भौजी हैं तो बहुत मस्‍त। लेकिन हमारी खुशी नहीं चाहतीं

बिटिया खबर

: मूर्तियों के गुणों पर वाहवाही, लेकिन कुटुम्‍ब में उपेक्षा : भौजी-सहस्रनाम प्रशस्ति-गाथा को भौजी-कोटिनाम में तब्‍दील करने का भगारथी-प्रयास : परिवारीजनों से सम्‍पत्ति और स्‍नेह खूब झटकते, पर उनकी प्रशंसा करने में हम बेहद कंजूस : भगवान पर मक्‍खनबाजी, परिजनों की उपेक्षा। फॉर-ग्रांटेड :

कुमार सौवीर

लखनऊ : आपने विष्णु सहस्रनाम, ललिता सहस्रनाम, गायत्री सहस्रनाम स्तोत्र, शिव सहस्रनाम, गायत्री सहस्रनाम और हनुमान चालीसा जैसे महान ग्रंथों का महात्‍म्‍य तो सुना और पढ़ा भी होगा। लेकिन हमारे समाज में हम केवल आस्‍था के नाम पर उन प्रतिमाओं-मूर्तियों के गुणों का बखान करते ग्रंथ तो लिख देते हैं, जिनको हम न कभी मिले हैं, न मिल पायेंगे। लेकिन मैं तो उन लोगों पर ध्‍यान रखता हूं, जिनको मैं जानता हूं, उनको देखा है, उनके गुणों से वाकिफ हूं। अपने परिवार, कुटुम्‍ब या समाज में ही झांकिये। आप अपनी दादी, बुआ, मौसी, मां, पत्‍नी, बहन, पिता, भाई, बेटा, भौजी या साली, सास-ससुर से सम्‍पत्ति, स्‍नेह और प्‍यार तो बेहिसाब झटकते रहते हैं, लेकिन उनकी खासियत का बखान करने में हम बेहद कंजूस हो जाते हैं। हम भगवान पर तो खूब तेल-पानी लगाते हैं, भोग लगाते हैं, उसका नाम-जाप करते रहते हैं। लेकिन आपके आसपास मंडराते लोग जो आप पर बिना किसी ख्‍वाहिश के आप पर जो प्‍यार लुटाया करते हैं, उस पर हमारा ध्‍यान ही नहीं होता है। उन्‍हें हम झटक कर या उपेक्षा कर उनको फॉर-ग्रांटेड समझ लेते हैं। हनुमान हमें कभी भी एक ग्‍लास पानी भी नहीं पिला सकते हैं, आपको यकीन न हो तो किसी मंदिर में ध्‍यान लगा कर किसी भी मूर्ति से कहिये कि आपका गला तर कर दे। नहीं हो पायेगा। मगर वहां लड्डू चढ़ाने और उनकी जयजयकार करने में आप अव्‍वल होते हैं। आप भूल जाते हैं कि जब आप बेहद शारीरिक या मानसिक तनाव में थे, तो आपके परिवारीजनों ने आपकी कितनी सेवा की।
