देह में कोख का दंश: महिला त्रस्‍त, पुरूष मस्‍त

मेरा कोना

: कोख पर कोई कानून बनाने की बात केवल स्‍त्री के खाते में होनी चाहिए : बिना विवाह के शारीरिक सम्‍बन्‍ध बनाना महिला के लिए त्रासद, पर पुरूष के लिए बेफिक्र : अब जरूरी बात तो यह है कि कोख के साथ पुरूष के लिए भी कड़ा कानून बनाया जाए :

त्रिभुवन

उदयपुर : पुरुष किसी अविवाहित स्त्री से बिना विवाह किए संबंध बनाता है। वह गर्भवती हो जाती है। पुरुष उससे कन्नी काट लेता है और उसे अपने हाल पर छोड़ देता है। गर्भवती महिला संस्कार, संस्कृति और परंपराओं के बोझ ढोते हुए लोकलाज के नाम पर अपने वात्सल्य को कहीं भी फेंकती है और क्रूर मां की संज्ञा पाती है। पुरुष को कोई कुछ नहीं कहता। समस्त संताप औरत झेलती है। यह उसकी देह से जुड़ी कोख का नतीजा है।

तो किसी पुरुषपूर्ण व्यवस्था को क्या अधिकार है कि वह स्त्री की कोख को लेकर कोई कानून बनाए! अगर पुरुषपूर्ण व्यवस्था यह कानून बनाती है, तो उन्हें उस पुरुष के लिए भी कानून बनाना चाहिए, जो किसी स्त्री को गर्भवती करके जिम्मेदारियों से भाग लेता है या उसे घर से निकाल देता है। उस पुरुष के लिए भी कड़ा कानून बनना चाहिए, जो किसी स्त्री से मज़ा लेने तो जाता है, लेकिन वेश्या सिर्फ़ औरत कहलाती है और सीटा-पीटा में सज़ा भी सिर्फ़ वही पाती है! कोई पुरुष नहीं!

औरत की कोख से जुड़़ी विवशताओं को आज तक न किसी संस्कृति ने समझा और किसी कानून ने संवेदनशीलता से देखा। उसकी कोख उसे किसी पुरुष की पत्नी बनाती है और एक पति का वर्चस्व वह आजीवन सहती है। उसकी कोख बेटे या बेटी को जन्म दिलाती है और वह जीवन भर अपने बच्चों से संवेदना तंतुओं की तरह जुड़ी उनके दु:खदर्द झेलती है। बच्चे अक्सर मां को बहुत महान बताते उससे प्रेम जताते हैं, लेकिन ऐसे कितने बेटे और बेटियां हैं, जो मां के प्रेम कोष को अपनी मिठास से भरते हैं।

राजस्‍थान के लब्‍ध-प्रतिष्‍ठ पत्रकार हैं त्रिभुवन। संवेदनाओं को देखना, पहचानना और उसे खोजने में महार‍थ है त्रिभुवन में। फिलहाल वे दैनिक भास्‍कर के उदयपुर के सम्‍पादक हैं। आप चाहें तो tribhuvun@gmail.com पर उनसे सम्‍पर्क कर सकते हैं।

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