मूर्ख राजा, हत्‍यारे सिपाही और डरी जनता का किस्‍सा है करथिया कांड

बिटिया खबर

: रेप पर न्‍याय मांगते पति को भून डाला, बीवी की मॉब-लिंचिंग भी : सच का कत्‍ल, योगी ने बच्‍चों को उत्‍सव मनाने लखनऊ बुलाया : सुभाष के गुप्‍तांग पर कई दिनों तक करंट लगाया था पुलिस ने : दावा कि सेना का बम है, मिला पटाखा सुतली-बम : निरा झूठा निकला आईजी मोहित अग्रवाल, बच्‍ची गांव में ही है :

कुमार सौवीर

लखनऊ : फर्रूखाबाद में आज जहां मतदान चल रहा है, वहीं पर दो साल पहले अपनी करतूतों पर मिट्टी डालने के लिए पुलिसवालों ने एक दम्‍पत्ति को ही मौत के घाट उतार दिया था। पुलिस का दावा था कि सुभाष बाथम ने 23 करोड़ रुपयों की रंगदारी वसूलने के लिए 23 बच्‍चों को अपहृत कर लिया था, जबकि दोलत्‍ती को स्‍थानीय ग्रामीणों ने बताया था कि सुभाष झक्‍की-सनकी शख्‍स था, और गांव के इन बच्‍चों को बेटी की जन्‍मदिन के लिए जुटाया था। कई ग्रामीणों ने यह भी बताया कि स्‍थानीय थाने के कुछ पुलिसवाले सुभाष की पत्‍नी के साथ दुराचार किया करते थे। जब पीडि़त पुलिस के पास गयी, तो स्‍वाट-टीम ने कई दिनों तक पीटा और उसके शिश्‍न पर करंट लगाया। लेकिन हादसे की वजह समझने के बजाय मुख्‍यमंत्री आदित्‍यनाथ योगी ने पुलिस की इस करतूत को जस्‍टीफाई किया और किसी जोरदार जश्‍न की तरह उन बच्‍चों को लखनऊ में अपने आवास पर जुटाया। योगी ने यह भी कह दिया कि इस हादसे में जिसकी करनी, वैसी भरनी जैसी कहावत चरितार्थ हो गयी है।
उधर फर्रुखाबाद के करथिया गांव में इस मामले में आईजी मोहित अग्रवाल ने खुद को हीरो के तौर पर पेश करते हुए सुभाष बाथम की इकलौती दो बरस की बेटी गौरी को गोद लेने का ऐलान किया था। मोहित अग्रवाल ने पूरी नौटंकी आयोजित कर अपनी वाहवाही लूट ली, लेकिन इस कांड के बाद ही यह बताया कि वह गौरी को पुलिस महकमा देखभाल करेगी और इसके लिए एक महिला सिपाही को जिम्‍मा दे दिया गया है। लेकिन यह भी एक कोरी नौटंकी साबित हुई, और आज हकीकत यह है कि गौरी अपनी बुआ के पास पिता सुभाष के घर में ही रह रही है। आपको बता दें कि उस समय यूपी के डीजीपी थे ओपी सिंह। लखनऊ के गोमतीनगर एपल कंपनी के रीजनल मैनेजर विवेक तिवारी को एक सिपाही ने गोली मार कर हत्‍या की, तो उस कांड पर ओपी सिंह ने पुलिसवालों को ही भड़का कर पुलिसबल में असंतोष और विरोध का माहौल बना डाला था। कुल मिला कर इस कांड पर सबसे शर्मनाक व्‍यवहार रहा मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ, तब के डीजीपी ओपी सिंह और आईजी मोहित अग्रवाल का।
31 जनवरी-20 को हुए फर्रुखाबाद में हुए इस कांड में बहुत बाजारू, घटिया और बचपनापूर्ण पटकथा लिखी थी पुलिस ने। पुलिस कहानी में सिर्फ झोल ही झोल उलझे हैं। कांड में पुलिस अपने चरित्र के मुताबिक ही बयान-वीरत्‍व का प्रदर्शन करती रही। आईजी मोहित अग्रवाल भी बात-बात पर बदलते रहे अपनी गणित, तर्क और बयान। लेकिन पुलिस तो पुलिस, शर्मनाक हालत तो यह रही कि इस कांड की रिपोर्टिंग में जुटने का नाटक कर रहे पत्रकारों ने तो पुलिस के खरीदे गए गुलाम की तरह अपनी कलम रगड़नी शुरू कर दीं। पुलिस का जयजयकारा लगाने की हालत आज भी जारी है।