बहरहाल, यह किस्‍सा आज से करीब 19 बरस पहले जौनपुर में उगा-पला, जब मेरी पोस्टिंग दैनिक हिन्‍दुस्‍तान के प्रभारी के तौर पर हुई। वहां के एक बड़े हृदय-चिकित्‍सक डॉ हरेंद्रदेव सिंह से मुलाकात हुई। उनका जिले का सबसे बड़ा नर्सिंग होम है। नाम है कृष्‍णा हार्ट ऐंड इनफर्टिलिटी सेंटर। बढ़ती उम्र में दिल ज्‍यादा धड़कने लगता है, खास कर उनको तो ज्‍यादा ही खतरा हो जाता है जो रक्‍तचाप की सीमा पार चुके हों। तो डॉक्‍टर साहब से भाईचारा हो गया। तो पता चला कि वहां तो बहुत बढि़या ऑफर मिल गया। बाई वन, गेट वन फ्री नहीं, बल्कि एक पर सब फ्री। भेंट हो गयी उनकी बहन डॉ मधु शारदा से। साथ में दो बच्‍चे भी मिल गये फ्री-फंड में। एक का नाम रॉबिन, जबकि दूसरे का नाम मोहित। लेकिन सबसे बड़ा तोहफा मिला भौजी के तौर पर। नाम है सुमन सिंह। बेहद सरल, आत्‍मीय, स्‍नेही और हंसमुख भी। हमने एक बार पूछा कि भाभी जी आपकी उम्र कितनी है। लेकिन इसके पहले कि भौजी बोलें, डॉ हरेंद्रदेव लपक कर बोल पड़े:- ज्‍यादा नहीं। होगा करीब 16-17 के आसपास, हाल ही तो उनका 17 वां बर्थ-डे मनाया था।
सन-05 के सितम्‍बर में मुझे मजबूरन जौनपुर छोड़ना पड़ा। लेकिन मेरे प्रति इस परिवार का रिश्‍ता बरकरार ही रहा। भौजी पर भी तनिक भी फर्क नहीं पड़ा। बल्कि लगातार बढ़ता ही रहा। हालांकि जौनपुर छोड़ने से मुझे गोमती नदी में तैरने का अभ्‍यास छोड़ना पड़ा, जिसे हम लगातार करीब दो बरस तक इस पूरे परिवार के साथ गोमती नदी के विभिन्‍न इलाकों में करीब एक घंटे तक तैरा करते थे। एक बार तो नदी में बहती एक लौकी दिखी। हरेंद्रदेव जी ने उसे परे धकेलना चाहा, लेकिन मैंने उसे लपक लिया और पूरी लौकी कच्‍ची ही चबर-चबर खा कर खत्‍म कर डाली।
तो साहब, यहां के टीडी पीजी कॉलेज के पूर्व प्रोफेसर पीएल टाम्‍टा जी के एक मित्र प्रो मनोज सिंह के घर वैवाहिक समारोह में शामिल होने श्रीनगर से लखनऊ की ओर रवाना हुए। मेरे एक्‍सीडेंट की खबर उन्‍हें थी ही, इसलिए पहले लखनऊ रुके। उनकी गाड़ी सुविधाजनक थी, तो उनके साथ मैं भी 17 मई को जौनपुर चल पड़ा। लेकिन जौनपुर पहुंचते ही भयानक पीड़ा उठी। मैंने डॉ डीपी सिंह किसी दयनीय-घायल और आर्तनाद करते पपीहा की तरह उन्‍हें आवाज दी, लेकिन वे आये ही नहीं। डॉ एचडी सिंह से कहा, तो उन्‍होंने अपने बेटे रॉबिन को तत्‍काल भेज दिया।

