मेडिकल पढ़ाई एक करोड़ में, सेवाधर्म बाबाजी का घंटा

दोलत्ती

: चीनी समेत विदेशी मेडिकल कालेजों में पूरी मेडिकल पढाई एक करोड़ में : ऐसे में डॉक्‍टरी सेवा नहीं, बल्कि लुटेरा-धर्म : चीन में कोरोना-तीन : 
कुमार सौवीर
लखनऊ : ( गतांक से आगे ) चीन में फैले कोरोना वायरस से थरथर कांप रहे भारतीय युवाओं की हालत वाकई बहुत पतली हो चुकी है। यह युवा और उनके घरवालों की बात और हालत को समझना तो एक बात है, लेकिन इससे अलग भी कुछ ऐसे तथ्य हैं जिसे देखना-समझना बहुत जरूरी होगा। वजह यह कि अगर इसे नहीं समझा गया तो शायद हम एक बड़े सवाल और उसके समाधान से महरूम हो जाएंगे। हमेशा हमेशा के लिए। और इसका साफ असर हमारी भावना और इंसानियत वगैरह पर भी साफ दिखाई पड़ेगा।
तो पहले यह समझ लीजिए कि चीन में कौन से छात्र पढ़ रहे हैं। वह कौन हैं और किन हालातों में वे चीन पहुंचे है। उनका असल मकसद क्‍या है। उनका जीवन-ध्‍येय लक्ष्‍य क्‍या है। वे किस सामाजिक और आर्थिक आधार वाले परिवारों से आते हैं। और मेडिकल की पढ़ाई करने के बाद उनकी रणनीति क्‍या है। हमें इन सवालों, बातों, तथ्‍यों और तर्कों को समझने के लिए इस पूरे प्रकरण को सिलसिलेवार समझना होगा।
तो पहले यह समझ लीजिए कि मेडिकल पढ़ाई के लिए छात्रों को कड़ा परिश्रम करना होता है। इसके लिए बाकायदा सीपीएमटी जैसे टेस्ट आयोजित किए जाते हैं जिसमें पास करने के बाद ही कोई भी छात्र मेडिकल पढ़ाई कर सकता है। दूसरे पायदान पर वह युवा होते हैं जिन्हें सीपीएमटी में सीधा दाखिला नहीं हो पाता या फिर वे डोनेशन सीट पर ही चयनित हो पाते हैं। ऐसे दूसरे पायदान में खड़े होने वाले छात्र मोटी रकम चंदा के तौर पर निजी मेडिकल कालेजों की जेब में अदा करते हैं और तब अपनी सीट रिजर्व कर लेते हैं। भारत में इसके अलावा कोई और तरीका नहीं है जहां कोई युवा मेडिकल पढ़ाई कर सके।
लेकिन ऐसे युवाओं और उनके अभिभावकों ने इसके लिए एक नया शॉर्ट रूट खोज लिया है। अब यह लोग मोटी रकम खर्च करके विदेशी मेडिकल कॉलेजों की ओर जाते हैं और वहां भारी रकम चुका कर मेडिकल की डिग्री खरीद लाते हैं। ऐसी डिग्री हासिल करने के लिए तकरीबन एक करोड़ रूपयों का खर्चा प्रतिछात्र पर आता है। हालांकि एक अन्‍य सूत्र ने बताया है कि इस पूरी पढ़ाई में एक छात्र के अभिभावक की जेब से ढाई से तीन करोड़ रूपयों तक का खर्चा हो जाता है।
प्रश्न यह उठता है कि इतना पैसा खुशी-खुशी खर्च करने वालों का असली चेहरा क्या है। जाहिर है कि यह बड़ा धनाढ्य वर्ग है जो अपने बच्चों को इतनी रकम देकर मेडिकल की पढ़ाई करने विदेश भेजता है, ताकि उनका भविष्‍य सुरक्षित हो सके। कहने की जरूरत नहीं है कि जो परिवार इतनी मोटी रकम अपनी जेब से अदा कर सकता है, उसकी आमदनी कितनी ईमानदार या कितना गुनाहगार खेतों से उगती-उपजती होगी, इसका अंदाजा लगा पाना आसान नहीं है। एक बात और, इतना पैसा खर्च करने के बाद जो युवा मेडिकल की सर्टिफिकेट खरीदेगा, वह लोकसेवा धर्म जैसे लोक कल्याण धर्म का निर्वहन किस तरीके से कर पायेगा। यह सवाल बेहद अहम है। खासतौर से तब जब इधर कुछ वर्षों से डॉक्टरों ने बड़े-बड़े और फाइव स्टार होटलों को मात करते नर्सिंग होम और अस्पतालों की स्थापना कर दी है। ऐसे अस्‍पतालों में बात बात पर मोटी रकम कमाया और वसूला जाता है। ऐसे डॉक्‍टरों को मरीज से भरपूर उगाही करने की ट्रेनिंग भी दी जाती है। ऐसी जगहों पर आने वाले मरीज की जान कतई भी कीमत नहीं रखती। हां, उसका पर्स का आयतन और उसकी अदायगी कर पाने की औकात इन अस्पतालों का मूल धर्म होता है। (क्रमश:)

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