: एकनाथ शिंदे के खासमखास है शिवसेना के सीपी मिश्र, पत्रकारों में भारी आक्रोश : आपराधिक मामलों में लिप्त व्यक्ति बना पत्रकारों का कॉर्डिनेटर : केवल अपनी दूकान चकाचक करने के लिए कवायद जारी, शिंदे क्या बेवकूफ हैं जो आदमी नहीं पहचानते :
दोलत्ती संवाददाता
मुम्बई : 14 सितंबर को हिंदी दिवस के अवसर पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कुछ हिंदी पत्रकारों से मुलाकात की इच्छा जताई, जिसकी जिम्मेदारी मुख्यधारा की पत्रकारिता छोड़ शिवसेना की राजनीति की जांघिया पहन चुके पत्रकार सीपी मिश्रा ने उठाई, जिसके तहत उन्होंने लोगो को फोन करना आरंभ किया और चंद पत्रकारों को समय से बंगले पर बुलाने में कामयाब रहे। परंतु जिस सीपी मिश्रा ने पत्रकारों को मुख्यमंत्री से मिलाने का जिम्मा लिया वे आपराधिक मामलों जैसे कि अपहरण, छेड़खानी, पब्लिक धुलाई में लिप्त रहने के आरोपी है। जिनके कारण उनको कुछ महीनों तक जेल की हवा भी खानी पड़ी थी।
फिलहाल उनपर कल्याण में मामला दर्ज है कोर्ट में केस है। लेकिन सवाल तो यह है कि सीपी मिश्रा के ऐसे आपराधिक कारनामों की जानकारी होते हुए भी हिंदी दिवस के अवसर पर कुछ चुनिंदा हिंदी के पत्रकारों ने इनके बुलाने पर कार्यक्रम में कैसे शिरकत किए? पत्रकार तो अपने मे जागरूक होता है तो फिर भी ऐसे बिना किसी अथॉर्टी के एक व्यक्ति के बुलावे पर जिन पत्रकारों ने कार्यक्रम में शिरकत किया उनके खिलाफ लोगों में फिलहाल खुसुर फुसुर का माहौल है। सूत्रों ने बताया कि सीपी मिश्रा ने इस कार्यक्रम को करके महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के समक्ष अपनी ब्रांडिंग किया है ताकि आनेवाले समय मे मिश्रा अपनी लाइजिंनिग की दुकान को नेताओं और पत्रकारों के सहयोग से बखूबी चला सकें। सीपी मिश्र का इलाका शिवसेना के लिए उपनगर कल्याण इलाके से हैं, इसलिए वे अपने घर तक ही अपने इलाके के लिए ही मीडिया के लोगों को तवज्जो देते हैं।
हिंदी दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में कुछ हिंदी के पत्रकार जो मुख्यधारा में काम करते है वो तो सीपी मिश्रा को पहचानते भी नही है। उनका कहना है कि हमको मुख्यमंत्री से मिलाने के लिए इस कार्यक्रम में आमंत्रित करने के लिए किसी सीपी मिश्रा का फ़ोन आया था। लेकिन हम उसे पहचानते तक नहीं है। तो ऐसे पत्रकारों को इतनी भी समझ नही है कि पता कर लें कि कार्यक्रम में बुलाने वाला व्यक्ति आखिर कौन है?
बता दें कि सीपी मिश्रा द्वारा मुख्यमंत्री ने पत्रकारों को शाम 7 बजे का टाइम दिया था लेकिन रात को 10 बजे मिले, जिसके कारण हिंदी के पत्रकारों ने अपनी बेइज्जती अपने हाथों ही करवाकर हिंदी पत्रकारिता को हिंदी दिवस के अवसर पर बदनाम कर दिया।