भक्तों की करतूतों से बिलख रहे हैं शिवशम्भू

दोलत्ती

: पांच हजार बरस पहले कोरोना चीन में उपजा था : जाहिल मुसलमान एकजुट मस्जिद में, हिन्दू शातिर इतिहास बर्बाद करने में बिजी :
कुमार सौवीर
लखनऊ : शिवपुराण में साफ तौर पर दर्ज है कि कोरोना एक विषाणु संक्रमक है और जल्दी ही पूरी दुनिया और मानवता को भी तबाह व बर्बाद कर देगा। हमारे देश के महान ऋषि-मुनियों ने इस बारे में अपनी प्रयोगशालाओं में कोरोना पर गहन अध्ययन किया था। गुफाओं, नदी की कगारों पर, रेगिस्तानों की ढूहों पर, हिमालय की बर्फीली चोटियों पर और बीहड के कठिनतम माहौल में यह अनुसंधान लाखों बरसों तक चलता रहा। लेकिन महानतम ऋषियों और मुनियों ने अपनी लाखों-करोडृों आहुतियों को देकर ही कोरोना को पहचाना और उसका निदान खोज डाला।
लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि म्लेक्ष्यों और पातकी मुगलों ने अपनी करतूतों से ऐसे शोधों को नेस्तनाबूत कर डाला और इसके चलते लाखों-करोडों तक चले तत्सम्बन्धी शोधों को जला दिया, फाड दिया या फिर बच्चों को दे दिया गया जिससे उन बच्चों ने बरसात के मौसम में नाव बना डाली और उस शोध को खेल का माध्यम बना दिया।
जी हां, हम मुसलमानों के एक जाहिल समुदाय की करतूतों पर तो खूब हल्ला, दंगा, मजाक, खिल्ली, और अपमानजनक शब्दों से खूब चटखारा लेते रहते हैं। लेकिन अपने गिरहबान में झांकने की जरूरत नहीं समझते कि हम खुद क्या हैं। काश अगर हम ऐसा करने की कोशिश करते तो शायद पता चल जाता कि हम और ऐसे जाहिलों में हम कहीं से तनिक भी कम नहीं हैं।
ताजा मामला है कोरोना वायरस से उपजे विश्वव्यापी महामारी को लेकर चल रही भ्रामक अफवाहों का माहौल। दरअसल, हमारे पास एक वाटसऐप मैसेज आया जिसमें साफ:साफ दर्ज था कि शिवपुराण में हजारों बरस पहले कोरोना वायरस को पहचान लिया था। पुरानी किताब की रंगत वाले इस पन्ने में न कोरोना का जिक्र था, बल्कि चीन और वहां होने वाले मांसाहार आचरण की भी खूब चर्चा की गयी थी। इस पन्ने में बताया गया था कि करीब पांच हजार बरस पहले शिवपुराण लिखा गया था।
हमने इस बारे में काशी के कई प्रकाण्ड विद्वानों से चर्चा करने की कोशिश की। प्रकांड विद्वान प्रो कामेश्वर उपाध्याय समेत अधिकांश का तो फोन ही आफ था, लेकिन इसी बीच वाराणसी के एक प्रमुख कर्मकांडी, संस्कत विद्वान और ज्योतिषी डॉ अवधराम पाण्डेय से हमारी बातचीत हो गयी। उन्होंने साफ बताया कि करीब डेढ महीना पहले यही बकवास किसी ने उनकी वाटसऐप पर भेजा था, जिस पर उन्होने उस प्रेषक को खूब खरी-खोटी सुनायी थी। लेकिन अब उसी बात को ए​क साजिश के तहत पुराने पन्ने को एडिट करके उसे छाप कर अफवाहें फैलायी जा रही हैं।
उन्होंने साफ तौर पर खारिज किया है कि ऐसा कोई भी प्रकरण शिवपुराण में दर्ज है। उन्होंने यह भी साफ कहा कि यह एक झूठा और फाड मामला है। जिसका प्रमाण इसकी शैली से ही समझा जा सकता है। मसलन, शिवपुराण में कभी हैच निशान का इस्तेमाल नहीं किया गया है। दरअसल यह हैच संकेत आधुनिक कम्प्यूटर भाषा में ही प्रयुक्त होता है, शिवपुराण अथवा किसी अन्य पुरानी किताबों में।
अब भी कोई आपको प्रमाण चाहिए कि अफवाहों का दौर केवल किसी अन्य धार्मिक समुदाय के कमीनों की बपौती है। सभी धर्मों के ठेलुआ इसी धंधे में जुटे रहते हैं।

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