फौज में शामिल मुसलमानों की तादात पूछी मोदी ने

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: अब खुलेगी पोल कि अब तक क्या हुआ मुसलमानों के लिए : दो हफ्तों में मांगी सरकारी नौकरी में मुसलमानों की संख्या :

नई दिल्लीं : चलो, यह अब जरूरी खुलासा अब होना भी तय हो गया कि आखिरकार अब तक हुईं केंद्र सरकारों के जमाने में मुसलमानों के बारे में क्या-क्या ठोस कोशिश की गयी। कितने मुसलमानों को सरकारी नौकरियां दी गयीं, कितने अवसरों का सृजन किया गया और खास कर कितने मुसलमान मुसलमानों को फौज में खपाया गया। सरकार का यह फैसला यह जांचने की प्रक्रिया का अंग है ताकि पूरे देश को दिखाया जा सके कि अब तक कितने मुसलमानों के साथ जमीनी कोशिशें की गयीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि पिछली सरकारों के कार्यकाल में केवल हवा-हवाई बातें हुईं, फर्जी ढोंग किया गया, और ऐसे में कितने अवसरों को खोज पाने में मुसलमानों को जागरूक किया जा सका। खैर जो कुछ भी हुआ हो, उसे देश के सामने रखना अनिवार्य है।

यह खुलासा आज भारत की अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री नजमा हेपतुल्ला ने किया। एक समाचार संस्थान से बातचीत के दौरान नजमा हेपतुल्ला ने कहा है कि दो हफ़्ते पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकारी नौकरियों में मुस्लिम भागीदारी का डाटा माँगा है। हेपतुल्ला का दावा है कि भारत में मुसलमानों के पिछड़ेपन के लिए भाजपा नहीं, बल्कि पुरानी सरकारें ज़िम्मेदार रही हैं।

उन्होंने कहा कि जितना ध्यान मुसलमानों पर देना चाहिए था उतना कांग्रेस सरकार ने नहीं दिया है। आपको बता दें के दो दशक से भी अधिक समय तक नजमा हेपतुल्ला कांग्रेस की नेता रह चुकी हैं। 2005 में राजिंदर सच्चर की कमेटी ने जो रिपोर्ट पेश की थी उसके अनुसार ब्युरोक्रैसी में सिर्फ 2.5 फीसदी मुसलमान ही हैं।

उन्होंने कहा, “नरेंद्र मोदी ने पता करना चाहा है कि आख़िर सरकारी नौकरियों और सर्विसेस (फ़ौज) में मुसलमानों समेत अल्पसंख्यक समुदाय के कितने लोग काम कर रहे हैं. मोदी जानना चाहते हैं मुस्लिमों के कम प्रतिनिधित्व की आख़िर वजह क्या रही है?”

दशकों तक कॉंग्रेस पार्टी की सांसद और अब भाजपा की वरिष्ठ मंत्री नजमा हेपतुल्ला का मानना है कि भारत के अल्पसंख्यक समुदायों पर जितना ध्यान दिया जाना चाहिए था उससे कहीं कम दिया गया है।

उन्होंने कहा, “मेरे पास हज मंत्रालय भी है और मेरी मुश्किल का अंदाज़ा इस बात से लगाइए कि मैं पिछले कई दिनों से एक संयुक्त सचिव जैसे वरिष्ठ अफ़सर की तलाश में हूँ क्योंकि हज का मामला है और वहां आना-जाना भी होगा. इसीलिए मुझे मुस्लिम अफ़सर चाहिए, जो कि मुझे ढूंढने पर भी नहीं मिल पा रहा है.”

नजमा हेपतुल्लाह ने इन आरोपों का भी खंडन किया है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के सत्ता सँभालने के बाद अल्पसंख्यक समुदाय में अपनी सुरक्षा को लेकर कथित बेचैनी बढ़ी है.

बहरहाल, 2005 में मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने जस्टिस राजिंदर सच्चर के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया था जिसने भारत में अल्पसंख्यक समुदाय के सामाजिक और सरकारी प्रतिनिधित्व पर एक रिपोर्ट संसद में पेश की थी। 2006 में पेश हुई इस रिपोर्ट के अनुसार ब्यूरोक्रेसी में मुसलमानों का प्रतिशत मात्र 2.5 फ़ीसदी था जबकि उस समय भारत की आबादी में उनका हिस्सा 14 फ़ीसदी से भी ज़्यादा था। उस रिपोर्ट के आठ वर्ष बाद जेएनयू के प्रोफ़ेसर अमिताभ कुंडू के नेतृत्व में एक और कमेटी का गठन हुआ था जिसने 2014 अक्तूबर में अपनी रिपोर्ट पेश की थी।

अल्पसंख्यक समुदाय की मौजूदा स्थितियों का विश्लेषण करने वाली इस रिपोर्ट के भी मुताबिक़ सच्चर कमेटी के बाद से इन समुदायों पर सरकरों का ध्यान तो बढ़ा है लेकिन अभी भी वो पर्याप्त नहीं है।

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