पुलिस की कहानी के मुताबिक फर्रुखाबाद के मोहम्मदाबाद कोतवाली वाले गांव करथिया में अपनी पुत्री के जन्मदिन के बहाने सुभाष बाथम एक सजायाफ्ता अपराधी ने 23 बच्चों को गुरुवार को घर में बंधक बना लिया था। पुलिस ने नौ घंटे की कड़ी मशक्कत कर सुभाष को रात एक बजे मार गिराया और बच्चों को 11 घंटे बाद मुक्त करा लिया। पुलिस ने सुभाष की पुत्री को कब्जे में लिया तो गांव के लोगों ने उसकी पत्नी रूबी को पीट-पीटकर अधमरा कर दिया। सैफई ले जाते समय रूबी ने भी दम तोड़ दिया था।
लेकिन दोलत्‍ती की छानबीन में कई चौंकाने सवाल मिले हैं। कहानी सिर्फ यहीं तक नहीं है। यहां के 23 बच्‍चों को कथित रूप से अगवा कर उनके घरवालों से प्रति बच्‍चा एक-एक करोड़ रूपयों की फिरौती मांगे जाने वाले तथाकथित हादसे में पसरे-बुने गये तार और तारतम्‍यता ठीक ऐसे ही नहीं हैं, जिसे पुलिस ने फैलाया ही नहीं, बल्कि तथ्‍यों को बुनने, धोने, छीपने, पसराने और सुखाने की तोड़फोड़नुमा कोशिशें भी की हैं। सच तो यही है कि इस पूरे मामले में पुलिस ने जो कहानी का दोशाला बुना है, उसमें अधिकांश तथ्‍य पूरी तरह झूठ पर ही सिले गये हैं। चाहे इस हादसे में मारे गये सुभाष बाथम और उसकी पत्‍नी के किरदार का मामला हो, बच्‍चों को जन्‍मदिन पार्टी आयोजित करने के लिए बच्‍चों को बुलाने का मामला हो, बेहाल बच्‍चों के घरवालों से फिरौती मांगने का मामला हो, मुफ्त में बंटने वाले सरकारी आवास की मांग को करोड़ों की फिरौती में तब्‍दील करने की बात हो, सुभाष पत्‍नी को भारी पुलिस बल की मौजूदगी में भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मार डालने की बात हो, या फिर इस घटना में सुभाष के मकान को 12 घंटों तक पुलिस द्वारा की गयी घेराबंदी का मामला हो, सब की सब कहानी में सिर्फ झोल ही झोल है।
दोलत्‍ती की जांच में तो एक भयावह कांड साबित हुआ। दरअसल, दर्द जब भी असह्य और हर सीमाएं से परे होने लगता है तो ठीक ऐसा ही होता है, जैसा फर्रूखाबाद में हुआ। यहां के करथिया गांव के रहने वाले सुभाष बाथम ने जो कुछ भी किया, वह तो उसका दर्द था ही जिसके लिए उसने प्रतिशोध लेने की सारी तैयारियां कर डालीं। लेकिन उसका जो जवाब पुलिस ने दिया, वह इंसानियत को ही चकनाचूर कर गया। पुलिस ने सुभाष बाथम तो फर्जी एनकाउंटर में गोलियों से भून डाला, जबकि घटनास्‍थल पर मौजूद भीड़ को पूरी छूट दे दी कि वह सुभाष बाथम की पत्‍नी को मॉब-लिंचिंग कर दे।
