: लखनऊ में 11 साल की बच्ची को अगवा कर सामूहिक बलात्कार हुआ, और यह हिन्दू मेरी औकात दिखाने पर आमादा हैं : हमें ज्ञान और फटकार दे रहे हैं, आज तक किसी अपराधी के खिलाफ कोई प्रतिवाद किया है आपने : मैं 55 साल का नवयुक हूं, आपकी तरह 50 साल का बुड्ढा नहीं : हिन्दू बनने की कोशिश करो, पाखण्ड नहीं :
कुमार सौवीर
लखनऊ : हिन्दू समाज में 11 साल की उम्र की देवी को चंद्रघण्टा के तौर पर पूजा जाता है। वह देवी जिसे मासिक धर्म होना अभी तक शुरू नहीं हुआ है, यानी वह रजस्वला नहीं हुई है। नवरात्र के मौके पर राजधानी में 11 साल की ही एक मासूम बच्ची को बदमाशों ने उसके घर डकैती डालने के बाद उसे अगवा कर लिया। बाद में पता चला कि उस बच्ची के साथ बदमाशों ने सामूहिक बलात्कार किया है।
मैंने ने इस काण्ड पर हिन्दू और मुसलमान दोनों ही फिरकों पर सख्त लताड़ दिया। खास कर हिन्दू समाज पर, जो देवी की उपासना में तो बेहद व्यस्त है, लेकिन उस 11 साल की चन्द्रघण्टा की चीखें नहीं सुनायी पड़ती हैं। मेरा सवाल था कि अगर हम अपने समाज की लड़कियों की सुरक्षा नहीं कर सकते हैं, तो फिर हमें देवी, नवरात्र, महिला सशक्तिकरण जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। ऐसे शब्द बलात्कार पीडि़त बच्ची और उसके परिजनों के लिए नश्तर से ज्यादा तीखा-कड़वा ओर विष समान हो जाता है।
मेरे बड़े भाई साहब है देवेंद्र नाथ दुबे। उन्होंने मुझे टोका कि संयम का प्रयोग करना सीखो। उनकी बात ठीक है। हमारे रिश्ते साबित करते हैं कि हमें किस के साथ कैसा व्यवहार करना है। लेकिन इसी बीच एक महेंद्र मनुज जी ने लिख मारा:- नाबालिग बेटियों के साथ जो हुआ, वह घृणित और अक्षम्य ही है। लेकिन तुम्हारी भी छवि देवी उपासक वाली नहीं। नवरात्रि के दौरान बलत्कृत किशोरियों को चन्द्रघण्टा, कूष्मान्डा का नाम देकर कौन सा बुद्धिमानी का काम किया है ? पत्रकार हो तो जानते ही होगे कि इस घृणित अभिव्यक्ति का क्या परिणाम हो सकता है। वैसे मैं जानता हूँ … अतिवादी हो और क्रोध में जो किया सो ठीक, इस पर डटोगे । फिर भी क्रोध शांत हो गया हो तो ,प्रायाश्चित कर लो ।
महेंद्र मनुज, अब यह बताइये कि आपको ऐतराज क्या है, मेरी समझ में नहीं आ रहा। जब मैं लिखता हूं तो आप भड़क उठते हैं। लेकिन जब कांतिशिखा उस पर प्रतिवाद करती हैं, तो आप मेरी पोस्ट को दोबारा पढ़ने की सलाह देते हैं। फिर आप बोलते हैं कि हर शख्स का अपना निजी नजरिया-दर्शन होता है, उस पर ऐतराज नहीं करना चाहिए।
आप ऐसा क्यों करते हैं, भगवान जाने। लेकिन महाशय, मैं खूब जानता-समझता और लिखता हूं कि क्या मैं कर रहा हूं और उसका क्या अंजाम होगा।
पता नहीं कि आप मुझसे प्रायश्चित कराने की चेष्टा-लालसा क्यों पाले घूम रहे हैं। मौका मिले तो बताइयेगा।
मैं महज 55 साल का नवयुवक हूं महेंद्र जी, इस उबलते खून को मैंने स्टोव पर नहीं गरम किया है। अनुभव और मेरी चिंताएं मुझे प्रेरित करती हैं। मैं सच बोलता हूं, जो आपको तीखा लगता है। आपको मेरी चिंता की जरूरत नहीं हैं, मुझे मेरा अच्छा-भला खूब पता है। और हां, आपको अपनी राय देने का तो अधिकार है, मुझे गालियां देने और प्रताडि़त करने का तो अधिकार है, लेकिन मुझे क्या करना चाहिए, प्रायश्चित करना है या नहीं, आपका अधिकार नहीं है महेंद्र जी।
अब यह बताइये कि चंद्रघंटा कौन है। यह हिन्दू मानस की कल्पना ही तो है न। मैं बताता हूं कि चंद्रघंटा कौन है। वह स्त्री का वह रूप है, जो रजस्वला यानी मासिक धर्म की अवस्था से ठीक पहले की है। उसी चंद्रघंटा देवी की उम्र यानी 11 साल की बच्ची की उम्र में लखनऊ के पारा इलाके में बदमाशों ने उसे अगवा किया और फिर उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया। वह भी तब जब आप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी और फिर चंद्रघंटा की स्तुति में गीत-भजन कर रहे थे। आपकी वही चंद्रघंटा बदमाशों के चंगुल में रेप की पीडि़त होती जा रही थी।
महेंद्र जी, आप देवी की स्तुति कर रहे थे और वही चंद्रघंटा की चीखें लखनऊ के रेपिस्ट का अमानुषिक-नृशंस हरकतों से घुटती ही जा रही थी।
फिर आपको दिक्कत क्या हुई। आपको अगर कोई दिक्कत है तो आइये, लखनऊ के पारा के इलाके में रहने वाली इस चंद्रघंटा के घर पहुंचिये और फिर पुलिस और प्रशासन को बाध्यकीजिए ताकि आइंदा 11 साल की कोई दूसरी चन्द्रघंटा के साथ ऐसा दुराचार न हो सके।
जाइये आपकी 11 साल की चंद्रघंटा अब पूजा-पाण्डाल में मुस्कुराती प्रतिमा-मूरत नहीं, छटपटाते-बिलखते हुए अस्पताल में मरने की दुआ मांग रही है।
और अगर आप उसका सामना नहीं कर सकते तो कृपया अपना ऐसा पाण्डत्य मत दिखाइये। मैं थोथे नैतिकता को एकांगी नहीं, बल्कि समग्रता में देखता हूं।