: लवणासुर जैसे वृत्रासुर के अराजक-अत्याचार से जूझने के लिए दधीचि ने अपनी हड्डियां दीं : अपर्णा बिष्ट को बजबजाते तालाब में उतार तो दिया, पर कमल दिया, न टिकट : बढ़ई की इस मेहनत में देखिये कि कहां हैं प्रतीक, और कहां है शक्तिमान :
कुमार सौवीर
लखनऊ : बस यूं ही आज इस मकान पर एक काम से आया हूँ। निशातगंज के पास एक डाकघर के पास।
घर में कारपेंटर यानी लकड़ी का काम चल रहा है। जी हां, जी हां। लकड़ी की अहमियत का वृतांत सुनना शुरू कर देंगे तो आंखों से अविरल-गंगा बहनी शुरु हो जाएगी, जो महर्षि दधीचि से शुरु होकर भारतीय जन-मानस को आलोड़ित कर उन्हें सरल, आर्द्र और सम्पूर्ण मानव बनने का ईंट-गारा मुहैया कर देती है। ऐसी कथाएं हमारे और हमारे पूरे समाज, देश और राष्ट्र ही नहीं, सकल जगत में भावनाओं, निष्ठा और ध्येय के साथ ही त्याग की अमृत-वर्षा भी करती हैं। आदि-अनादि और सनातन।
ऐसी कथाएं बताती है कि कैसे लवणासुर जैसे वृत्रासुर की अराजक, अत्याचारी और हाहाकारी अमानवीय माहौल में बेहाल और पीड़ित जनता को जब कोई शस्त्र या अस्त्र तक निर्मूल, अस्त औऱ असरकारी हो गया तो दधीचि महर्षि ने अपनी हड्डियों से शस्त्र बनाने के लिए अपनी देह-त्याग कर दिया। इसके बाद उन्ही हड्डियों से इंद्र ने बज्र बनाया और वृत्रासुर का समूल नाश कर दिया। दधीचि ने समाज के हित में यह जो बलिदान किया, जिसका जवाब किसी भी धर्म, क्षेत्र अथवा किसी संप्रदाय में कहीं भी नहीं है। दधीचि का नाम दध्यंच और दध्यांग भी था।
अब चूंकि नैमिषारण्य को जब से नीमसार में तब्दील कर दिया गया है, वहां से तर्क के बजाय मूर्खता-पूर्ण अंधी आस्थाएं ही तिर रही हैं, जैसे किसी तालाब में किसी ने डीजल फेंक दिया गया है। इस पराभव के चलते इस नीमसार ही नहीं, सभी धार्मिक क्षेत्रों वाले पुण्य-स्थलों पर केवल राजनीति और लूटपाट ही चलती है। कहने को तो दधीचि की एक जन्म-स्थली नीमसार भी है, लेकिन सच बात तो यही है कि महर्षि दधीचि को पूरा राजस्थान मानता और पूजता है।
बहरहाल, जोधपुर में हाईकोर्ट के पास एक बड़ा चौराहा भी एक बड़ी प्रतिमा के तौर पर महर्षि दधीचि के नाम पर मौजूद है। उन्हीं दधीचि महर्षि की हड्डियों को ही लकड़ी कहा जाता है, जिसे आप जैसा मन करे, इच्छानुसार तोड़, मरोड़ कर सकते हैं। और सच बात यही है कि किसी भी इमारत में लगी महर्षि दधीचि की हड्डियों का इस्तेमाल ही उस इमारत के मालिक, रहनेवालों, आने-जाने वालों और देखने वालों की सोच को प्रमाणित करता है।
यहां जुटे ये बढ़ई से बात कीजिये तो वे सब सच कुबूल देंगे। वे बता देंगे कि जो प्लाईवुड बोर्ड जमीन पर पड़ा है वह प्रतीक नामक कंपनी का है। जबकि एक दूसरा बढ़ई जिस प्लाईवुड बोर्ड को अपनी गोद में संभाले है, वह है शक्तिमान कम्पनी का है।
अब इस मामले में यह पोलिटिकल एंगल देखिये। हाल ही प्रतीक मार्का अपर्णा बिष्ट यादव को भाजपा ने कमल पकड़ा कर बजबजाते तालाब में उतार तो दिया, लेकिन टिकट नहीं दिया। चारों ओर छीछालेदर जम कर हुई।
जबकि शक्तिमान अब प्रवाहमान है, रफ्तार भी है और सनसनाता हुआ है, बगल में सायकिल भी नमूदार है।
अब यह बढई अगर इस शक्तिमान को अपनी गोद में संभाले है, तो माहौल स्पष्ट है।
ओए कमल-गट्टों ! ये कमल कहाँ फेंक दिया है रे भूतनी के ?
बदजुबान पत्रकार