माटी की लाडो को अपनाने वाला ही नहीं कोई
राजस्थान में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हकीकत
राजस्थान में महिला दिवस की हकीकत का अंदाजा लगाना हो तो ब्यावर चले आइये। शक्ति स्वरूपा मानी जाने वाली एक नन्ही बिटिया की जिन्दगी सड़क के किनारे से शुरू हुई। उसके माता-पिता उस नवजात को फेंक कर चले गये थे। खबर लगने पर पुलिस ने नवजात को अस्पताल पहुंचा तो दिया, लेकिन उसकी जिम्मेदारी उठाने को कोई तैयार नहीं है। माटी की इस लाड़ो को पिछले चार माह से ममता रूपी आंचल की तलाश है, लेकिन हर 8 घंटे बाद ममत्व का आंचल ही बदल जाता है। बेटी बचाओ की सौगंध खाने वाले सामाजिक संगठनों और सरकारी योजनाओं के दावों की पोल खोल रही है अस्पताल में ममता का इंतजार करती यह मासूम।
यह नवजात बच्ची गत 6 सितंबर 2010 को राजस्थान में ब्यावर के समीप सनवा गांव में सड़क किनारे लावारिस पड़ी थी। एक ग्रामीण की सूचना पर जवाजा थाना पुलिस मौके पर पहुंची। पुलिस ने इस मासूम को राजकीय अमृतकौर अस्पताल लाकर चिकित्सालय प्रशासन को सौंप दिया। तब से अब तक अस्पताल का नर्सिंग स्टाफ इस बच्ची की परवरिश कर रहा है। अस्पताल में कार्यरत नर्स जननी की तरह इस बच्ची का लालन-पालन कर रही है। हर 8 घंटे बाद स्टाफ की ड्यूटी बदलने पर इस बच्ची का आंचल भी बदल जाता है। इस वक्त जब नवजात को मां के दूध की आवश्यकता है, तब उसे बाजार का दूध पिलाया जा रहा है।
इस मामले में अस्पताल के पीएमओ डॉक्टर भरतसिंह गहलोत ने कई बार पुलिस अधिकारी, उपखण्ड प्रशासन और समाज कल्याण विभाग को पत्र लिखा। इस बच्ची को चुराकर ले जाने का अंदेशा जताते हुए सहायक पुलिस अधीक्षक को बच्ची की सुरक्षा के लिए पुलिसकर्मी तैनात करने का भी आग्रह किया, लेकिन किसी ने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया। पुलिस ने तो बच्ची को अस्पताल प्रशासन के सुपुर्द कर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। जवाजा थाना प्रभारी रमेन्द्रसिंह को तो अब यह भी जानकारी नहीं है कि मासूम बच्ची अस्पताल में जिन्दा है या मर गई। इस बात से मालूम चलता है कि पुलिस अपनी जिम्मेदारी के प्रति कितनी सजग है। जब उपखण्ड अधिकारी बनवारीलाल बासनीवाल से इस मामले में जानकारी चाही तो पहले उन्होंने समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों से फोन पर बात की और फिर खेद जताते हुए कहा कि प्रशासन इस बच्ची को समाज कल्याण विभाग में भेजने के प्रयास कर रहा है। बीते चार महीनों में कई दंपत्ति बच्ची को गोद लेने पहुंचे, लेकिन विधिक आदेश नहीं होने के कारण बच्ची को गोद देना संभव नहीं है। फिलहाल अमृतकौर अस्पताल के शिशु गहन चिकित्सा इकाई में भर्ती यह बच्ची अपनी मां के आंचल का इंतजार कर रही है।