बडे पुलिस दिग्गज भी हैरत में हैं हैदराबादी करतूत पर

बिटिया खबर

: यूपी के डीजीपी रहे प्रकाश सिंह व डीपीसी आमोद कंठ भी स्तब्ध : कत्तई अनप्रोफेशनल तरीका था हैदराबाद पुलिस का कारनामा :

दोलत्ती संवाददाता

लखनऊ : हैदराबाद की घटना पर एक ओर जहां पुलिस समर्थक तालियां पीट रहे हैं, वहीं ऐसे ऐनकाउंटर पर भी गंभीर सवाल उठने लगे हैं। पूछा जा रहा है कि बिना पूरी सुरक्षा पर ध्यान दिये गये, तेलंगाना की हैदराबाद ने गैंगरेप के अभियुक्तों को घटनास्थल पर घटना का नाटकीय रूपांतरण करने की इजाजत कैसे दी गयी। जाहिर है कि इस लापरवाही के लिए हैदराबाद पुलिस आयुक्त को सीधे-सीधे घसीटा जा रहा है।

उप्र के पूर्व रहे डीजीपी और बीएसएफ के पूर्व डीजी प्रकाश सिंह ही नहीं, बल्कि दिल्ली के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी रहे आमोद कंठ तक ने इस मामले पर अपनी कडी प्रतिक्रिया जतायी है। प्रकाश सिंह का साफ तौर पर कहना है कि हैदराबाद पुलिस का मुठभेड़ करने तरीका पूरी तरह से अनप्रोफेशनल रहा है। उनका कहना है कि जब भी पुलिस की टीम घटनास्थल पर क्राइम सीन रीक्रिएट करने के लिए आरोपी को लेकर पहुंचती है, तो उसके पहले कई जरूरी पहलुओं पर ध्यान दिया जाना जरूरी होता है।उनका कहना है कि मसलन हर आरोपी की पूरी तरह से फिजिकल जांच-पड़ताल की जाती है कि कहीं वह अपने साथ कुछ हथियार या रसायन या कुछ ऐसी सामग्री तो नहीं लिए हुए है। क्राइम सीन रीक्रिएशन वाले स्थान को लेकर सावधानी, इससे जुड़ी सूचना को लेकर सावधानी बरती जाती है।

इन अधिकारियों के अनुसार आरोपियों को ले जाने वाले पुलिस कर्मियों की संख्या, वाहन आदि पर भी ध्यान दिया जाता है। उन्हें हथकड़ी या पुलिस अभिरक्षा में पूरी तरह से नियंत्रण में रखने के उपायों के साथ ले जाया जाता है। ऐसा होने पर आरोपियों की इस तरह की स्थिति पैदा होने की संभावना न के बराबर रहती है। इस जरह से देखा जाए तो हैदराबाद की घटना पूरी तरह से बचकानी और अनप्रोफेशनल तरीका अपनाने की तरफ इशारा करती है।

प्रकाश सिंह का कहना है कि हम मानकर चल रहे हैं कि गोली चलाने की स्थिति आई, क्योंकि घटना की तस्वीर अभी साफ नहीं है। लेकिन बड़ा सवाल है कि गोली चलाने की नौबत क्यों आई? चार आरोपियों को लेकर जाने वाले पुलिस कर्मियों की संख्या कितनी थी? क्या पुलिस ने आरोपियों पर फिजिकल कंट्रोल के लिए सभी सावधानियां बरती थी?आमोद कंठ ने भी इस पर सवाल उठाया है। पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो के एक बड़े अधिकारी का कहना है कि पुलिस मैनुअल्स इस तरह की कार्रवाई की इजाजत नहीं देते। क्राइम सीन रीक्रिएट करने के लिए कौन सा समय और क्यों चुना गया? आरोपी किस परिस्थिति में और कब पुलिस पार्टी की पकड़ से छूटे, हथियार छीनने का अवसर पाए और हमला करके भागने लगे?

क्या पुलिस के पास उस समय केवल गोली चलाने का ही एकमात्र चारा था?आखिरी सवाल, बलात्कार की घटना रात में हुई थी। घटना वाली जगह सूनसान थी। पुलिस और अन्य को इसकी जानकारी सुबह मिल पाने की सूचना है। बलात्कार के बाद आरोपियों ने युवती को जला दिया था और उसकी मृत्यु हो चुकी थी। घटनास्थल के पास सीसीटीवी जैसा कुछ अन्य निगरानी उपकरण होने की जानकारी नहीं है। ऐसे में कैसे यकीन किया जाए कि जिन्हें पुलिस पुलिस ने बलात्कार, हत्या के आरोप में पकड़ा है, वहीं वास्तविक आरोपी थे।

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