सीतापुर पुलिस: पहले पैर बांध दिया, फिर गोली मार दी

बिटिया खबर

: गमछा से पैर बांध कर गोली मारी, फिर कपड़ा काट कर अलग किया : डीआईजी ने पचीस हजार का बताया : मुठभेड़ में केवल ढाई हजार रुपये बरामद हुए : घायल के पैर बंधे, चप्‍पल है और हाथ में अवैध तमंचा भी : पत्रकारों ने इस फर्जी मुठभेड़ पर खामोश, पूर्व आईजी विजय शंकर सिंह खफा :

कुमार सौवीर

लखनऊ : बस यूं ही। सीतापुर की पुलिस का मूड आया, तो उसने अपनी वाहवाही लूटने के लिए एक फर्जी मुठभेड़ कर डाली। इसके तहत पुलिस ने एक टुटपुंजिया लुच्‍चे-लफंगे व्‍यक्ति को पकड़ा। फर्जी मुठभेड़ के दौरान वह भाग न निकले, इसके लिए पहले तो उस के दोनों पैर एक गमछा से एकसाथ बांध दिया। फिर उसको गोली मार दी। गोली मार मारने के बाद पुलिस ने गमछे को काट कर उसके पैर अलग-अलग खोल दिये। इसी बीच पुलिस को उस लफंगे को आध्‍यात्मिक तथा विचारमग्‍न साबित करने के लिए उसे पीड़ा से परे दिखाया। इसके तहत उसकी चप्‍पल ठीक-ठाक पहनी दिखायी। फिर दाहिने हाथ में सिस्‍टमेटिक तरीके से तमंचा उसके हाथ में फिट करा दिया। दोनों पैर अलग-अलग पसार दिया। और जमीन पर पड़े उस व्‍यक्ति की फोटो खींच कर उसे मीडिया को जारी कर दिया। फोटो देख कर सभी पुलिसवाले गदगद हो गये। मुठभेड़ करने वाले पुलिसवालों की पीठ ठोंकी गयी। सभी चैनलों और अखबारों के अलावा भी सोशल मीडिया में भी पुलिसवालों ने अपनी जम कर वाहवाही करायी।
लेकिन इसी कवायद पूरी करने के जोश में मस्‍त पुलिसवालों से एक अपराध हो गया। वह यह कि जिस व्‍यक्ति को पुलिस ने पकड़ा, उसे गोली मारने के पहले उसके दोनों पैर एक गमछे से बांध लिया। फिर गोली मारी, और घायल को चारोंखाने चित्‍त जमीन पर पसार दिया। पैरों में चप्‍पलें भी दुरुस्‍त कर पहना डालीं और देसी तमंचा भी सलीके के साथ हाथ में फिट करा दिया। बेहद बचकाने अंदाज में। गोली मारने के बाद पैरों में बांधे गये गमछा को अलग-अलग खोलने के बजाय पुलिसवालों ने गमछे को बीचोंबीच से काट डाला। लेकिन इसमें भी बेहूदा किस्‍म की बेवकूफी भी कर डाली कि गमछे के दोनों टुकड़े अलग-अलग पैरों में बंधे ही छोड़ दिये। इसके बाद पुलिसवालों ने जमीन पर पसरे पड़े व्‍यक्ति की फोटो खिंचवायी और प्रेसनोट को मीडिया तथा अपने अधिकारियों तक भेज दिया। पत्रकार तो पहले से ही शायद सेट किये जा चुके थे पुलिसवालों द्वारा, इसलिए पत्रकारों ने इस घटना को पुलिस की जवांमर्दी, साहस, दिलेरी और कानून व आम आदमी की सुरक्षा के लिए सदैव तत्‍पर जवानों के तौर पर ढफली खूब बजायी। मीडिया में डंका बजा, तो लखनऊ के डीआईजी से लेकर सीतापुर के कप्‍तान भी खुश हो गये। उन्‍होंने आईजी, एडीजी और डीजीपी तक इस फर्जी सफलता की खबर पहुंचा दी।
हैरत तो तब हुई, जब सीतापुर के पत्रकार पुतान सिंह ने भी इस फोटो और इस प्रेस-नोट को जस का तस अपने फेसबुक वाल पर छाप दिया। हालांकि अब आज दोलत्‍ती ने पुतान सिंह की उस पोस्‍ट को खोजना शुरू किया, तो वह नहीं दिख पायी। कुछ भी हो, सीतापुर के किसी भी पत्रकार ने पुलिस की इस निहायत बेहूदा किस्‍म की बेवकूफी पर एक बार भी सवाल उठाने की जहमत नहीं उठायी।
