मौत के 25 बरस बाद नागार्जुन पर कीचड़

दोलत्ती

: जनकवि बाबा नागार्जुन पर एक मासूम बच्‍ची से तथाकथित दुष्‍कर्म पर हंगामा : मिथिला के दोनों कवि चुक गये, बाकी बच गया अंडा : विवाद से पल्‍ला झाड़े बुद्धिजीवियों ने चुपके से दुबके : गुनगुन के आरोप पर संशय का सवाल नहीं, लेकिन इतने बरस बाद ? : सादतपुर तो पत्रकारों-लेखकों का मोहल्‍ला था, मगर कोई शिकायत नहीं: 
कुमार सौवीर
लखनऊ : मिथिला में दो महान कवि जन्‍मे हैं। एक तो करीब दो सौ साल पहले विद्यापति, जिन्‍हें साक्षात शिव का अवतार माना जाता है। विद्यापति की कविताएं यूपी के पूर्वांचल तक पूरे सम्‍मान के साथ गायी जाती हैं। और दूसरा नाम है नागार्जुन का, जिन नाम यात्री या बाबा नागार्जुन के तौर पर मशहूर है। जन-कवि के तौर पर आज भी स्‍थापित हैं बाबा नागार्जुन। करीब ढाई दशक बीत चुके हैं बाबा नागार्जुन को मरे हुए। उसके बावजूद उनका नाम आज भी कविता और साहित्‍य के पन्‍नों पर पूरे सम्‍मान और धमक के साथ मौजूद है, धड़क रहा है।
लेकिन आज इन्‍हीं बाबा नागार्जुन का नाम आज एक कालिख के तौर पर पढा जा रहा है। वजह है उन पर लग रहा है एक घिनौना आरोप। उनकी मौत के पचीसों साल बाद एक युवती ने उन पर दुष्‍कर्म का आरोप लगाया, तो धरती डोलने लगी। क्‍या समर्थन, और क्‍या विरोध। दोनों ही पाले में अड़े-जमे लोगों ने अपने तीर-तरकश भाले-तेशे तेज करने दिये। आरोप-प्रत्‍यारोपों का दौर शुरू हो गया है।
यह आरोप लगाया है गुनगुन थानवी ने। आज करीब 35 बरस की उम्र यानी सात नवंबर 1984 को पैदा हुई गुनगुन ने यह आरोप लगाया तो हंगामा खड़ा हो गया। कविता और साहित्‍य की दुनिया से जुड़े लोगों में इस वक्‍त खासा वितंडा खड़ा हो चुका है। हालांकि अधिकांश लोग इस विवाद से अपना पल्‍ला छुड़ाये हुए खामोश हैं, या फिर बगलें झांकते हुए मैदान छोड़ कर भाग निकले हैं।
जयपुर की रहने वाली है गुनगुन थानवी। उसने कनोरिया कालेज औश्र आईआईएस जयपुर से पढ़ाई के बाद आईआईएसएस मुम्‍बई में भी शिक्षा हासिल की है। इसके बाद वह एक एनजीओ से जुड़ी और अरावली जयपुर में प्रोग्राम मैनेजर रह चुकी है। दोलत्‍ती को गुनगुन की ताजा जानकारी अब तक नहीं मिल पा रही है। हां, उसके फेसबुक अपडेट से इतना तो पता चल पा रहा है कि वह सामाजिक मसलों पर सक्रिय रहती है। खास तौर पर उसने जो फोटो लगायी है, उससे तो कम से कम यही एहसास होता है।
मेरी शादी में आये थे बाबा नागार्जुन जी। उसके बाद भी नागार्जुन जी से मैं कई बार मिला हूं। दिल्‍ली के सादतपुर में। मेरी ससुराल यानी सुरेश सलिल जी के घर के ठीक अगली गली में ही नागार्जुन जी का एक झोंपडी नुमा मकान था। अधबना सा। दो बार मैं उनसे तब मिला जब बाबा नागार्जुन जी सुरेश सलिल जी के घर पर आये थे। जबकि दो अन्‍य प्रकरणों में मैं खुद ही नागार्जुन जी से मिलने उनके घर गया था। इसके बाद कुछ अन्‍य स्‍थानों पर भी बाबा से मेरी भेंट होती रही। इन सभी मुलाकातों का वक्‍त रहा होगा करीब सन- 87 से सन-91 तक का। अधिकांश मुलाकातों में सलिल जी के सहारे में ही वे चलते-फिरते थे। लेकिन हर बार चैतन्‍य भाव में वे सभी से मिले। सब का हालचाल लिया। लेकिन उनके चेहरे पर कभी भी कोई लम्‍पट भाव मेरी निगाहों ने नहीं महसूस किया।

और केवल सुरेश सलिल जी ही क्‍यों, पूरे मोहल्‍ले और आसपास की कई गलियों के कई घरों में भी नागार्जुन जी बेधड़क आया-जाया करते थे। अक्‍सर रूक भी जाते थे। यह मोहल्‍ला साहित्‍यकारों और पत्रकारों का ही था, जहां देश के नामचीन पत्रकार व साहित्‍यकार भी रहते थे। लेकिन कभी भी नागार्जुन जी के बारे में ऐसी कोई भी शिकायत किसी ने नहीं सुनी। बच्‍चे तो बाबा के साथ खासे घुले-मिले थे।

केवल मेरी ही नहीं, किसी और की भी निगाहों ने भी ऐसा तनिक भी नहीं महसूस किया था। लेकिन आज अचानक बाबा नागार्जुन पर गुनगुन थानवी ने यह आरोप लगाया, तो मेरा माथा ही चक्‍कर खा गया। मेरा साफ मानना है कि कोई भी युवती अपने बीते जीवन और खास तौर पर अपने बचपन की किसी कटु घटना को सार्वजनिक करती है, तो उस पर संशय करने का कोई सवाल नहीं उठना चाहिए। लेकिन एक सवाल तो यह जरूर लगता है कि एक पढ़ी-लिखी और उच्‍च मध्‍यम आयवर्ग की युवती को ऐसा सच बोलने में इतना समय क्‍यों लिया। एक विवाद और भी है कि जिस समय-काल का जिक्र गुनगुन ने बताया है, उस समय बाबा नागार्जुन जी अपने अंडकोष की बुरी तरह सूजी हालत से जूझ रहे थे, जब उनका चलना-फिरना तक दूभर था। ऐसे में …..

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