: अमिताभ बच्चन की हरकतें जीवन भर सालती रहीं : अमर ने सब पर भरोसा किया, लोगों ने नहीं : सफल दलाल में ट्रिकलिश-मैन्यूपैलेशन होना जरूरी :
कुमार सौवीर
लखनऊ : किसी भी दलाल की सफलता का पहला और आखिरी गुण होता है उसका ट्रिकलिश होना और मैन्यूपैलेशन में माहिर होना। और पूरे भारत देश और आर्यावर्त ही नहीं, बल्कि पांचजन्य क्षेत्र में भी ऐसे गुण-सम्पन्न व्यक्ति का ऐतिहासिक शख्स था अमर सिंह। न भूतो, न भविष्यते। अमर सिंह को खूब पता था कि कौन शख्स उसके लिए किस काम के लिए मुफीद हो सकता है। उसे यह भी खूब पता था कि अपना काम निकालने के लिए उसे किस व्यक्ति के साथ कैसे और कितना दाना-चारा फेंकना है। ऐसे हर मुर्गे को उसकी मनपसंद पोस्टिंग दिलवाना, ठेके दिलवाना, टिकट दिलवाना, मंत्री बनवाना, खबर प्लांट कराना और उसके निजी शौक-आदतों के लिए सामानों की सप्लाई करना, ऐसे हर धंधे में अमर सिंह का कोई सानी नहीं था। लेकिन अमर सिंह की सबसे बड़ी कमी थी कि उसे दोस्त पहचानने की तमीज तक नहीं थी। चाहे वह सुब्रत राय रहा हो, अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्य, अभिषेक और जय भादुड़ी व संजय दत्त रहा हो, चाहे वह मुलायम सिंह यादव रहा हो, अनिल अम्बानी या फिर शिवपाल सिंह यादव, या फिर अखिलेश यादव अथवा आजम खान। हर एक के सिर पर विजय-श्री की पगड़ी पहनायी अमर सिंह ने, लेकिन इनमें से किसी ने भी अमर सिंह को उसके आड़े वक्त में तनिक भी घास तक नहीं डाली। हां, जयाप्रदा शुरू से अंत तक अमर सिंह पर न्यौछावर होती रही। आखिरी दौर में थोड़ा अमित शाह ने भी अमर सिंह को ऑक्सीजन दे दिया था।
अमर सिंह सच बोलने में माहिर थे, लेकिन सिर्फ वही सच जो उन्होंने प्लांट कर रखा हो। मसलन, मुख्य सचिव अनिल गुप्ता, दीपक सिंहल जैसे अफसरों की बातचीत को उन्होंने खुद ही वायरल कराया। इतना ही नहीं, एक फिल्म अभिनेत्री ने जब अपने कैरियर को चमकाने की मदद के लिए जब अमर सिंह को फोन किया, और बेहद सेक्सी-आवाज में कहा कि आप कभी आइये मेरे घर, तो अमर सिंह ने कहा कि मैं बीमारी के चलते इस योग्य नहीं हूं। अभिनेत्री ने जवाब दिया कि उससे क्या फर्क पड़ता है, तो अमर सिंह ने सपाट जवाब दे दिया:- इट मैटर्स बिटविन द लेग्स। यह बातचीत भी खूब वायरल हुई।
फरवरी-11 में जब मैं महुआ न्यूज का प्रदेश प्रभारी था, उसी दौरान अमर सिंह ने अपनी पूर्वांचल-यात्रा निकाली। दरअसल, मुलायम सिंह यादव से उनकी खटपट शुरू हो चुकी थी। ऐसे में अमर सिंह अपनी धाक जमाने के लिए यह यात्रा निकाल रहे थे। महुआ न्यूज को मोटी रकम दे कर अमर सिंह ने इस यात्रा का पूरा कवरेज कवरेज का ठेका दिया था। बाकी न्यूज चैनल भी इसकी कवरेज के लिए लालायित थे, लेकिन