: गुनाह और अज़ाब से डरे तो जीवन बर्बाद हो जाएगा : भविष्य में रोडा कैसे बन सकता है धर्म : शांति के लिए धर्म है, तो अशांति क्यों :
ताबिश सिद़दीकी
नई दिल्ली : धर्म एक नौजवान दोस्त दो दिन पहले मुझ से पूछ रहा था कि “ताबिश भाई मुझे सलाह दीजिये कि मैं क्या करूँ.. रमज़ान आ गया है और मेरा छोटा भाई जो स्पोर्ट में अपना कैरियर बना रहा है उसको पापा ज़बरदस्ती रोज़ा रखवाते हैं.. और अब एक महीने के लिए उसकी सारी प्रैक्टिस बंद करवा दी है.. मैं भी किसी कॉम्पिटीशन की तैयारी कर रहा हूँ मगर रोज़ा रहकर कुछ भी पढ़ा नहीं जाता है.. उसके बाद पापा का ये दबाव भी रहता है कि दोनों टाइम क़ुरआन की तिलावत करो और पांचों वक़्त की नमाज़ पढ़ो.. अब बताईये कि कैसे क्या हो.. एक महीने के लिए समझिये हम लोगों की पढ़ाई और प्रैक्टिस कुछ नहीं हो पाएगी.. अगर हम में से कोई भी इस से इनकार करता है तो पापा से दुश्मनी मोल ले लेगा, क्यूंकि उनके लिए मज़हब पहले है और हम सब बाद में”
आप चाहे अमेरिका में रहें या भारत में, अगर आप मुस्लिम परिवार में जन्म लेते हैं तो आपको अपने घर में इस तरह की “अघोषित शरीया” का पालन करने के लिए बचपन से मजबूर किया जाता है.. और ये कितना ज़्यादा पीड़ादायक होता है इसे दूसरे धर्म मे पैदा हुवे लोग कभी समझ ही नहीं सकते हैं.. अगर विश्व के मानवाधिकार संगठन बच्चों पर हुवे इस घरेलू अत्याचार का आंकड़ा जुटा कर उसे सार्वजनिक करें तो ये भयावह होगा.. अब चूंकि सदियों से ये चल रहा है इसलिए सभी ने इसे एक विशेष समुदाय की “संस्कृति” के तौर पर स्वीकार कर रखा है.. मगर सच्चाई ये है कि ये दुनिया का सबसे बड़ा “बाल उत्पीड़न” है
मगर इस जनरेशन का एक बहुत बड़ा हिस्सा इस सब से बाहर निकलना चाहता है.. और ये लोग हम जैसों से सलाह लेते हैं.. और कितनों ने मेरी सलाह पर अमल किया तो उनकी ज़िंदगी पूरी तरह से बदल गयी
मैं ऐसे नौजवान लड़कों और लड़कियों को सबसे पहले यही सलाह देता हूँ कि “विरोध” करो.. हिम्मत करो और विरोध करो.. सबसे पहले अपने माँ और बाप का विरोध करो और उन रवायतों को एक किनारे रखो जो सदियों से तुम्हें समझाती आयी हैं कि “माँ बाप से ऊंची आवाज़ में बात करना गुनाह है”.. क्योंकि ये इन्हीं जैसे माँ बापों की गाढ़ी गयी रवायतें हैं.. इन्होंने एक तरफ़ा गढ़ी हैं ये सिर्फ़ तुम्हारे उत्पीड़न के लिए.. इनकी रवायतों में “बच्चों” का कोई स्थान तुम्हें नहीं मिलेगा.. इनकी रवायतें कभी ये नहीं बताती हैं कि बच्चों को मारना पीटना और उनका उत्पीड़न करना गुनाह है या नहीं.. ये “माँ के पैरों के नीचे जन्नत है” तो बता देंगे मगर बच्चे के पैरों के नीचे के नीचे क्या है ये कभी नहीं बताएंगे.. बच्चा इनका इनकी जागीर होता है.. और मेरे हिसाब से नब्बे प्रतिशत भारत के माँ बाप, माँ और बाप बनने के लिए न तो तैयार होते हैं और न लायक़ होते हैं.. बस उनके अम्मा और अब्बा कहीं से ढूंढ के रिश्ता करवा देते हैं उनका और वो मां बाप बन जाते हैं.. फिर वो आपको सिखाते हैं कि हमसे ऊंची आवाज़ में बात न करो भले हम “ज़ोम्बी” जैसा व्यवहार करें तुम्हारे साथ.. इसलिए उत्पीड़न और ज़बरदस्ती पर चुप न रहिए.. बोलिये और उसका विरोध कीजिये