हड्डी को समझने और उसकी दिक्‍कतें दूर करने में माहिर रॉबिन एमएस हो चुके हैं। कुछ ही देर में रॉबिन मेरे होटल वाले कमरे में आये, जांचा, दवाएं और एक बड़ी बेल्‍ट पहनायी। साथ ही सुबह को कृष्‍णा नर्सिंग होम बुलाया। सुबह कुछ मित्र धमक पड़े, इसलिए नर्सिंग होम जाने में दोपहर हो गयी।

रॉबिन ने एक्‍सरे कराया, फिजियोथिरेपी हुई। कहा कि मेरी कमर और पीठ मामला कुछ दिन निरंतर इलाज चाहती है।
बहरहाल, आजकल मैं बहुत बिजी हूं। बिजी बोलें, तो बहुतै बिजी। दरअसल, एक बड़े अभियान में जुटा हूं न इसलिए। 17 साल हो चुका है, अब देखिये न जाने कब यह काम कम्‍पलीट हो जाए। यह काम नहीं, एक ठेका है। अब देखिये न, कि अब हालत यह है कि जब भी भौजी को मेरी खबर आसपास महसूस होती है, वे लपक कर मेरे लिए स्‍वादिष्‍ट भोजन तैयार करा लेती हैं। नर्सिंग होम की भीड़ से मुझे अलग कर पहले पूरे स्‍नेह और प्रेम के साथ छक कर भोजन करा देना आत्‍मीयता की पराकाष्‍ठा ही तो है।
तो साहब, मेरे इस प्रोजेक्‍ट का नाम है, भौजी-सहस्रनाम। इसमें हमारी भौजी सुमन सिंह के गुणों का बखान दर्ज किया जाएगा। भौजी-सहस्रनाम, यानी नाम एक कवित्‍त का। जिसमें स्‍नेह, आदर, प्रेम, धर्म, कविता, अनुसंधान, आध्‍यात्‍म, एकाग्रता और प्रदर्शन का भी धांसू समिश्रण होगा। और यह समिश्रण सफलता के साथ हो पाये, इसके लिए ढेर सारा मक्‍खन की जरूरत पड़ती होती है। इसके लिए मैं जब भी मौका मिलता है, भौजी की मक्‍खन-बाजी करता ही रहता हूं।
तो साहब, यह कविता बस यूं ही ठलुआही में नहीं बन पाती है। मैं उनको पूरा आश्‍वासन देता रहता हूं कि भौजी को समर्पित मेरा यह ग्रंथ भौजी-सहस्रनाम अब बस पूरा ही होने वाला है। हां, एक बार भौजी ने टोक दिया कि क्‍या हुआ उस महान-ग्रंथ का। कुछ है भी या पूरा मामला ही ठनठन-गोपाल है?
मैंने जवाब दिया, कि चूंकि आप एक दिव्‍य प्राणी हैं, इसलिए अब भौजी-सहस्रनाम के बजाय मैंने उसका नाम भौजी-कोटिनाम में कन्‍वर्ट कर लिया है। थोड़ा वक्‍त और लग सकता है, लेकिन जब भी होगा, अप्रतिम ही होगा।
लेकिन आजकल भौजी ठहाके लगा कर मेरे प्रयासों पर पद-प्रहार करती रहती हैं। करती रहें, मुझे कोई चिंता नहीं। बल्कि मैंने उनसे कह दिया कि वे मेरी शादी करा दें। फिर उठा ठहाका, बोलीं:- अब क्‍या खाक मुसलमान होंगे
मैंने आग्रह किया:- कोई अधेड़ महिला भी चल सकती है
भाभी ने ठेंगा दिखा दिया:- कोई गुंजाइश ही नहीं
मेरी जिद थी कि:- किसी विकलांग महिला से भी विवाह करने को तैयार हूं। बस यह जीवन संवर जाए, बस्‍स। 
सुमन भौजी खिल्‍ली उड़ाते हुए बोलीं:- लेकिन आपका तो उप्‍पर जाने का टाइम हो गया।
देख लीजिए। यह हैं हमारी सुमन भौजी। सुबह-सुबह फेसबुक पर अपनी झक्‍कास फोटो अपलोड कर अपने मित्रों को जुगाली करने का मसाला थमा देती हैं। लेकिन मेरी ख्‍वाहिशों, खुशियों और संतोष पर उनको तनिक भी रुचि नहीं है। एक तरफ मैं उनके व्‍यक्तित्‍व पर भौजी-सहस्रनाम नामक प्रशस्ति-गाथा में कन्‍वर्ट करते हुए उसको भौजी-कोटिनाम में तब्‍दील करने का भगारथी-प्रयास में जुटा रहता हूं, लेकिन हमारी भौजी तनिक भी नहीं चाहती हैं कि मैं हंसी-खुशी जी पाऊं।

1 thought on “भौजी हैं तो बहुत मस्‍त। लेकिन हमारी खुशी नहीं चाहतीं

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