टी के नेताओं ​और जिले के डीएम-एसपी समेत दीगर अफसरान पर हुक्म चलाना शुरू कर दिया। उसकी ताकत का अहसास इसी से लगाया जा सकता है कि तब के डीएम जीतेंद्र कुमार और एसपी अजय आनंद अक्सर कतील के घर भोजन करने जाया करते थे। हालांकि विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि जब भी एसपी कतील के घर गये, जीतेंद्र कुमार के जोर देने पर ही। शुरू से ही निष्पाप चरित्र वाले अजय आनंद हमेशा कतील जैसे लोगों से दूर ही रहते थे, लेकिन डीएम का दबाव टाल पाना शायद उनके लिए मुमकिन नहीं था। ( क्रमश:)
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