अमर सिंह ने यह ठेका केवल महुआ न्यूज को दिया। हां, एक न्यूज वन नामक चैनल का मालिक और उसका रिपोर्टर अपनी खराब ओबी लेकर जरूर भागदौड़ कर रहा था ताकि इंप्रेशन पड़े। लेकिन अखबारों को पहले पन्ने का विज्ञापन पूरी उदारता के साथ अमर सिंह बांटते रहे। करीब एक हफ्ते की यात्रा बलिया से चंदौली-बनारस तक के दौरान मैंने उनका इंटरव्यू लिया। एक सवाल उछाला कि आपकी पहचान एक दलाल की है।
अमर सिंह ठहाके लगाते हुए बोले:- लेकिन पीके तिवारी को क्या आप पत्रकार-संस्थान का मालिक भर ही मानते हैं। पक्का दलाल है आपके महुआ न्यूज का मालिक पीके तिवारी। उसकी एक-एक चुन्नट को जानता-पहचानता हूं मैं। चुन्नट तो आप खूब जानते ही होंगे न। जी हां, वही पिछवाड़े वाली खुलती-सिकुड़ती चुन्नटें।
यकीन मानिये। इस चिकोटी पर मैं तिलमिला गया। पूरे दो दिनों खाना नहीं खा पाया। महीनों तक दिमाग भन्नाया रहा। उसी दौरान तय कर लिया था कि अब नौकरी नहीं करूंगा। सौभाग्य रहा कि यशवंत राणा जैसे घटिया और सम्पूर्ण चमन-चूतिया संपादक से मेरी ठन गयी और मैंने नौकरी ही छोड़ दी। लेकिन गनीमत थी कि अंशुमान त्रिपाठी मुझे हरियाणा के गृहमंत्री गोपाल कांड़ा के चैनल एसटीवी वाले यूपी-टीवी में ले आये। लेकिन चार महीने बाद अंशुमान त्रिपाठी ने नौकरी छोड़ दी। नये संपादक विवेक अवस्थी ने मुझे पेड-न्यूज के लिए कहा तो मैं उसे खुल कर गालियां देते हुए उसकी नौकरी पर लात मार दी। बाकी बकाया नहीं मिलने पर मैंने यूपी-टीवी, हरियाणा मुख्यमंत्री, लेबर कमिश्नर और प्रेस-कौंसिल तक इस चैनल की शिकायत की, और आखिरकार चैनल का कैमरा समेत सारा सामान नीलाम कर दिया। यह किस्सा बाद में सुनाऊंगा। लेकिन इतना सुनते जाइये कि पीके तिवारी पिछले दस बरसों से जेल में आ-जा रहे हैं। उन पर धोखाधड़ी के बड़े मामले हैं।
यह सन-09 का किस्सा है। अमर सिंह ने लखनऊ संसदीय की सीट के लिए संजय दत्त की घोषणा की। प्रेस-कांफ्रेंस खचाखच थी। अमर सिंह के साथ थे मुलायम सिंह यादव और सभागार में मेरे पीछे खड़े थे अखिलेश यादव। संजू की तारीफ करते हुए अमर सिंह बोले कि अब गांधीगिरी करेंगे संजू बाबा। और मैं उनके साथ रहूंगा सर्किट बन कर।
मैं बोल पड़ा कि आपके आसपास इतने सर्किट हैं कि संजू बाबा का तो सर्किट स्पार्क होकर फ्यूज हो जाएगा। इस पर ठहाके लगे। कांफ्रेंस के बाद अमर सिंह ने मुझे खोजा, आदतन मेरे कंधे पर हाथ रखा, गदगद भाव में उन्होंने मुझे गोमतीनगर वाले अपने मकान में भोजन पर आमंत्रित किया।
अमर सिंह ने क्या-क्या नहीं किया है राजनीति में। एक टुच्चे से दलाल से उसने अपने लिए एक महानतम दलाल का राजसिंहासन बुना और खुद ही वह उस सिंहासन पर बैठ गया।
