‘मुन्नी बदनाम हुई’ गीत की सप्रसंग व्याख्या

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

प्रस्तुत उत्तेजक गीत हिन्दी फिल्म जगत की सुपरहिट कृति और सर्वप्रिय चलचित्र ‘दबंग’ से लिया गया है. इसकी पंक्तियाँ एक नर्तकी की सामान्य जीवन से बदनाम जीवन तक की रोचक यात्रा का बड़ा ही मनभावन चित्रण करती हैं. नर्तकी अपने प्रेमी को अपनी इस दशा का कारण बताती है और अपने आस-पास शराबी पुरुष-मित्रों को अपनी व्यथा सुनाती है.

Munni badnaam hui, darling tere liye – 3 times

Munni ke gaal gulabi, nain sharabi, chaal nawabi re

Le zandu balm hui, darling tere liye

Munni badnaam hui, darling tere liye

Munni ke gaal gulabi, nain sharabi, chaal nawabi re

Le zandu balm hui, darling tere liye – 2 times

Munni badnaam hui, darling tere liye – 2 times

‘मुन्नी बदनाम हुई, डार्लिंग तेरे लिए’ – पहली पंक्ति बहुत ही महत्त्वपूर्ण है. हमारे कई बुद्धिजीवी मित्र इसे एक छिछोरे गीत की एक भोंडी पंक्ति कहकर इसका तिरस्कार करना चाहेंगे. परन्तु वो यह भूल रहे हैं कि इस छोटी पंक्ति में मुन्नी के मनोविज्ञान का सार-तत्त्व छुपा है, पूरी श्रीमद् भागवत गीता जितना ज्ञान छुपा है. श्रोता अगर ध्यान दें तो पायेंगे कि मुन्नी अपनी बदनामी से बिलकुल भी दुखी नहीं है. अब ज़ाहिर बात है कि कोई भी स्त्री अपना दुःख छोटे कपडे़ पहनकर और दर्जनों शराबी मित्रों के साथ नाचकर व्यक्त नहीं करेगी. दरअसल मुन्नी अपनी बदनामी का उत्सव मना रही है. पर अपनी बदनामी का उत्तरदायित्त्व अपने प्रेमी अर्थात डार्लिंग पर मढ़ रही है.

गौरमतलब यह कि मुन्नी बदनाम तो होना चाहती है पर इसका दोष खुद पर लेना नहीं चाहती. आपने कई बार समाचार-पत्रों में पढ़ा होगा कि कुछ लड़कियां अपने पुरुष मित्रों के साथ यौन संसर्ग का आनंद उठाकर बाद में यह बयान देती हैं कि पुरुष ने ही उन्हें बहलाया फुसलाया और कुमार्ग पर प्रेरित किया. ये सारी घटनाएं उसी मनोविज्ञान का रहस्य उजागर करती हैं. कई स्त्रियाँ समाज द्वारा प्रतिबंधित सुखों का अनुभव तो करना चाहती हैं, पर जिम्मेवारी स्वीकार नहीं करना चाहतीं. जैसे मधुमेह (डायबिटीज) का मरीज यह शिकायत करे कि मिठाई उसके मुंह में जबरदस्ती डाल दी गयी है.

‘मुन्नी के गाल गुलाबी, नैन शराबी, चाल नवाबी रे’ — अब मुन्नी अपनी शारीरिक दशा का चित्रण करती है. ‘मुन्नी के गाल गुलाबी’ – ध्यान रहे उसके गाल बदनामी से आई शर्म से गुलाबी नहीं हो रहे. यह तो गर्व और आत्म-सम्मान की प्रचुरता से ऐसा रंग दिखा रहे हैं. ‘नैन शराबी’ – बदनामी से मिल रही लोकप्रियता से उसकी आँखों में अहंकार का नशा आ गया है. ‘चाल नवाबी’ – अब स्पष्ट है कि चलने-फिरने में राजाओं जैसी शान तो आ ही जायेगी जब दर्जनों प्रेमी प्रेम की अभिलाषा लिए चारों ओर स्वामिभक्त कुत्तों की तरह चक्कर लगा रहे हों.

”ले झंडू बाम हुई, डार्लिंग तेरे लिए’ – फिर से एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण पंक्ति. हमारे मार्केटिंग और सेल्स प्रोमोशन के मित्र इस पंक्ति को यह कहकर खारिज करेंगे कि मुन्नी सिरदर्द की औषधि का विज्ञापन कर रही है. पर हम यदि इस वाक्य की गहराई में जायेंगे तो समझेंगे कि मुन्नी कुछ और ही कहना चाह रही है. हम सभी जानते हैं कि झंडू बाम से सिरदर्द दूर नहीं भागता. दरअसल बाम हमारी त्वचा पर इतनी तीव्र संवेदना उत्पन्न करता है कि हमें सिरदर्द का अहसास नहीं होता. ठीक इसी तरह मुन्नी का यौवन मर्दों के दिलों में इतनी तीव्र वासना उत्पन्न करता है कि वो घर-परिवार, बीवी, बच्चे, नौकरी आदि सभी के प्रति जिम्मेवारी भूल जाते हैं.

