मुसलमान की पहचान: बुर्का, छोटे भाई का पजामा और बड़े भाई का कुर्ता

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: कहीं भी अपनी काबिलियत को ऊंचाई पर साबित नहीं कर पाये मुसलमान : दुनिया की सबसे फिसड्डी कौम बन कर रह गये हो : हुजूर ने अगर तुम्‍हें जन्‍नत में जगह दे भी दी, तो काम झाड़ू-पोंछे का ही मिलेगा :

अहमद कमाल सिद्दीकी

रियाद : सिविल सेवाएं, सीबीएसएसी, यूपी बोर्ड ही नहीं, सारे सभी प्रस्‍टीजियस जगहों से आये नतीजे देखिये। …सब के रिजल्ट आ गए ..इक्का दुक्का छोड़ के मुसलमान बच्चे किसी भी तरह की टापर की लिस्ट से गायब हैं ..।

अल्लाह का हुक्म है कि मुसलमान हर दौर में सफे अव्वल में रहे …। तुम्हारे लिए ढेर सारे नबी उतारे ,कुरान उतारा ,सहाबा एकराम आये ..सोने का पहाड़ दिया ,पेट्रोल दिया गैस, समंदर, नदी, पहाड़, रेगिस्तान सब कुछ दिया। पर तुम बुर्का पहने ,छोटे भाई का पजामा और बड़े भाई का कुरता पहने वही के वहीँ रहे ..।

दुनिया की सबसे फिसड्डी कौम बन के रह गए हो तुम। एक टूथ ब्रश भी नहीं बना पाए …।ऊपर से गुमान ये की जन्नत में तुम्हीं जाओगे …। तो याद रख्हो। जन्नत तुम जैसे धरती के बोझों के लिए नहीं बनी है। अगर हजूर साहब के विसाले से मिल भी गयी तो वहां झाडू पोछे से ज्यादा कोई काम नहीं मिलेगा …।

…किसी कमेन्ट और बहस से बेहतर है कि अपने आप में झाँका जाये और तलाशा जाये कि हम कहाँ आ गए हैं …।

बाकी बहस में कुछ नहीं रक्खा है ….

मूलत: लखनऊ के ही वाशिंदे हैं अहमद कमाल सिद्दीकी।

बेबाक लेखनी के मालिक कमाल फिलहाल अरब के रियाद में रह रहे हैं।

कोशिश है कि कैसे भी हो, मुसलमानों की आंख खुल जाए। बस, बाकी बहस में कुछ नहीं रक्‍खा है।


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