सहारा वाला सुब्रत राय खुद को बड़ा कारसाज मानता था। लेकिन जब संकट आया, तो संजीवनी बन गये अमर सिंह। अमर ने ही अमिताभ बच्चन, सचिन तेंदुलकर, टीएन शेषन, देश के बड़े नौकरशाहों, जजों, और संविधानविदों को सहारा इंडिया में मानद निदेशक की नियुक्ति करायी। झमाझम नोट बरसने लगे सहारा में। लेकिन जैसे ही अमर सिंह से सुब्रत की खटपट हुई, सहारा इंडिया डूबने लगा। यही हालत अमिताभ बच्चन की थी। वह दौर याद कीजिए, जब अमिताभ बच्चन का बंगला तब नीलाम होने की नौबत आ गयी थी। बिलकुल कंगाल हो चुका था यह अभिनेता, लेकिन अमर सिंह ने अमिताभ को सम्भाला। और नतीजा यह हुआ कि अमिताभ आज जो मेगा-स्टार के तौर पर पहचाने जाते हैं, उसका श्रेय अमर सिंह को है।
यह वह अमर सिंह ही था, जिसने मुलायम सिंह को ऐश्वर्य वाली राजनीति में चमकाया। इसी चमक में अखिलेश और शिवपाल सिंह यादव के चेहरे मलाई की तरह चमदम होने लगे थे। अमर सिंह की चालों ने ही आजम खान को सपा का मुस्लिम चेहरा साबित किया था। लेकिन कुछ लिप्सा, कुछ पुत्रमोह, कुछ टुच्चा लालच, कुछ अहंकार, कुछ भयावह यौन-इच्छाएं, कुछ पांसे फेंकने की आदत, कुछ जन्मजात कमीनगी, कुछ सारा खुद को हड़पने की अदम्य लेकिन घृणित हरकतें ने अमर सिंह और उनके रिश्तों को तबाह-बर्बाद कर दिया। सिवाय जयप्रदा के। अमर सिंह सब कुछ बर्बाद कर सकते थे, लेकिन जय प्रदा की उनकी सर्वोच्च संगिनी थी। उस पर जब आजम खान ने थूकना शुरू कर दिया, अमर सिंह तिलमिला पड़े। और बदला लेने के लिए वे उस पार्टी भाजपा के साथ गलबहियां कर बैठे, जिसे उन्होंने जिन्दगी भर गालियां दी थीं। लेकिन यह पांसा भी जोरदार है, जो आजम खान जैसे बड़बोले और अभद्र व्यक्ति को जेल में सड़ा रहा है।
कभी अमर सिंह और अमिताभ बच्चन की दोस्ती की मिसाल दी जाती थी लेकिन बाद के सालों में दोनों के बीच कटुता हो गई थी। यह बात अमर सिंह को हमेशा कचोट रही। एक बार अमर बोले:- ‘बहुत ज्यादा हुआ। अमिताभ बच्चन और अनिल अंबानी, इनसे मैं नाराज नहीं हूं। खासकर अमिताभ जी से तो बिल्कुल नाराज नहीं हूं। इन्होंने मेरे अंदर के व्यक्ति के व्यक्ति-तत्व को मारा। मेरे अंदर जो व्यक्ति सहज सुलभ था जो बढ़चढ़कर लोगों की मदद के लिए तत्पर रहता था उस व्यक्ति की मृत्यु अमिताभ जी के आचरण के कारण हुई है क्योंकि गरज-परस्त जहां में वफा तलाश न कर… ये वो शह है जो बनी है किसी और जहां के लिए… न तू जमीं के लिए है न आसमां के लिए। तेरा वजूद तो है सिर्फ दास्तां के लिए।’
अमर सिंह श्रद्धांजलियां के तौर पर अगले अंक में हम आपको बतायेंगे कि इंडिया टुडे के संपादक के साथ क्या व्यवहार किया था अमर सिंह ने। खबर का शीर्षक होगा :-
इंडिया टुडे के संपादक प्रभु चावला को मां-बहन तौलते रहे