न जाने कहां छिपे-दुबके रहे “श्वान-श्रृगाल”

दोलत्ती
: न आजतक का अकेला आया, और न पशुवत पशुपतिनाथ : वार्तालाप आमंत्रण हेतु कई संदिग्ध फोन आये : मैंने अपनी जगह आमंत्रित किया, उनके यहां नहीं :
कुमार सौवीर
लखनऊ : पिछले तीन दिनों से बलिया में हूँ। बंसी-बांसुरी बजाते इधर-उधर भ्रमण कर रहा हूं। लेकिन पत्रकारिता की एक भी “विष-कन्या” मेरे सामने नहीं फटके। जबकि एक दिन पहले वह मुझ को रिझाने और मुझ पर डोरे डालने को लालायित थे। चाहते थे कि वे मुझसे मिलें, और तत्काल वे मुझे डंस लें।
शुरुआती दो दिनों तक तो मैं लोगों को खोजता रहा। वजह यह कि मैं यहां एक पत्रकार की हुई हत्या की वजह पता करने आया था। लेकिन वक्त ने अचानक ऐसा पलटा मारा कि अब बीती शाम से लोग अब मुझे खोज रहे हैं। कारण यह है मेरी सच से सराबोर खबरें। यहां फेफना में एक पत्रकार की हुई हत्या के कारणों को खोजने के लिए मैं आया था, लेकिन यह हत्या पत्रकारीय कारणों से नहीं थी। मैंने बेनकाब करना शुरू किया तो इसी चक्कर में यहां के अधिकांश “पत्रकार” ही मेरे खिलाफ लामबंद हो गए हैं। दरअसल, मैंने यहां के पत्रकारों के कपड़ों और चेहरों के पीछे छुपे लोगों के सच का पता लगा लिया, जो बाकी पत्रकारों की खुद की अपनी असल हकीकत थी। पता चला लिया था मैंने चंद लोगों के अलावा बाकी सब के सब नंग-धड़ंग हो चुके हैं।
उनको नंगा करने के लिए मुझे तनिक भी परिश्रम नहीं करना पडा। क्योंकि ऐसे अश्लील नंगों के बदन पर लत्ता-कपडा तो खुद उन्होंने ही उतार रखा था। मुझे केवल लिखना भर था। और जैसे ही मैंने अभियान छेडा, जाहिर है कि ऐसे अधिकांश रंगे-श्वानों और श्रृगालों ने अपना-अपना मुंह आसमान की ओर उठा कर समवेत गायन करना शुरू कर दिया। यह उनका अपनी रणभेरी बजाने की स्टाइल थी, जो मेरी अस्थियों-बोटियों को नोंचने के शंखनाद यानी तुरही की ही तरह परस्पर एकजुटता का आह्वान थी। एक नाद था, कि मुझ जैसे विधर्मी के खिलाफ धर्मयुद्ध छेड़ कर मुझे तत्काल समाप्त कर दिया जाए। ताकि यहां के वास्तविक पत्रकारों का मनोबल टूट जाये और उसके बाद बागी बलिया की सारी बल्लियां उखाड़ कर जिले में असत्य का राज स्थापित कर दिया जाए।
बहरहाल, मेरे प्रयासों को सार्वजनिक होने से इन श्वान-श्रृगालों ने मुझ पर हमला करने का फैसला किया। इस बारे में एक वाट्सएप समूह में कई ऐसे पत्रकारों ने खुलेआम लिखा कि कुमार सौवीर को जम कर पीट दिया जाना अनिवार्य है। उनका कहना था कि कुमार सौवीर ने बलिया की पत्रकारिता को कलंकित किया है। रतन हत्याकांड की रिपोर्टिंग के बहाने कुमार सौवीर ने बलिया के पत्रकारों का अपमान कर दिया है। ऐसे पत्रकारों का कहना था कि कुमार सौवीर जैसे लोगों की करतूतों का जवाब दिया जाना अब “पत्रकार हित” में अत्यावश्यक है।
हालांकि ऐसा नहीं है कि जिले भर के सारे पत्रकार उन्हीं पत्रकारों के चरित्र व उनकी सोच और शैली के समर्थक थे। लेकिन इतना जरूर महसूस होने लगा कि बलिया में पत्रकारिता की पवित्र और पावन उपवन में अचानक तेजी से उगने लगे नये कंटीले और जहरीले पत्रकारों की तादात काफी ज्यादा होती जा रही है। हैरत की बात है कि पत्रकारिता के असली योद्धाओं की तादात बडी तेजी के साथ गिरती जा रही है। लेकिन इसके बावजूद वास्तविक पत्रकार-योद्धाओं में अपनी बात हर कीमत पर कहने का हौसला बना ही हुआ है। पिछले तीन दिनों के दौरान ऐसे पत्रकार ने केवल मेरे सम्पर्क में लगातार बने ही रहे, बल्कि उन्होंने मुझे हर तरह की जरूरत पूरी करने का प्रयास भी किया। यही तो बलिया की खासियत और उसकी खुशकिस्मती भी है।
बहरहाल, उसी वाट्सएप ग्रुप में तय किया गया कि किसी बहाने कुमार सौवीर को कहीं बुलाया जाए। और फिर वहीं पर कुमार सौवीर की जोरदार कुटम्मस कर दी जाए। ऐसी पिटाई जाए कि आइंदा कुमार सौवीर जैसा कोई भी पत्रकारिता का कुल-कलंक ऐसी हिमाकत न कर पाए। ऐसा प्रस्ताव पारित करने वाले पत्रकार का दोशाला ओढ़े लोगों में आजतक का स्ट्रिंगर अनिल अकेला और पशुपतिनाथ नामक पत्रकार भी शामिल थे। ज्ञातव्य है कि पशुपतिनाथ को मैंने ही सन-08 में महुआ न्यूज में बलिया का स्ट्रिंगर बनवाया था, जब मैं महुआ न्यूज़ का यूपी स्टेट ब्यूरो चीफ था। अब वही मुझे जूतों से पीटने का सार्वजनिक आह्वान कर रहा है।
धन्य हैं बलिया की पत्रकारिता में घुसे रंगे-सियार और अहसान-फरामोश लोग। कुछ भी हो, इन श्वान-श्रृगालों ने मेरा दायित्व और बढा दिया कि अब मैं उनकी असलियत का पर्दाफाश करने के अभियान में भी जुट जाएं। यही तो मेरा जीवन ध्येय और मूल-धर्म भी है। जिसके बल पर मैं विकट संकटों से भी जूझ जाता हूं और जीत जाता हूं। बलिया में आज हुई इस जीत मेरे जीवन ध्येय की सफलता ही तो है।
बहरहाल, आज दिन में तो मैं सिंकदरपुर, बेल्थरा रोड यानी सीयर और उसके आसपास फरसाटार जैसे इलाकों में घूमता रहा। मित्रों में मेरा गर्मजोशी से स्वागत किया। अब वापस गढवार से पांच मील दूर सुखपुरा की ओर निकल रहा हूं। यहां के यदु-श्रेष्ठ कुल के घर पर ही रात्रिविश्राम होना है।
कल रविवार को मैं फिर अपने अभियान में जिले और शहर पहुंचूंगा। और देखूंगा​ कि बलिया के श्वान-श्रृगालों में  मेरी कुटम्मस वाले प्रस्तावित अभियान की तपिश अभी भी सुलग रही है, या उनका जोश राख में तब्दील बन चुका है।

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