एक अद्भुत शख्सियत, जिसे मैं अक्सर धड़कनों में सुनता हूं

बिटिया खबर
: रत्‍नेश तिवारी की याद में एक स्मारिका ” रत्नाञ्जलि” में मैंने यह श्रद्धांजलियां अर्पित की थीं : समझ में नहीं आता की मैं आखिर तुम्हे क्या समझू : मूली मक्का से लेकर न जाने क्या क्या :

कुमार सौवीर
लखनऊ : समझ में नहीं आता कि मैं आखिर तुम्हे क्या समझू ! वैसे ये समझना , न समझना कोई महत्वपूर्ण होता नहीं। अपनो को पहचानने , बुलाने के लिए सम्बोधित करने जैसी कोई समस्या न तो पति – पत्नी के बीच होती है और न ही मित्रों के बीच। माता – पिता के साथ यह समस्या कभी होती ही नहीं . वे तो हर दिन अपने बच्चे को नए नाम से पुकारने की जुगत में रहते है न . मेरे लिए तो तुम भी वैसे ही हो। आखिर तुम हो क्या ?
एक दुश्मन : जिसने मुझे अपना करीबी जताने के लिए गरियाया भी – लेकिन अकेले में , और कभी कभार अपने खास लोगो के सामने। .
एक दोस्त : जिसने पूरी बेबाकी से जौनपुर को समझने में मेरी मदद की। .
एकभाई : जिसने पूरी आत्मीयता से मेरा ध्यान रखा। जौनपुर में मेरे नितांत अकेले जीवन को महीने में एकाध बार ही सही, लेकिन मुझे अन्न मुहैया कराने के लिए कभी अपने घर बुलाया तो कभी घर में बनी कोई खास चीज लेकर मेरे कमरे में पहुंच गया। बावजूद इसके की मेरे कमरे तक पहुचाने वाली अँधेरी घनेरी सीढ़ियां तुम्हे हमेशा बेहद कष्ट देती रही और जिसकी गवाही तुम्हारी जुबान की बजाय बेहाल चेहरा और हफता शरीर लगातार देता ही रहता था। .
एक निराला शख्सः : जिसे सिर्फ देखने के लिए ही मै अपने ऑफिस में बुला लेता था।
एक बेलौस इंसान : जिसने खबरों के स्तर पर तो खूब समीक्षा और आलोचना की लेकिन खुद की खबर छापने के लिए कभी इशारा तक नहीं किया।
एक झक्की मगर बहादुर आदमी : जिसमे किसी की भी आलोचना करने का अप्रतिम साहस और माद्दा था। .
एक छोटा भाई : जो मेरे हर ताने पर हो हो करके अपने शरीर को अनजाने में ही सही , हिला हिला कर हंस देता था और उसी में धुल जाती थी मेरी सारी बनावटी शिकायते और झुंझलाहट। .
एक गाइड : जिसने मुझे जौनपुर को समझने में सर्वाधिक सहायता की। मूली मक्का से लेकर न जाने क्या क्या …….
एक नैतिक शिक्षक :उन्ही ने तो विश्वास दिलाया था मुझे की जगदीश नारायण राय जैसे नेता बहुत कम होते हैं इस धरा पर . जिसने मुझे बताया की जागरण वाले ओम प्रकाश सिंह को मुझसे कुछ नाजायज़ ही सही मगर कुछ शिकायते हैं . और किसी को कुमार सौवीर जैसे शख्स से ऐसी शिकायतें नहीं होनी चाहिए , इसलिए मै उंनसे बात करू। तुम्ही ने बताया था की ओम प्रकाश जैसे लोग सामान्य नहीं होते और उनसे किसी भी कीमत पर समबन्ध नहीं टूटना चाहिए। तुम्हारी सलाह पर ही मैं जौनपुर की तैनाती छोड़ने के बावजूद ओम प्रकाश से मिला। और जैसा तुमने बताया था ओम प्रकाश वैसा ही मुझे मिला। वैसे मैं तो पहले से ही उसके बारे में जनता था लेकिन तुमने तो सोने को तपा कर देखा भी था
एक जीवन साथी : मेरे जौनपुर छोड़ने के बावजूद जिन पर कभी भी इस बात का फर्क नहीं पड़ा की मैँ अब जौनपुर में कभी भी नौकरी करने नहीं आऊंगा। मेरे संबन्ध हमेशा ही यथावत ही रहे।
एक रत्न वेत्ता : मैं कैसे भूल सकता हूँ की तुमने मुझे शायर जमाली अहमद निसार और न अजाने किन किन रत्नो से मुझे मिलवाया था। तुमने ही तो बताया था की जौनपुर क्या था , क्या है और क्या होगा। जौनपुर में रह कर मशहूर शायर मुनव्वर राणा से घंटो बात करना मैं कैसे भूल सकता हूँ . मैं कैसे भूल सकता हूँ की तुम्हारी हर मिस काल जवाब देने का मतलब हर बार का आधा पौना घंटा तक मेरे मोबाइल का बिल बढ़ाना हुआ था। .
रत्नेश , जौनपुर छोड़ने के बाद मैंने तुम्हे मैंने बहुत खोजा। हर एक शख्स में , खुद में . लेकिन हैरत की बात है की तुम मुझे हर जगह मिले। और तो और , शब्दकोष में भी तुमसे भेंट हुई। आखिर रत्नों के ईश्वर को कौन नहीं खोज सकता ? तुम तो प्रेम, भाई – चारा, अपनत्व के समुद्र हो। तुम ही तो हो जानकारियों और गुणों के कुबेर। मुझे तो तुम हमेशा मिले . न चाहते हुए भी मिले। जब मै परेशान हुआ , तुम हाज़िर . हलके मूड में हुआ , तुम मौजूद . किसी शेर शायरी की ज़रुरत हुई नहीं किबेवज़ह हाज़िर . किसी मसले पर राय लेनी हुई तुम हाज़िर . हर जगह तुम ही तुम मिले ,हाँ जौनपुर में तो तुम बेवजह व्यस्त ज़रूर रहते थे सबसे ज्यादा शंकर दोहरेवाले की दुकान पर , यह जानते हुए कि भी वहां रोगों का निवाला बांटा जाता है। लेकिन तुम्हारी जैसी जौनपुर की विरासत को आखिर समझाये भी तो कौन ? .
फिर आज कहां चले गए ? जरा वक्त मिले तो बताना , लेकिन ज़रा जल्द। मुझे तुम्हारी हमेशा की तरह सख्त ज़रुरत है। तुम आसमान की बुलंदियों से भले ही न लौट पाओ लेकिन ज़रुरत पड़े तो मुझे भी बुला लेना . अरे बेवक़ूफ़ ! अकेले जाने से पहले आखिर इतना तो सोच लेता मेरे जैसे रत्नो के बिना भी आखिर कोई रत्नेश बन सकता है ? कम से कम मुझे तो गर्व है की मैं रत्नेश के रत्न भंडार का ही रत्न हूँ। . और इतिहास गवाह है की शर्की सल्तनत के दौर से भी पहले शायद से ही सिराज़ –ए -हिन्द की यह ज़मीन कभी भी तुम्हारे जैसे रत्नों को हमेशा अपनी यादों में ही सजोये रहते है। आमीन !
( 4 नवम्बर 2008 को रत्‍नेश तिवारी ने महाप्रयाण किया था। अगली पुण्‍यतिथि पर रत्‍नेश की याद में एक स्मारिका ” रत्नाञ्जलि” में मैंने यह श्रद्धांजलियां अर्पित की थीं। )

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