अब देख लीजिए कि सीतापुर पुलिस ने यह फोटो और प्रेसनोट जारी किया था। प्रेसनोट के मुताबिक सीतापुर में आज दिनांक 06.05.2022 को जनपद सीतापुर में चोरों के शातिर गिरोह का वांछित शातिर चोर मोहित कश्यप पुत्र शिवराम निवासी आलमनगर नई आबादी कजियारा कोतवाली नगर सीतापुर को थाना कोतवाली नगर एवं क्राइम ब्रान्च की संयुक्त पुलिस टीम ने ग्रास फार्म बाईपास की तरफ निकट आरएमपी डिग्री कालेज से पुलिस मुठभेड़ में घायल होने के पश्चात गिरफ्तार करने में सफलता प्राप्त की है। जिसके कब्जे से मौके से 2500/-रु0 नगद, एक अदद अवैध तमन्चा व 04 अदद जिन्दा/खोखा कारतूस 315 बोर बरामद हुआ है। वांछित अभियुक्त की शीघ्र गिरफतारी सुनिश्चित करने हेतु पुलिस उपमहानिरीक्षक/पुलिस अधीक्षक महोदय द्वारा 25 हजार का इनाम घोषित किया गया था। उक्त शातिर चोर के विरुद्ध थाना कोतवाली नगर व हरगांव में चोरी/जानलेवा हमला व गैंगस्टर इत्यादि जैसे गम्भीर धाराओं के करीब आधा दर्जन अभियोग पंजीकृत हैं पुलिस कार्यवाही व बरामदगी के संबंध में अग्रिम वैधानिक कार्यवाही प्रचलित है।
दरअसल, सीतापुर की पुलिस ने यह जो करतूत की है, तीन बरस पहले हैदराबाद की पुलिस भी यही कर चुकी है। इसमें पुलिस ने तीन नाबालिग समेत चार लोगों को मुठभेड़ के नाम पर गोली से भून डाला था। मामला था हैदराबाद में एक महिला डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार के पकड़े गये चार तथाकथित आरोपियों की मौत। आपको बता दें कि उस वक्त हैदराबाद के कमिश्नर पुलिस सज्जनार को इस इनकाउंटर के लिए काफी वाहवाही मिली थी। लेकिन सन-19 में हुई इस पुलिस मुठभेड़ की जांच के लिए गठित न्यायिक जांच आयोग ने जांच में फर्जी पाया है। न्यायिक आयोग ने मुठभेड़ में शामिल 10 पुलिस अफसरों पर पर हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच कराने की सिफारिश की है।
इस महत्त्वपूर्ण मामले की जांच, सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्‍त जस्टिस सिरपुरकर आयोग द्वारा की गई थी। आयोग का निष्कर्ष है कि, “पुलिस का यह कथन कि, आरोपी ने पिस्तौल छीन ली और फरार होने की कोशिश की, पर विश्वास नहीं किया जा सकता। इन दलीलें सबूत के कोई अन्य आधार नहीं हैं। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मुठभेड़ में मारे गए चार आरोपियों में से तीन नाबालिग थे। अभियुक्तों पर जान बूझ कर इस तरह गोलियां चलाई गईं हैं ताकि वो मर जाएं।”
यूपी के रिटायर्ड विजय शंकर सिंह पुलिस की ऐसी हरकतों पर सख्‍त ऐतराज करते हैं। विजय शंकर सिंह का कहना है कि मुठभेड़ की खबरें अक्सर लोगों को बहुत रास आती है और वे अपराध नियंत्रण में इन मुठभेड़ों का बहुत योगदान मानते हैं। पर इस तरह के इनकाउंटर अपराध नियंत्रण के उपाय नहीं बल्कि अपने आप में ही अपराध हैं और वह भी एक जघन्य अपराध। जो मित्र इसे त्वरित न्याय या instant justice कहते हैं, वे यह जान लें कि, कानून को कानूनी तरह से ही लागू किया जा सकता है।

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