: कहीं मोदी जांघिया उतार कर चौपाये बने उकडूं बैठे, तो कहीं राहुल गांधी भीड़-भड़क्के में अपने मोबाइल पर नंगी औरतों को निहार रहे : कुरकुरे नामक उत्पाद पर प्रतिद्वंद्वी धंधेबाजों ने कसी थी लंगोट, चला अफवाहों का दौर :
कुमार सौवीर
लखनऊ : सोशल साइट्स। खबरों को इंस्टैंटली भेजने-मंगाने का एक नायाब है वाट्सऐप, फेसबुक, इंस्टाग्राम वगैरह। परस्पर बतियाने-बहस करने का भी मुफीद जरिया है सोशल साइट्स। लेकिन इस माध्यम को भी अब लगता है कि किसी की नजर लग गयी है। शनि की साढे साती जैसी नजर। वह भी ऐसी, जो इसकी मूल आत्मा यानी इसकी विश्वसनीयता तक का गला दबोचे दे रही है।
ज्यादातर पॉलिटिकल पार्टीयां और उनकी समर्थक ताकतें भी इसी माध्यम से जुड़ी हैं, और फिलहाल तो उन्होंने एक-दूसरे पर दुष्प्रचार और गाली-गलौज बना डाला है। इनकी आईटी सेल सक्रिय हैं, और एक-दूसरे की मां-बहन कर रहे हैं। कहीं मोदी जांघिया उतार कर चौपाये बने उकडूं दिख रहे हैं तो कहीं राहुल गांधी भीड़-भड़क्के में अपने मोबाइल पर नंगी औरतों को निहारते दिखाए जा रहे हैं। खास तौर पर कांग्रेस और भाजपा के बीच सर्वाधिक सक्रिय इन दोनों के आईटी सेलों ने इन दलों के नेताओं को फर्जी आरोपों की बाढ़ बना डाली है। नैतिकता तो यहां से भाग कर कहीं दूर किसी बीहड़ टापू पर आशियााना खोजने में बेहाल है। किसी भी घटना के सिरों को खोजने और उसे ढंग से संजोने-विश्लेषण करने की दिशा में सोशल साइट्स की भूमिका अब निहायत गंदी और आपराधिक ही होती जा रही है।
ताजा मामला है पेप्सी का। आपको पता ही होगा कि पेप्सी का एक प्रोडक्ट है कुरकुरे। इस उत्पाद के खिलाफ शुरूआत से ही नमकीन के धंधे में जुटे व्यवसाइयों की भृकुटी टेढी हो गयी थी। नतीजा यह हुआ कि इन धेंधेबाजों ने कुरकुरे के खिलाफ एक विरोध-अभियान छेड़ दिया। अब चूंकि ऐसे अभियान के लिए कोई जमीन खोजी ही नहीं सकती थी, इसलिए उसे अब तक निराधार माने जाने वाले सोशल साइट्स पर वायरल कर दिया। बाकायदा किस आपराधिक गिरोह की तरह। एक फर्जी और काल्पनिक कहानी गढ़ी गयी, और फिर उसे सोशल साइट्स पर ओढ़ा दिया गया। गिरोह की साजिश के तहत इस फर्जी मसौदा को धड़ाधड़ शेयर कराया गया। लाइिकिंग और कमेंट की बाढ़ आ गयी। सामाजिक और बाजार की समझ रखने वाले प्रभात त्रिपाठी इस पूरे मामले को गहराई तक खोज चुके हैं।
इस पूरे विवाद को समझने के लिए कृपया निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:-
अफवाहों पर हाईकोर्ट की भृकुटि टेढ़ी
निजी तौर पर तो मैं पेप्सी और कोक जैसी कम्पनियों का विरोध करता हूं। लेकिन पहली बार ऐसा लग रहा है कि अपने कुरकुरे नमकीन उत्पाद को लेकर जिस तरह पेप्सी ने हाईकोर्ट में अपना विरोध दर्ज कराते हुए मुकदमा दर्ज कराया है, वह बिलकुल सटीक, ईमानदार और वक्त की सख्त जरूरत था। हाईकोर्ट इस मामले में क्या फैसला करता है, यह काम मेरा-हमारा नहीं, बल्कि उस पर तो न्यायपालिका ही तय करेगी। लेकिन इतना जरूर है कि इस तरह के कदम सोशल साइट्स पर काबिज और केवल अफवाहों वाली आग भड़काने में जुटे लोगों या गिरोहों की हरकतों पर अंकुश लगायेंगे। और अगर ऐसा होता है तो फिर तो सोशल साइट्स की अवधारणा पूरी तरह पवित्र होने की दिशा में बढ़ने लगेगी।