जिला मुख्‍यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर गांव है करथिया गांव। आबादी है तेरह सौ के आसपास। ज्‍यादातर पिछड़ी जाति के लोग हैं यहां, और अधिकांश लोग अपनी रोजी-रोटी के लिए पंजाब जाने वाली ट्रेन पकड़ते हैं। बूढ़े, महिलाएं और बच्‍चे यहीं गांव में ही रहते हैं। लेकिन सुभाष बाथम यहीं गांव में रहता था। अपनी बिना ब्‍याही बीवी रूबी और एक दो बरस की बेटी गौरी के साथ उसकी जिन्‍दगी मुश्किलों के साथ ही बीत रही थी।
आमदनी का कोई ठोस जरिया था ही नहीं सुभाष के पास, सिवाय इसके कि वह ग्रामीण किसानों के यहां खेत मजूरी करे। लेकिन इसमें न तो कोई पर्याप्‍त आमदनी होती थी, और न ही कोई स्‍थाई भविष्‍य। गांव के लोगों ने बताया कि इसी बीच उसने ग्राम प्रधान के पति से सरकारी शौचालय और सरकारी मकान देने की गुजारिश की, तो प्रधान-पति ने उसे सार्वजनिक रूप से उसे फटकारा और कहा कि सरकारी योजनाओं के लिए मोटी रकम अदा करनी होती है। बिना अफसर की जेब गरम किये कोई भी योजना का लाभ किसी को नहीं मिल सकता। यह करीब दो बरस पुराना किस्‍सा है।
बढ़ई जाति के लोगों को ही बाथम कहा जाता है। सुभाष इसी बढई जाति का था। लेकिन अपने आसपास के लोगों से उसका कोई लेना-देना ही नही होता था। वजह थी वही आर्थिक संकट से उपजी हताशा, उपेक्षा और आत्‍मकेंद्रित होते जाने की हालत, जिसने संतोष को खब्‍ती यानी अवसाद तक पहुंचा डाला था। जेब और सामाजिक हालत कंगाल थी। ऐसी हालत में सुभाष बाथम शादी नहीं कर पाया। लेकिन कुछ बरस पहले एक शादी में उसकी आंखें रूबी नाम की एक युवती से लड़ी थी, और संतोष उस बिना ब्‍याही रूबी को अपने घर ले आया। लेकिन इससे गांव में उसकी हालत और दयनीय हो गयी। रूबी कठेरिया जाति की थी, जिसे धानुक कहा जाता है। यह जाति सुवर पालन में मशहूर है। इससे गांव से उसका रहा-बचा रिश्‍ता भी हमेशा के लिए टूट गया। दो बरस पहले रूबी ने गौरी को जन्‍म दिया।
लेकिन भूख की समस्‍या का समाधान नहीं हो पा रहा था। ऐसे में सुभाष ने कच्‍ची शराब और हल्‍की-फुल्की चोरी-सियारी का धंधा भी थाम लिया। पुलिस का कहना है कि एक दिन एक दूकान से पाइप चोरी होने के मामले में संतोष पकड़ा गया। हालांकि बीस बरस पहले भी सुभाष को अपने मौसा की हत्‍या के मामले में जेल जाना पड़ा था, लेकिन चोरी जैसा कोई आरोप उस पर कभी भी आयद नहीं हुआ था। पाइप चोरी के मामले में उसकी जिन्‍दगी ही तबाह होने लगी। अमर उजाला के जिला प्रभारी सुबोध कुमार दुबे बताते हैं कि इस मामले में पुलिस की स्‍वाट यानी एसओजी-टीम ने उसे दबोचा था, और उसके बाद से ही सुभाष पर भयावह प्रताड़ना का दौर शुरू हो गया। पता चला है कि इस मामले में एसओजी के सिपाहियों ने सुभाष को भयावह यंत्रणाएं दीं। उसके साथ क्‍या-क्‍या हुआ, उसका अंदाज केवल इसी तथ्‍य से लगा सकते हैं कि पुलिसवालों ने सुभाष के गुप्‍तांग यानी शिश्‍न पर कई-कई दिनों तक करंट के झटके तक लगाये थे। सुबोध दुबे बताते हैं कि 30 जनवरी की घटना के दौरान लगातार यही मांग कर रहा था कि उसे और कुछ नहीं चाहिए, बस एसओजी के सचिंद्र और अतुल तिवारी को पकड़ लाओ। मैं उससे हिसाब पूरा कर लूंगा, बस।
