ओ योगी ! मुझको भी इक रोटी दे दे: गिड़गिड़ा रहे हैं बड़े पत्रकार

मेरा कोना

: योगी आदित्‍यनाथ आज रात कुछ पत्रकारों को भोजन करायेंगे, इसकी चर्चाएं जंगल की आग की तरह भड़की है : सचिवालय से एनेक्‍सी और लोक-भवन तक इधर-उधर पूछातांछी कर रहे हैं पत्रकार : सूचना विभाग के अफसरों को खबर तक नहीं, हल्‍ला मोहल्‍ले भर में :

कुमार सौवीर

लखनऊ : क्‍या जमाना आ गया है। पहले कोई योगी-संन्‍यासी-बाबा-भिखारी-भिक्षु किसी गृहस्‍थ के दरवाजे पर गुहार लगाता था। चिमटा-खंजड़ी बजा कर अलख-निरंजन की अलख जगाता है। आवाज देता था कि भूखे को कोई रोटी दे दो बाबा। भिक्षामि देहि। बाबा, सवाली भूखा है। भगवान के नाम पर कुछ दे दो बच्चा। लेकिन अब साफ लगता है कि कलियुग आ चुका है। बाजी पलट चुकी है। दाता और भिक्षु की लकीरें इधर से उधर घूम चुकी हैं। अब दाता भिखारी हो चुका है, और भिखारी अब दाता की भूमिका में आ चुका है।

आपको यकीन नहीं आ रहा होगा। लेकिन हकीकत यही है। कम से कम उप्र सचिवालय और मुख्‍यमंत्री कार्यालय से लेकर अखबारों-मीडिया संस्‍थानों में आज यही उलटबांसी चल रही है। कोई किसी दूसरे से पूछ रहा है कि सुना है कि संन्‍यासी योगी बाबा ने आज रात को पत्रकारों को अपने आवास पर भोजन पर आमंत्रित किया है। तुम्‍हें भोजन पर आमंत्रित किया गया है, या नहीं। कौन-कौन जाएगा। किस-किस को न्‍यौता मिला है। लेकिन फलाने को तो बुलाया ही नहीं गया। देखो यार, कहीं ऐसा न हो कि भोजन के लिए  आमंत्रित बुलाये गये लोगों की लिस्‍ट में मेरा नाम है या नहीं। और अगर है तो जरा यह सावधानी जरूर रखना कि कहीं मेरा नाम न कट जाए। आजकल के पत्रकारों की राजनीति बहुत कुत्‍ता-गिरी की होती जा चुकी है। और हो, न हो, साले एक-दूसरे का नाम तक कटवा देते हैं अइस्‍साले हरामी।

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पत्रकार

हैरत की बात है कि यह खबर फिजां में तैर तो रही है, लेकिन उसकी पुष्टि करने के लिए कोई भी सामने नहीं आ रहा है। सूचना विभाग के अफसरों ने तो इस तरह की खबर या आमंत्रण की सूचना मिलने से ही इनकार कर दिया है। उनका कहना है कि इस बारे में उन्‍हें कोई भी जानकारी नहीं है। ऐसे में एनेक्‍सी में दिन भर डण्‍ड पेलने वाले पत्रकारों की हालत बहुत ही पतली हो चुकी है। कोई बताने को ही तैयार नहीं, ऐसे में अफवाहों का बाजार फल-फूल रहा है। सबसे बड़ी दिक्‍कत तो बकरदाढ़ी बढ़ाये पत्रकारों की है, जो बार-बार शौचालय में अपना मसाना खाली करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि इधर-उधर न टपक जाए।

इधर इन पत्रकारों का दिल बैठा जा रहा है, उधर कुछ मसखरे पत्रकार लाल-तीखी मिर्च तोड़-तोड़ कर ऐसे पत्रकारों की फटी में छुआने से बाज नहीं आ रहे हैं। ऐसे ही एक शख्‍स है नावेद शिकोह। उन्‍होंने तो ऐसे पत्रकारों पर ऐसा छुआ है, कि उनकी भभ्‍भाय रही है बुरी तरह। शिकोह लिखते हैं कि :-