बच्चे आपकी जागीर नहीं होते हैं.. बच्चों ने आपसे “प्रार्थना” नहीं की होती है कि “प्लीज हमें पैदा कीजिये हम बहुत परेशान हैं”.. बच्चा पैदा करने के पीछे सौ प्रतिशत आपका स्वार्थ होता है.. उसे पालते हैं क्योंकि आप उसे इस जीवन मे लाये हैं और ये आपकी ज़िम्मेदारी है.. आप मुसलमान थे या हिन्दू ये आपके बच्चे को नहीं पता था.. और अब वो रीति रिवाज और धार्मिक कर्मकांड नहीं मानना चाहता है तो ये पूरी तरह से उस पर निर्भर है.. न कि आप पर.. आप उसे प्रताड़ित नहीं कर सकते हैं
इसलिए नौजवानों.. विरोध करो.. विरोध करना सीखो.. सबसे पहले आपको घर से शुरुवात करनी है विरोध की.. नमाज़ पढ़नी है पढ़ो.. न पढ़नी है तो जो तुम्हें बाध्य करे पढ़ने को उसे अपनी “स्वत्रंत्रता” का आदर करने के लिए बाध्य कर दो.. घरों में शरीया नहीं चलेगा.. रोज़ा नहीं हो तो तुम्हें किसी को दिखाने की ज़रूरत नहीं है कि तुम रोज़ा हो.. टोपी लगा के फ़ालतू की मिसवाक़ करने की कोई ज़रूरत नहीं है.. जो “ज़ोम्बी” आपसे कहता है कि तीन जुम्मा नहीं पढ़ोगे तो काफ़िर हो जाओगे तो उस से कहो कि “काफ़िर” होना “सर आखों पर”
अगर इनके डराने से डरते रहोगे तो ये और जाने तुम्हारी कितनी पीढ़ियों को ऐसे ही डरा डरा के भेड़ बनाये रहेंगे.. “डराने का अधिकार” इनसे छीन लो… इन्हें तुम इस वक़्त विज्ञान से डरा सकते हो.. विज्ञान की ताकत इस वक़्त इन्हें भली भांति दिख रही है और ऐसे वक्त में भी अगर ये तुमको “गुनाह” और “अज़ाब” से डरा ले जाएं तो तुम्हारा नाकारापन है, उनका नहीं.. इनसे सवाल करो सीना ठोक के
मुसलमान अल्लाह से नहीं अपने आसपास के मुसलमानों से डरता है.. उसका ये डर ख़त्म हो जाये तो मुसलमानों की आधी से ज़्यादा आबादी अधार्मिक हो जाएगी.. सब एक दूसरे की डर से उस अल्लाह की इबादत का दिखावा करते हैं जिस से इन्हें रत्ती भर न तो लगाव होता है और न प्यार
घरों के अघोषित शरीया के विरुद्ध तुम्हें ही खड़ा होना होगा.. हम जैसे सिर्फ़ हिम्मत दे सकते हैं.. बस
ताबिश सिद़दीकी
नई दिल्ली : धर्म एक नौजवान दोस्त दो दिन पहले मुझ से पूछ रहा था कि “ताबिश भाई मुझे सलाह दीजिये कि मैं क्या करूँ.. रमज़ान आ गया है और मेरा छोटा भाई जो स्पोर्ट में अपना कैरियर बना रहा है उसको पापा ज़बरदस्ती रोज़ा रखवाते हैं.. और अब एक महीने के लिए उसकी सारी प्रैक्टिस बंद करवा दी है.. मैं भी किसी कॉम्पिटीशन की तैयारी कर रहा हूँ मगर रोज़ा रहकर कुछ भी पढ़ा नहीं जाता है.. उसके बाद पापा का ये दबाव भी रहता है कि दोनों टाइम क़ुरआन की तिलावत करो और पांचों वक़्त की नमाज़ पढ़ो.. अब बताईये कि कैसे क्या हो.. एक महीने के लिए समझिये हम लोगों की पढ़ाई और प्रैक्टिस कुछ नहीं हो पाएगी.. अगर हम में से कोई भी इस से इनकार करता है तो पापा से दुश्मनी मोल ले लेगा, क्यूंकि उनके लिए मज़हब पहले है और हम सब बाद में”
आप चाहे अमेरिका में रहें या भारत में, अगर आप मुस्लिम परिवार में जन्म लेते हैं तो आपको अपने घर में इस तरह की “अघोषित शरीया” का पालन करने के लिए बचपन से मजबूर किया जाता है.. और ये कितना ज़्यादा पीड़ादायक होता है इसे दूसरे धर्म मे पैदा हुवे लोग कभी समझ ही नहीं सकते हैं.. अगर विश्व के मानवाधिकार संगठन बच्चों पर हुवे इस घरेलू अत्याचार का आंकड़ा जुटा कर उसे सार्वजनिक करें तो ये भयावह होगा.. अब चूंकि सदियों से ये चल रहा है इसलिए सभी ने इसे एक विशेष समुदाय की “संस्कृति” के तौर पर स्वीकार कर रखा है.. मगर सच्चाई ये है कि ये दुनिया का सबसे बड़ा “बाल उत्पीड़न” है