सवाल यह है कि सुभाष यह मांग क्‍यों कर रहा था। इसका जवाब उस घटना के दौरान सुभाष बाथम खुद ही चिल्‍ला-चिल्‍ला कर खुलासा करता था। चश्‍मदीद बताते हैं कि संतोष बाथम का कहना था कि जब वह थाना समेत कई स्‍थानों में बंद रखा गया था, उस दौरान उसकी बिन-ब्‍याही पत्‍नी रूबी उसे छुड़ाने के लिए पहुंची तो पुलिसवालों ने कई दिनों तक और कई बार बलात्‍कार किया था। यह सिलसिला कई दिनों तक चला, और उसके बाद सुभाष को पुलिस ने दफा-25 में जेल भेज दिया। दफा-25 के बारे में आपको बता दें कि जन-चर्चाओं के मुताबिक इस धारा के तहत सिर्फ फर्जी तरीके से लोगों को फंसा कर उन्‍हें जेल रवाना कर देती है। दोलत्‍ती संवाददाता से बातचीत में फर्रूखाबाद के जिलाधिकारी मानवेंद्र सिंह ने माना है कि उस दौरान सुभाष गुप्‍तांग में करंट लगाने और उसकी पत्‍नी पर बलात्‍कार जैसे आरोप पुलिसवालों पर लगा रहा था।
पुलिस और प्रशासन ने इस हादसे में जो भी तथ्‍य प्रस्‍तुत किये हैं, वह अपने आप में निहायत बचकाना और घटिया भी हैं। मसलन, फर्रूखाबाद के सुतली बम को बम के तौर पर पेश कर सुभाष बाथम को अनपढ़ वैज्ञानिक करार देना। बयान देना कि वहां असलहों का जखीरा था, जो एक पखवाड़े तक युद्ध की हालत तक बना सकता था। पत्रकार तो बढ़-चढ़ कर पुलिसिया कहानी को ही सच का मुलम्‍मा चढ़ाने में जुटे रहे। पुलिसवाले और डीएम बोले 23 करोड़ मांगा। फिर पुलिस बोली कि सरकारी आवास मांगा था। लेकिन फिर बोले कि नहीं, सुभाष बाथम की साजिश तो वहां एक भयावह नजारा पैदा करना ही था।
फर्रुखाबाद में करथिया गांव में एक ऐसा हादसा हो गया, जिसकी याद में अब इस गांव, जवांर और पूरे इलाके में पुश्‍तें सहमती रहेंगी। यहां के एक कमअक्‍ल ग्रामीण सुभाष बाथम ने यहां जो करतूत कर डाली, जिसका अंजाम उसकी और उसकी पत्नी की भी मौत के रूप में सामने आया। इसके साथ ही नए-नए किस्‍से बुने गये, जिसे मनचाही धार दे डाली पत्रकारों ने। पुलिस की जुबानी हर झूठ कहानी को पत्रकारों ने ब्रह्म-वाक्‍य मान कर उसे पाठकों-दर्शकों तक को पेश कर दिया। यह समझे बिना ही, कि उसमें कोई सच है भी या नहीं। झूठी पुलिसिया कहानियों को यहां के पत्रकारों ने ईश-प्रार्थना की तरह कैच किया और अखबार का सादा कागज गंदा करना शुरू कर दिया। यही तो वे पत्रकार हैं, जो समाज में छीछालेदर करते हैं, और लोक-विश्वास को खुर्द-बुर्द करते रहते हैं। मकसद सिर्फ इतना कि वे पुलिसवालों का कृपापात्र बने रहें। इसके लिए यह पत्रकार लोग एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ मचाते रहते हैं।