छुट्कन हो जात है बड़का, आउर बड़कन छूट्का छोटे-बड़े पत्रकार का अन्तर हो तो गलत नही। लिमिटेशन की मजबूरी मैरिट को जन्म देती है। हाँ  छोटे और बड़े के आंकलन का दोष आपत्तिजनक है। पत्रकारिता मे जिसका बड़ा योगदान है। जिसने ईमानदारी से पत्रकारिता की है। जिसे लोग विभिन्न जाने-पहचाने अखबारो इत्यादि में लोग पढ़ते रहे है। जिनका लम्बा अनुभव है। जिसकी पत्रकारिता का साक्षात एक रिकार्ड है.. एक इतिहास है। जिसकी साफ-सुथरी छवि है। जो सिफारिशी बयाने नही लाता। जो फोटो खिचवाने की बदहवासी  मे पत्रकारिता की छवि धूमिल नही करता। जो बतौर पत्रकार विज्ञापन मांगता कभी नही देखा गया हो। वैसे तो ऐसे पत्रकार ही बड़े पत्रकार के मानक मे खरे उतरते है। लेकिन ऐसे कई छुट्कन साबित कर दिये जाते हैं।

क्योकि इनके पास बड़े पत्रकार बनने की वो योग्यता नही है जो मीडिया बैनर से नही कई दूसरे चैनल्स से हासिल होती है।यदि फिलहाल आप किसी बड़े बैनर मे नही है या कभी आपने किसी अखबार के दफ्तर मे कदम तक नही रखा है, तब भी आप बड़े पत्रकारो की फेरिस्त मे कैसे शामिल होगे ? जानिये:- कई पत्रकार सिर्फ इसलिये बड़े पत्रकारो की  फेरिस्त मे शामिल है क्योकि वो पार्टी दफ्तरों से लेकर, नेताओ अधिकारियों की चरण वंदना करते रहते है। इधर की बात उधर करते है। कभी चाटूकारिता करते है, कभी चमचागीरी, कभी मक्खन बाजी, कभी तेल मालिश। इनका मुख्य काम मुखबिरी है।

लेकिन कभी ये धौस भी दिखाते है। आरटीआई लगाकर दबाव बनाते है या मुकदमे करके दबाव बना चुके होते है। कभी ब्लैकमेलिंग करते है तो कभी पोल-पट्टी खोलने की धौस देते है। कभी पागलो की तरह अधिकारियो के कमरे मे चीखने-चिल्लाने लगते है। हर सरकार मे वो अपने को उस पार्टी का खास/करीबी साबित करते है जिस पार्टी की सरकार होती है। कभी वो अपने को पत्रकारो का नेता बताते है तो कभी सरकार के मंत्रियो पार्टी के नेताओ का खास बताते है। और इस तरह बिना लिखे-पढ़े.. बिना छपे … बिना किसी पत्रकारिता के ग्राउन्ड/अनुभव के ये बड़े पत्रकारो की फेरिस्त मे शामिल हो जाते है।

बड़े पत्रकारो की कतार मे आधे से ज्यादा आपको ऐसे ही पत्रकार मिलेंगे। इस तरह के कथित बड़े पत्रकारो का हर सरकार मे जलवा कायम रहता है।लेकिन मौजूदा सरकार दलाल संस्कृति से परहेज कर रही है। असली-नकली को पहचानने मे माहिर है। असमानता और असंतुलन से चिढ है इस सरकार को। सबका साथ-सबका विकास इसका नारा है। इसलिये असली बड़े-छोटे या फर्जी का सही पैरामीटर जरूर होगा इस सरकार के पास।

कल 5 केडी पर माननीय मुख्यमंत्री जी के साथ बड़े पत्रकारो का रात्रि भोज का आयोजन है। अब देखना है कि  यहां कौन से वाले बड़े पत्रकारो का संख्या बल ज्यादा दिखायी देता है!

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