ओए संपादक ! अरे यह कौये क्‍या होता है रे ?

बिटिया खबर

: नासा से संज्ञा को क्रिया में तब्‍दील करने की शिक्षा लेकर आये हैं बिड़ला वाले हिन्‍दुस्‍तान के लपड़झंडू पत्रकार लोग : कबाड़ी का धंधा छोड़ कर हिन्‍दुस्‍तान में घुसे इन लोगों को कौआ और कौये का फर्क तक नहीं : बेशर्मी के साथ पाठकों के सामने परोस डाला बिजली पर कौये की करतूत :

कुमार सौवीर

लखनऊ : प्रख्‍यात उद्योगपति रहे घनश्‍याम दास बिड़ला जी ने हिन्‍दुस्‍तान और हिन्‍दुस्‍तान टाइम्‍स नाम के अखबार शुरू किये थे। अपने तेवर, शैली, भाषा और असरकारी प्रस्‍तुति के चलते यह अखबार लम्‍बे समय तक समाचारों की दुनिया में लगातार अव्‍वल बना ही रहा। हिन्‍दुस्‍तान की समूह संपादक रहीं मृणाल पांडेय के समय तक यह सर्वोच्‍च पायदान तक पहुंच गया था। उनके समय तक इस अखबार में खबरों को लेकर चमत्‍कारी प्रयोगों की धूम बनी रही। लेकिन मृणाल जी के हटते ही इस अखबार का अवसान प्रारम्‍भ हो गया। हालत यह हो गयी है कि यह अखबार अब कबाड़ी या चिलम-फूंकने वालों को भी मात कर रहा है। यहां अब खबर से ज्‍यादा तवज्‍जो तो लिंग-वर्द्धक यंत्र और शारीरिक कमजोरी पर ही दिया जाता है। खबर तो गयी तेल लेने। पूरा अखबार की बच्‍चों की ट्टटी-पॉटी पोंछने की स्‍तर तक पहुंच चुका है।
ताजा घटना तो लखनऊ में बिजली वाली दुर्दशा की खबर पर घटी, जब इस अखबार ने संज्ञा को बाकायदा क्रिया में तब्‍दील कर डाला। देख लीजिए खबर, जिसमें कौआ को कौये के तौर पर पेश कर‍ दिया है। यह एक अभूतपूर्व भाषा प्रयोग है। यह प्रयोग साबित करता है कि यह अखबार अब वाट्सऐप यूनिवर्सिटी से संचालित हो रहा है, जिसके मुताबिक इस अखबार के बड़े-बड़े पत्रकार नासा से भाषा-विज्ञान सीख कर कबाड़ी का अपना धंधा छोड़ कर पत्रकारिता में घुस गये हैं।
नतीजा यह है कि इस अखबार के अधिकांश जिला प्रभारी लोग अखबार के बजाय अपने-अपने धंधे में मशगूल हैं। कोई खबरों की दूकान लगाये हैं, तो कोई धंधाबाजी में जुटा है। कोई अपनी जेब गरम करने में जुटे रहते हैं, तो कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो अपनी-अपनी पत्‍नी को एलआईसी, बीमा या म्‍युचुअल फंड के माध्‍यम से अफसर, नेता और धंधेबाजों को फांसते हैं।

 

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