आखिर क्‍या वजह थी कि उस ऑपरेशन के दौरान मौजूद रहे आईजी मोहित अग्रवाल ने लगातार झूठ बोला और इस पूरे कांड को पूरी तरह बचकाना ही नहीं, बल्कि मूर्खतापूर्ण और षड्यंत्रपूर्ण भी बना डाला। मोहित अग्रवाल ने अपनी मर्दानगी के साथ बयान दिया था कि वहां भारी तादात में सलाह और गोला-बारूद है वह कल्पना से परे है। मोहित का कहना था कि सुभाष बाथम के पास जितना गोला-बारूद था, उसे 3 से 5 दिन तक वह पुलिस से टक्कर ले सकता था। लेकिन इसके अगले ही दिन मोहित अग्रवाल ने अपना पैंतरा तेज किया और ऐलान किया कि सुभाष के पास 10 से 15 दिन तक पुलिस से जूझने का असलहा और 12 गोला बारूद मौजूद था। लेकिन जिस तरीके से बरामदगी के बारे में पुलिस ने पैंतरा बदला है वह साबित करता है सारे गोला-बारूद दीपावली से बचे सुतली-बम जैसे पटाखे ही थे।
आईजी के बयान को जरा गौर कीजिए न। वे कहते हैं कि सुभाष कश्यप के पास ब्राउन पाउडर था जो बारूद था, लेकिन इस पर कोई भी जवाब ही नहीं दिया है कि मोहित अग्रवाल ने कि ब्राउन पाउडर तो बाजरा का आटा और चूल्‍हे की राख भी हो सकता है। विधानसभा के भीतर जो भयानक विस्‍फोटक मिलने का हल्‍ला मचा था, वह बाद में तम्‍बाकू मलने वाला चूना था। मोहित का दावा था कि सुभाष के पास 15 दिनों तक पुलिस से युद्ध से कर पाने की क्षमता वाला गोला-बारूद सुभाष के पास था, लेकिन अब वह कहां है। मोहित बोले थे कि उसके पास 15 किलो का सिलेंडर-बम था। लेकिन आईजी को यह तक नहीं पता कि बम-डिस्‍पोज करने वाली टीम के हाथों में था जो सिलेंडर दिख रहा है, उसका वजन 15 किलो नहीं, मात्र 5 किलो था। घटना के दिन पहले दिन आईजी ने बयान दिया था कि वहां चली एक बम विस्फोट से 5 पुलिसवाले घायल हुए लेकिन हकीकत यह थी कि वहां कोई भी पुलिसवाला ऐसा घायल नहीं हुआ, और न ही किसी का खून ही निकला। हां, घर के बाहर बिना चिनाई वाली दीवार एक हल्‍के से धमाके से जहां की तहां ढह गई थी। हां, धूल जरूर उड़ी थी। लेकिन अगले दिन पत्रकारों से बातचीत के दौरान आईजी ने बताया कि सुभाष की गोली उनके और उनके अलावा पांच अन्‍य पुलिसवालों पर भी लगी थी। लेकिन बुलेटप्रूफ जैकेट के चलते वे भी बच गए।
मोहित अग्रवाल यह बिलकुल नहीं बताते हैं कि जब तकरीबन 400 से ज्यादा पुलिसवालों की तैनाती मौके पर थी, ऐसी हालत में वहां भीड़ का जमावड़ा कैसे लग गया। हमने इस और ऐसे सवालों को खोजने के लिए फर्रूखाबाद के पुलिस अधीक्षक से लेकर मोहम्‍मदाबाद के कोतवाल तक को सम्‍पर्क किया, लेकिन एसपी ने पीआरओ ने फोन उठाया लेकिन फोन करवाने से असमर्थता व्‍यक्‍त कर दी।
भीड़ को दूर क्यों नहीं रखा पुलिस न? वह भी तब जब यह पूरा अभियान 11 घंटे से चलने की नौबत पाकर लगातार गम्‍भीर होता जा रहा था। आखिर वह कौन सी मजबूरी थी जिसमें पुलिस में भीड़ को अपने करीब आने दिया और सुभाष बाथम की पत्नी को इसी भीड़ ने बुरी तरह पीट दिया? क्या वजह थी रात एक बज कर बीस मिनट पर सुभाष की मौत के बाद मोहित अग्रवाल ने बयान दिया कि रूबी की मौत हो गई है और उसके कारण का खुलासा उसके पोस्टमार्टम के बाद ही हो पाएगा। लेकिन उसके ठीक ढाई-तीन घंटे बाद सुबह चार बजे यही रूबी जिला लोहिया अस्पताल में जिंदा कैसे मिली? जबकि घटनास्‍थल से जिला अस्‍पताल की दूरी अधिकतम 20 मिनट थी। यह दावा किया जा सकता है कि मौके से निकाल कर पुलिस पहले रूबी को मोहम्‍मदाबाद सामुदायिक अस्‍पताल ले गयी थी, लेकिन यहां सवाल कई हैं कि रूबी की हालत अगर गंभीर थी, तो उसी पीएचसी क्‍यों ले जाया गया, और फिर यह भी इसके बावजूद तीन घंटों तक का अंतराल किन कारणों से खींचा गया।
