मुल्क: जमीनी सवालों को आसमान तक पहुंचाने वाली फिल्‍म

मेरा कोना
: क्यों किसी एक विशेष समुदाय के प्रति उपधारणा कर ली जाती हैं: आखिर इतने पढ़ने लिखने का क्या फायदा? जबकि हम हिंसा को समर्थित कर रहे हैं : आइए अपने सपनों के भारत का निर्माण करें जहां अमन और शांति हो :

शिवानी कुलश्रेष्‍ठ

लखनऊ : मुल्क… कहते हैं कि फिल्में समाज का आईना होती हैं। वह समाज को प्रभावित करती हैं। युवा पीढ़ी उसके प्रभाव में जल्दी आ जाती हैं। ऐसा भी कहा जाता हैं कि फिल्में अश्लीलता परोसती हैं। घर के बड़े-बुजुर्ग, अपने बच्चें की गलती पर फिल्मों को कोसते हैं। प्रश्न यह हैं कि अभी हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ‘मुल्क’ समाज को प्रभावित करेगी? क्या समाज को वह आईना दे पायेगीं जिसमें वह अपना मॉब लिचिंग वाला चेहरा देख सकें।

शीर्ष अदालत ने केंद्र से कहा था कि वो मॉब लिंचिगं के दोषी पाए गए लोगों को दंडित करने के लिए एक अलग कानून तैयार करे। खैर! इस पर बाद में विस्तार से बात करेगें। आइए जरा सकारात्मक दृष्टि से मुल्क फिल्म के समकालीन समाज पर पड़ने वाले प्रभाव पर चर्चा करें। अनुभव सिन्हा द्वारा निर्देशित इस फिल्में रिषी कपूर, तापसी पन्नू, नीना गुप्ता और आशूतोष राणा जैसे दिग्गज कलाकार हैं। लगभग 140 मिनट की फिल्म दर्शकों को बांधें रख सकती हैं। लेकिन सामाजिक परिप्रेक्ष्य में यह फिल्म बहुत अहम रोल अदा करती हैं। आखिर कैसे भारत धर्म और जातियों में बंट गया। इस फिल्म ने इस बात का उत्तर भी दे दिया, आखिर क्यों माइक लगाकर धार्मिक आयोजन किये जाते हैं। क्यों आम आदमी की नींद खराब की जाती हैं जबकि माननीय उच्चतम न्यायालय माइक को धर्म का अहम हिस्सा नही मानती। क्यों किसी एक विशेष समुदाय के प्रति उपधारणा कर ली जाती हैं? क्यो पाकिस्तान जाने के नारे लगाये जाते? क्यों बच्चे भटक जाते हैं? मां बाप के द्वारा देखभाली न किये जाने के क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं? इन बातों का जबाव इस फिल्म में बखूबी मिलेगा।

उन परिस्थितियों को दिखाया गया हैं, कैसे राम और रहीम तथा सुशील और सुलेमान एक दूसरे के कट्टर दुश्मन बन जाते हैं। भारत के लिए एक संविधान का निर्माण किया गया। ‘हम भारत के लोग’ प्रस्तावना को बनाया गया ताकि उन लक्ष्यों को इंगित किया जा सकें जिन्हें प्राप्त करने लिए संविधान निर्मात्री सभा ने संविधान का निर्माण किया। राजनीतिक पार्टियों और चुनाव बाजी के चक्कर में भारत धर्म और जातियों में बंट गया हैं। युवा पीढ़ी अब इतिहास की किताबें नही पढ़ती बल्कि वॉट्सएपीया ज्ञान के आधार पर अपनी सोच निर्मित करती हैं। आखिर कब तक हम सैकड़ों सालो की बातों को लेकर बैठे रहेगें? आखिर इतने पढ़ने लिखने का क्या फायदा? जबकि हम हिंसा को समर्थित कर रहे हैं।

वर्तमान समय में लोग कानून अपने हाथ में क्यों ले रहे हैं? गांधी जी के सिखाये अंहिसा के पाठ को क्यों भूल गये? भगतसिंह के त्याग को क्यों भूल गये? सभी वर्ग के लोग स्त्रियों को ही टारगेट क्यों करते हैं? किसी मुस्लिम से प्रेम होने पर क्यों धर्म परिवर्तन किया जाए? किसी हिन्दू के साथी शादी करने के लिए हिन्दू क्यों बना जाए? आखिर स्पेशल मैरिज एक्ट से शादी का विकल्प क्यों नही चुनते? इतिहास गवाह हैं हर लड़ाई में स्त्रियां टारगेट की जाती हैं। आखिर लव जेहाद और घर वापसी जैसे स्त्री के अस्तित्व चोट पहुंचाने वाले क्रिया-कलाप क्यों किये जाते हैं? आखिर हम धर्म से किसी व्यक्ति के चरित्र को क्यों आंकते हैं? कोई धर्म गलत मार्ग का अनुसरण करने की अनुमति नही देता। हर धर्म आचरण अई शुद्धता और मानवता पर बल देता हैं। जैसे-जैसे हम सम्यता की ओर बढ़ते जा रहे हैं। वैसे-वैसे असभ्य और क्रूर होते जा रहे हैं। समाज को और हमारे घर के बड़े बुजुर्गों को अपनी जिम्मेदारी तय करनी पड़ेगी। पुलिस और प्रशासन को देश के बारे में सोचना पड़ेगा।

भारत, भारतीयों का हैं। भारतीय वह हैं जो वोट देता हैं। जो टैक्स देता हैं। जो घूस नही देता। जो मौलिक कर्तव्यों का पालन कर रहा हैं। समाज अपना काम करें। कानून को अपना काम करने दें। आइए अपने सपनों के भारत का निर्माण करें। जहां नफरत और हिंसा के लिए कोई जगह न हो। जहां अमन और शांति हो।

ये मंदिरों का देश हैं ये मस्जिदों की सर ज़मीं

मेरा वतन खुदा का घर हैं मेरे वतन में क्या नही।

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