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बिटिया खबर

: नभाटा का कमाल, एसएसपी के दफ्तर में की आहत किसान ने किया आत्‍महत्‍या : घटना बदायूं की, इलाज पचास किलोमीटर दूर बरेली में, खबर लिखा दी सौ मील दूर मेरठ के रिपोर्टर ने : न तो बदायूं की अस्‍पताल की करतूतों का खुलासा किया, न ही बरेली रेफर करने की मजबूरी पर करतूतों पर सवाल उठाया :

कुमार सौवीर

लखनऊ : राजेंद्र माथुर से मैं नवभारत टाइम्‍स को जानता और पहचानता रहा हूं। मालिकों के निजी हकों को अगर छोड़ दिया जाए, तो नभाटा की किसी भी खबर पर कोई भी संपादक ऐसा नहीं करता था कि कोई पाठक उस पर कोई उंगली उठा सके। इस अखबार का हर संपादक अपने पैंट या पायजामे पर भले ही नजर न रख पाये, लेकिन खबरों पर उनकी तीखी और सतर्क नजर हमेशा रही है।
लेकिन अब हालात बदल गये हैं। अब तो कोई कुछ भी चाहे, नवभारत टाइम्‍स में छपवा सकता है। कोई भी टोक-रोक भी नहीं है। कोई देखने को भी नहीं बचा कि खबर के नाम पर क्‍या छप रहा है, किस का उस खबर पर क्‍या इंटेंशन है, और उसका अंजाम क्‍या होगा। न तो इस बारे में रिपोर्टर सोचता है, न रिपोर्टर की कॉपी चेक करने का जिम्‍मा सम्‍भाले संपादकीय टीम, और न ही संपादक की कुर्सी तोड़ता व्‍यक्ति। लेकिन दोलत्‍ती संवाददाता अपने दायित्‍वों से कैसे मुंह मोड़ लें।
तो यह ताजा मामला है 19 मई-22 का। नभाटा के पहले पन्‍ने पर एक धमाकेदार खबर छप गयी। हालांकि यह बड़ी खबर थी, लेकिन नभाटा के संपादक ने इस खबर को बेहद मामूली दर्जा अता किया। लेकिन इसके बावजूद वह पहले पन्‍न पर छपी, भले ही एक ही कॉलम के एक छोटे से हिस्‍से में।
खबर है बदायूं जिले की। घटना है कि बदायूं के एसएसपी के दफ्तर में एक किसान ने आत्‍मदाह कर लिया। किसान का दुख था कि अपनी फसल जलाने वाले लोगों पर पुलिसवालों ने कोई भी कार्रवाई नहीं की। वह कई दिनों तक पुलिस और प्रशासन के सामने गिड़गिड़ाता रहा, लेकिन किसी ने कुछ भी नहीं सुना। नतीजा यह हुआ कि उस किसान ने खुद को आग के हवाले कर दिया। घटना को पूरे जिले में हंगामा खड़ा हो गया। आनन-फानन पुलिस ने हस्‍तक्षेप किया और बुरी तरह झुलस चुके इस किसान को इलाज के लिए बरेली रेफर कर दिया गया।
यानी किसान की आत्‍महत्‍या करने वाली यह घटना थी बदायूं की, और बुरी तरह झुलस चुके उस किसाने का इलाज चला बरेली में। आपको बता दें कि बदायूं से बरेली की दूरी है केवल 50 किलोमीटर। यानी करीब डेढ़ घंटे के भीतर इस झुलसे किसान को इलाज मुहैया किया जा सका। आप सवाल उठा सकते हैं कि बदायूं जैसे प्रमुख जिले में किसी झुलसे व्‍यक्ति का इलाज करने की कोई व्‍यवस्‍था ही नहीं है। और नतीजा यह कि ऐसे झुलसे व्‍यक्ति का इलाज बदायूं के बजाय डेढ़ घंटे की दूरी पार करने के बाद ही बरेली में भेजा जा सकता है। लेकिन इस अखबार ने इस सवाल को न तो बदायूं की अस्‍पताल की करतूतों का खुलासा करने की कोशिश की, और न ही बरेली रेफर किये जाने वाली करतूतों पर सवाल ही उठाया।
सवाल यह है कि अगर यह सवाल उठाने की हैसियत नवभारत टाइम्‍स में होती, तो यह हालत ही नहीं हो पाती।
वजह यह कि खबर की पुष्टि बदायूं के अपने रिपोर्टर के बजाय, या फिर आसपास के जिलों के अपने रिपोर्टरों से कवर कराने की जहमत उठा पाता यह अखबार। लेकिन ऐसा करने की औकात ही नहीं थी इस अखबार में। वरना यह क्‍या वजह थी कि यह खबर बदायूं के बजाय वहां से करीब सवा सौ किलोमीटर दूर और घटना से कई जिला दूर मेरठ के रिपोर्टर से इस अखबार ने छापी।

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