यह भी कि जब रूबी की हालत को जिला अस्‍पताल में डॉक्टरों ने बहुत गंभीर नहीं माना था और कहा था कि वे रूबी खतरे से बाहर है और वे अब उसे संभाल सकते हैं। लेकिन अस्पताल के कुछ कर्मचारियों ने दोलत्‍ती संवाददाता को बताया कि पुलिसवालों के दबाव में डॉक्टरों ने रूबी को इटावा के सै‍फई मेडिकल कालेज रेफर कर दिया था। मेडिकल कॉलेज से जब सुबह 8 बजे रूबी दोबारा जिला अस्पताल वापस लाई गई तो उसे वह मर चुकी थी। तब डॉक्टरों ने बताया कि रूबी के सिर पर गंभीर चोटें आयी थीं, जिसके चलते उसकी मृत्‍यु हो गयी। ऐसी हालत में रूबी को इतनी चोट कैसे मिली? फर्रूखाबाद के जिलाधिकारी मानवेंद्र सिंह का कहना है कि उन्‍हें रूबी के जिन्‍दा में रहने और फिर उसे सैफई भेजे जाने के दौरान भी जिन्‍दा होने के बावजूद आधी रात एक बज कर बीस मिनट पर उसकी मौत का ऐलान आईजी द्वारा किये जाने की जानकारी नहीं है। उनका कहना है कि इस बारे में वे खुद अपने स्‍तर से जानकारी हासिल करने की कोशिश करेंगे।
इस मामले में फिरौती वाली मांग किसी के भी गले से नीचे नहीं रही है। कहा जा रहा है कि ग्रामीणों से 23 करोड़ की फिरौती मांग रहा था सुभाष। लेकिन न पुलिस के पास इसका जवाब है और न ही किसी पत्रकार ने इस पर कोई सवाल प्रशासन या पुलिस से पूछा कि 23 करोड़ रूपया और हाईवे पर एक बीघा जमीन की फिरौती वसूल कर सुभाष आखिरकार भागता कहां। फिरौती की वसूल करने के बाद क्‍या पुलिस उसको रिहा कर देती। ऐसी हालत में पुलिस के पास तो सबसे बढिया तरीका यही था कि वह सुभाष की मांग मान लेती, और फिर उसे आसानी से गिरफ्तार कर लेती। लेकिन आईजी मोहित अग्रवाल का एजेंडा उस समस्‍या को सुलझाना नहीं, बल्कि अपने आकाओं को खुश कराना ही था।
सवाल यह है कि आखिर फिरौती की बात किसने, कैसे और क्‍यों फैलायी। खास तौर पर तब जब मौके पर आईजी मोहित अग्रवाल की मौजूदगी लगातार बनी ही थी। फर्रूखाबाद के एक बड़े अखबार के एक प्रभारी ने अपना नाम न बताये जाने की शर्त पर दोलत्‍ती को बताया कि बंधक बनाये गये बच्‍चों से प्रति बच्‍चा की एवज में एक-एक करोड रूपयों की बात पूरे फलक में सुनी ही नहीं गयी। हां, इस मामले में सुभाष से बातचीत में कर रहे उसके एक मित्र ने ही सुभाष से कहा था कि बच्‍चों को छोड़ दो, हम तुम को कुछ पैसा दिलवा देंगे। बस, पुलिस ने यह बात सुनी, पुलिस ने आईजी को बताया, और आईजी ने लखनऊ में मौजूद अपने आका के कानों तक यह खुफिया जानकारी फुसफुसा कर पहुंचा दी। आका का दिल बल्लियां उछलने लगा। उसे लगा कि इससे बढि़या मस्‍त और क्‍या हो सकता है उसकी विदाई के समारोह में। फिर क्‍या था, प्रति बच्‍चा एक करोड़ रूपया की फिरौती की मांग फिजां में तैरा दी गयीं।