Shilpa sa figure Bebo si adaa, Bebo si adaa

Shilpa sa figure Bebo si adaa, Bebo si adaa

Hai mere jhatke mein filmi mazaa re filmi mazaa

आगे की पंक्तियों में मुन्नी पर बौलीवुड की देवियों का प्रभाव स्पष्ट झलकता है. वह अपनी शारीरिक संरचना और अदाओं की तुलना शिल्पा और बेबो से करती है. शायद वो बचपन में एक सिने तारिका बनने का स्वप्न देखती थी. पर किस्मत ने उसे उत्तर प्रदेश की एक बदनाम गली में शराबियों के साथ नाचने को मजबूर कर दिया. यही फर्क होता है पांच सितारा होटल में नाचने और एक छोटे कसबे में नाचने का. पहली को सम्मान मिलता है तो दूसरी होती है बदनाम.

Haye tu na jaane mere nakhre ve

Haye tu na jaane mere nakhre ve laakhon rupaiya udaa

Ve main taksaal hui, darling tere liye

Cinema hall hui, darling tere liye

Munni badnaam hui, darling tere liye – 2times

तत्पश्चात मुन्नी अपनी बदनामी का आर्थिक प्रभाव बतलाती है. वो बोलती है कि वो टकसाल हो गयी है, सिनेमा हॉल हो गयी है. उसके नखरों के कारण लोग उस पर लाखों रुपये उडा़ रहे है. यह पंक्तियाँ हमें उन त्यागी पुरुषों की याद दिलाती हैं, जिन्होंने सुन्दर स्त्रियों पर पूरी संपत्ति का बलिदान कर दिया. पर बदले में एक मुस्कान या ‘सिर्फ दोस्त’ के खिताब के अलावा कुछ और नहीं पाया. धन्य है यह सृष्टि और इसका पुरुषों पर क्रूर मजा़क.

O munni re, o munni re

Tera gali gali mein charcha re

Hai jama ishq da ishq da parcha re

Jama ishq da ishq da parcha re

O munni re

अब हमारे शराबी और ठरकी पुरुष अपनी बात रखते हैं. वो मुन्नी की इज्ज़त अफजाई में उसका नाम कई बार पुकारते हैं और कहते हैं उसका नाम हर जुबां पर है. सोचते हैं यह सुनकर मुन्नी खुश हो जायेगी और उनकी तरक्की ‘प्रशंसक’ से ‘बॉयफ्रेंड’ तक कर देगी. फिर वो भरे हुए गले से अपील करते हैं कि उन्होंने मुन्नी के प्रेम के लिए अपना आवेदन पत्र डाल रखा है. कितने भोले हैं वो! उन्हें नही पता कि उनकी किस्मत में कतार में खड़ा होना ही लिखा है. मुन्नी को पाने का उनका स्वप्न उनकी आँखों में ही अपनी चिता को स्वयं अग्नि देगा.

Kaise anaari se paala pada ji paala pada

Ho kaise anaari se paala pada ji paala pada

Bina rupaiye ke aake khada mere peechay pada

Popat na jaane mere peechay woh Saifu

(haye haye maar hi daalogi kya)

Popat na jaane mere peechay Saifu se leke Lambhu khada

अब मुन्नी उन पुरुषों का मजा़क उड़ाती है जो बिना पैसों के उसे पाने की इच्छा रखते हैं. मुन्नी के व्यक्तित्व का क्रूर पक्ष सामने आता है. वो मानती है कि गरीब पुरुष को वासना का अधिकार नहीं है. सच है, जब नारी का मन कठोर हो जाता है तो उसकी कोई सीमा नहीं होती.

Item yeh aam hui, darling tere liye

Item yeh aam hui, darling tere liye

Munni badnaam hui, darling tere liye

इसके बाद मुन्नी फिर से आत्म-चिंतन करने लगती है. वह बोलती है कि उसकी हालत सार्वजनिक संपत्ति जैसी हो गयी है. एक पल पहले वो अहंकार से भरकर गरीब की वासना का मजाक उडा़ रही थी. एक पल बाद अपनी हालत पर विचार रही है. बडा़ ही गतिशील मन है उसका.

Hai tujh mein poori botal ka nasha, botal ka nasha

Hai tujh mein poori botal ka nasha, botal ka*नशा

अब मर्द पुनः मुन्नी की प्रशंसा में जुट जाते हैं. सफलता की चाह में मनुष्य प्रयत्न करता ही जाता है. वो कहते हैं मुन्नी में पूरी बोतल का नशा.

लेखक गोपाल सुन्या पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं.

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