: किसी ने संस्थान का तीस लाख दबाया है, तो दूसरे ने सरकार को बीस लाख का चूना लगाया : दलाली में आकण्ठ गोते लगाते गीदड़ चाट रहे हैं शिलाजीत : नर्सिंग होम से 50 हजार की उगाही :
कुमार सौवीर
बलिया : यहां की पत्रकारिता का एक एंगेल देखना भी शायद आप जरूरी समझेंगे। यहां के एक पत्रकार ने वाट्सएप पर यह संदेश बाकायदा दोलत्ती को भेजा है। उसका कहना है कि बलिया में तो ऐसे-ऐसे धुरन्धर पड़े हैं, जो पांच लाइन भी लिख नहीं सकते लेकिन पत्रकारिता की आड़ में उनका जमकर वसूली का धंधा चल रहा है। जिस दिन रतन सिंह की हत्या हुई उसी दिन एक बड़े बैनर के तथाकथित पत्रकार ने एक नर्सिंग होम वाले से खबर रोकने के नाम पर 50 हजार की मांग उगाही के तौर पर की थी। रतन सिंह की हत्या के एक दिन पहले इस नर्सिंग होम में एक प्रसूता की मृत्य हो गयी थी। मगर इस, तथा ऐसे पत्रकार लोग दोलत्ती डॉट डॉट कॉम पर सबके नकाब उधेड़ने और हक़ीक़त सामने आ जाने के बाद दोलत्ती डॉट कॉम के खिलाफ चिलपों-चिलपो कर रहे हैं।
दरअसल, बलिया के ऐसे धंधेबाज पत्रकारों का बाकायदा कुछ गिरोह सक्रिय है। ऐसे गिरोह के लोग खबरों में हेर-फेर ही नहीं, बल्कि कोटेदार, दूकानदार, क्लीनिक, अस्पताल, शिक्षक और ग्रामप्रधान से लेकर जिला परिषद तक में पैर रहते हैं। यह पत्रकार-गिद्ध अपनी तीखी नजर से शिकार को पहचान कर उसका काम-तमाम करने में माहिर होते हैं। बशर्ते शिकार बडा असरदार टोली का हिस्सा हो, या शिकारी को नुकसान कर बैठने की भसोट-गूदा यानी क्षमता रखता हो। ऐसी हालत में ऐसे गिद्ध अपनी पूंछ अपने ही पिछवाडे में घुसेड़ कर मौके से भाग निकलते हैं।
लेकिन कुछ ऐसे भी शिकारी हैं, जो अपने ही व्यवसाय-समूह तक को मोटा चूना लगा बैठते हैं, लेकिन इसके बावजूद संस्थान उस शिकारी का बाल नहीं उखाड़ पाता। आजकल भयावह संकट से जूझ रहे एक बडे व्यावसायिक घराने में भी ऐसा ही हुआ। आजकल संकटों में घिरे ऐसे ही एक संस्थान के जिला प्रभारी ने अपने ही संस्थान को ही लूट लिया। सूत्रों के मुताबिक इस प्रभारी ने अपने संस्थान के लिए विज्ञापन की मद में 30 लाख रुपयों की रकम उगाही थी। विज्ञापन भी प्रकाशित हो गया। लेकिन जब संस्थान ने भुगतान मांगा, तो प्रभारी ने हाथ ही खडे कर दिये। हताश संस्थान ने इस प्रभारी को नोटिस दी। उंचे पदों पर बैठे अफसरों और प्रबंधकों ने तय किया कि प्रभारी को नौकरी से निकाल दिया जाएगा। लेकिन सब ठनठन-गोपाल ही रहा। वह शिकारी गिद्ध आज भी उसी पद पर काबिज है। संस्थान को ठेंगा दिखाते हुए।
इसी तरह एक और पशुवत पत्रकार भी हैं। पहले वे केबल-टीबी का काम करते थे। बाद में वे एक न्यूज चैनल में जुड गये। लेकिन इसके पहले भी उन्होंने करीब बीस लाख रुपयों की सरकारी टैक्स की रकम जिलाधिकारी के खाते में जमा नहीं किया, जबकि यह रकम वे अपने चैनल से झटक चुके थे। दोलत्ती को मिली सूचना के अनुसार अब जब भी सरकारी अफसर इस रकम की वसूली का अभियान छेडते हैं, तो यह पत्रकार अपने साथियों के खिलाफ सरकारी अफसरों के कामकाज पर उंगली करना शुरू कर देता है।
ऐसे में टांय:टांय फुस्स। क्रमश:
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