सबसे बड़ा शर्मनाक व्‍यवहार रहा तब के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ, डीजीपी ओपी सिंह और आईजी मोहित अग्रवाल का। घटना के बाद आईजी मोहित अग्रवाल ने दावा किया कि अनाथ बच्‍ची को हम गोद लेंगे, अब कहते हैं कि हम गोद लेने वालों को खोजने में जुटे हैं। पहले तो कहा था कि बच्ची पर आने वाला पूरा खर्चा हम करेंगे, अब बोलते हैं कि इसके लिए कानूनी प्रक्रिया खोज रहे हैं। पहले कहा था कि उसे अपनी तरह आईपीएस या आईएएस बनाएंगे, अब बोले कि यह जिम्‍मा पुलिस विभाग का है। पहले कहा था हम पूरी जिम्मेदारी उठाएंगे, आप कहते हैं कि बच्‍ची के परिवारीजनों की प्रतीक्षा कर रहे हैं। पहले बोले थे कि बच्‍ची की जिम्‍मेदारी हम सब की है और मैं उसे संभाल लूंगा, अब बोलते हैं कि दूसरे लोगों को गोद दिलाएंगे।
उस दौरान डीजीपी ओपी सिंह से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अमित शाह व नरेंद्र मोदी तक ने पुलिस को तारीफ करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। अपने पक्ष में गर्म तवा देखकर मौका ताड़ चुके पुलिस के आईजी मोहित अग्रवाल ने अपनी पीठ खुद ही ठोंक ली। इसके लिए खुद ही सारे इंतजाम कर डाले, ताकि उस तैयारी में कहीं कोई कोर-कसर न छूट जाए। इसमें फर्रूखाबाद के जिलाधिकारी और कानपुर के मंडलायुक्‍त भी आगे-आगे बोलने में एक-दूसरे को पछाड़ने की होड़ में थे। लेकिन इसमें सबसे ज्यादा डींगें मारी थी आईजी मोहित अग्रवाल ने। बोले कि अनाथ हो चुकी 2 वर्षीय बच्ची को मैं खुद पाल लूंगा, और उसे कभी भी एहसास नहीं कराएंगे कि वह किसी दुर्दांत हादसे के अभियुक्त की बेटी है।इस बच्ची को अपनी ही तरह आईपीएस या आईएस बनवाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा देंगे।
लेकिन उस दुर्भाग्‍यपूर्ण हादसे के तीन दिन बाद ही मोहित अग्रवाल ने अपने दावों पर पलटी मार डाली। फिर वे बोले कि सुभाष बाथम और रूबी की अनाथ बच्ची गौरी को पुलिस विभाग ने गोद लिया है। उसकी सारी पढ़ाई-लिखाई और उसके जीवन भर का खर्च भी विभाग ही उठाएगा। उनका कहना है कि इस बच्ची को फिलहाल एक महिला कांस्टेबल के पास रखा गया है।
आईजी मोहित अग्रवाल ने पत्रकारों को बताया कि गौरी के सर से उसके मां-बाप का साया उठने से समाज का हर व्‍यक्ति पूरी तरह व्‍यथित और परेशान था। उन्‍होंने बताया कि अभी तक सुभाष और रूबी के परिवारीजन लोग गौरी को सम्‍भालने के लिए सामने नहीं आए हैं। इसलिए फैसला किया गया है कि गौरी की देखभाल का जिम्मा पुलिस विभाग लेगा। लेकिन अब वह बच्‍ची अपनी बुआ के साथ अपने पिता-माता के घर में ही रह रही है।

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