मगर इस जनरेशन का एक बहुत बड़ा हिस्सा इस सब से बाहर निकलना चाहता है.. और ये लोग हम जैसों से सलाह लेते हैं.. और कितनों ने मेरी सलाह पर अमल किया तो उनकी ज़िंदगी पूरी तरह से बदल गयी
मैं ऐसे नौजवान लड़कों और लड़कियों को सबसे पहले यही सलाह देता हूँ कि “विरोध” करो.. हिम्मत करो और विरोध करो.. सबसे पहले अपने माँ और बाप का विरोध करो और उन रवायतों को एक किनारे रखो जो सदियों से तुम्हें समझाती आयी हैं कि “माँ बाप से ऊंची आवाज़ में बात करना गुनाह है”.. क्योंकि ये इन्हीं जैसे माँ बापों की गाढ़ी गयी रवायतें हैं.. इन्होंने एक तरफ़ा गढ़ी हैं ये सिर्फ़ तुम्हारे उत्पीड़न के लिए.. इनकी रवायतों में “बच्चों” का कोई स्थान तुम्हें नहीं मिलेगा.. इनकी रवायतें कभी ये नहीं बताती हैं कि बच्चों को मारना पीटना और उनका उत्पीड़न करना गुनाह है या नहीं.. ये “माँ के पैरों के नीचे जन्नत है” तो बता देंगे मगर बच्चे के पैरों के नीचे के नीचे क्या है ये कभी नहीं बताएंगे.. बच्चा इनका इनकी जागीर होता है.. और मेरे हिसाब से नब्बे प्रतिशत भारत के माँ बाप, माँ और बाप बनने के लिए न तो तैयार होते हैं और न लायक़ होते हैं.. बस उनके अम्मा और अब्बा कहीं से ढूंढ के रिश्ता करवा देते हैं उनका और वो मां बाप बन जाते हैं.. फिर वो आपको सिखाते हैं कि हमसे ऊंची आवाज़ में बात न करो भले हम “ज़ोम्बी” जैसा व्यवहार करें तुम्हारे साथ.. इसलिए उत्पीड़न और ज़बरदस्ती पर चुप न रहिए.. बोलिये और उसका विरोध कीजिये
बच्चे आपकी जागीर नहीं होते हैं.. बच्चों ने आपसे “प्रार्थना” नहीं की होती है कि “प्लीज हमें पैदा कीजिये हम बहुत परेशान हैं”.. बच्चा पैदा करने के पीछे सौ प्रतिशत आपका स्वार्थ होता है.. उसे पालते हैं क्योंकि आप उसे इस जीवन मे लाये हैं और ये आपकी ज़िम्मेदारी है.. आप मुसलमान थे या हिन्दू ये आपके बच्चे को नहीं पता था.. और अब वो रीति रिवाज और धार्मिक कर्मकांड नहीं मानना चाहता है तो ये पूरी तरह से उस पर निर्भर है.. न कि आप पर.. आप उसे प्रताड़ित नहीं कर सकते हैं
इसलिए नौजवानों.. विरोध करो.. विरोध करना सीखो.. सबसे पहले आपको घर से शुरुवात करनी है विरोध की.. नमाज़ पढ़नी है पढ़ो.. न पढ़नी है तो जो तुम्हें बाध्य करे पढ़ने को उसे अपनी “स्वत्रंत्रता” का आदर करने के लिए बाध्य कर दो.. घरों में शरीया नहीं चलेगा.. रोज़ा नहीं हो तो तुम्हें किसी को दिखाने की ज़रूरत नहीं है कि तुम रोज़ा हो.. टोपी लगा के फ़ालतू की मिसवाक़ करने की कोई ज़रूरत नहीं है.. जो “ज़ोम्बी” आपसे कहता है कि तीन जुम्मा नहीं पढ़ोगे तो काफ़िर हो जाओगे तो उस से कहो कि “काफ़िर” होना “सर आखों पर”
अगर इनके डराने से डरते रहोगे तो ये और जाने तुम्हारी कितनी पीढ़ियों को ऐसे ही डरा डरा के भेड़ बनाये रहेंगे.. “डराने का अधिकार” इनसे छीन लो… इन्हें तुम इस वक़्त विज्ञान से डरा सकते हो.. विज्ञान की ताकत इस वक़्त इन्हें भली भांति दिख रही है और ऐसे वक्त में भी अगर ये तुमको “गुनाह” और “अज़ाब” से डरा ले जाएं तो तुम्हारा नाकारापन है, उनका नहीं.. इनसे सवाल करो सीना ठोक के
मुसलमान अल्लाह से नहीं अपने आसपास के मुसलमानों से डरता है.. उसका ये डर ख़त्म हो जाये तो मुसलमानों की आधी से ज़्यादा आबादी अधार्मिक हो जाएगी.. सब एक दूसरे की डर से उस अल्लाह की इबादत का दिखावा करते हैं जिस से इन्हें रत्ती भर न तो लगाव होता है और न प्यार
घरों के अघोषित शरीया के विरुद्ध तुम्हें ही खड़ा होना होगा.. हम जैसे सिर्फ़ हिम्मत दे सकते हैं.. बस