पुरूष का चरित्र ही स्‍वार्थी है। क्‍या सीता, क्‍या सोनिया

: बिहार के लोग पश्चिम के घर अपनी बेटी ब्‍याहने में हिचकते हैं : उन्‍हें न बेटियों का सम्मान करने का सलीका है, न संवेदना, न इंसानियत, न तमीज, और न संस्कार : कुमार सौवीर लखनऊ : छपरा में प्रसिद्ध और वरिष्ठतम वकील हैं श्री बीरेंद्र नारायण सिंह। खानदानी शख्सियत है, और बड़े जमींदार भी […]

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पूरा देश और लंका तक छान मारा बाबा नागार्जुन ने

: विद्यापति के बाद मिथिला का पहला जनकवि : राहुल सांकृत्‍यायन को अपना अग्रज मानते थे बाबा : सत्‍याग्रह आंदोलन में आजादी में अंग्रेजों की लाठियां खायीं, जेल भी गये : दोलत्‍ती संवाददाता लखनऊ : आइये हम आपको बाबा नागार्जुन जी का परिचय करा दें। मूल नाम वैद्य नाथ मिश्र। नागार्जुन ने मैथिली भाषा में […]

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मौत के 25 बरस बाद नागार्जुन पर कीचड़

: जनकवि बाबा नागार्जुन पर एक मासूम बच्‍ची से तथाकथित दुष्‍कर्म पर हंगामा : मिथिला के दोनों कवि चुक गये, बाकी बच गया अंडा : विवाद से पल्‍ला झाड़े बुद्धिजीवियों ने चुपके से दुबके : गुनगुन के आरोप पर संशय का सवाल नहीं, लेकिन इतने बरस बाद ? : सादतपुर तो पत्रकारों-लेखकों का मोहल्‍ला था, […]

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मुक्ति-मार्ग के ज्ञानी अष्‍टावक्र

अष्‍टावक्र बोले: मोक्ष की लालसा में हुआ ध्‍यान-योग भी व्‍यर्थ
विकलांग और कुरूप अष्‍टावक्र ने बदल दी ज्ञान की परिभाषा
सुख-दुख, आशा-निराशा, जीवन-मृत्‍यु को समान भाव से देखो
मोक्ष नहीं, बल्कि मुक्ति का मार्ग ही एकमात्र संमार्ग
गेरूए वस्‍त्र और संन्‍यास के बजाय आत्‍मा की शुद्धि जरूरी

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हार कर भी जीत गयी विनम्र और विदुषी वाचकन्वी गार्गी

विदुषी वाचकन्‍वी के इतिहास को लेकर भारतीय साहित्‍य दरिद्र
जीत कर भी हारे याज्ञवल्‍क्‍य और हार कर भी अमर हो गयी गार्गी
अपमान को सहा, लेकिन गार्गी ने याज्ञवल्‍क्‍य को आत्‍मज्ञान करा दिया
पूरी सभा स्‍तब्‍ध। मामला ही ऐसा था। शास्‍त्रार्थ के इतिहास में कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि किसी प्रश्‍नकर्ता के साथ ऐसा अपमानजनक व्‍यवहार किया गया हो। तुर्रा यह कि यह घटना उस राजा की सभा में हुई जिसे स्‍वयं भी महान विद्वान माना जाता था। लेकिन होनी को कौन टाल सकता है। परम आत्‍मज्ञानी के तौर प्रतिष्ठित याज्ञवल्‍क्‍य ने झल्‍लाकर आखिर कह ही दिया- ’गार्गी, माति प्राक्षीर्मा ते मूर्धा व्यापप्त्त्’। यानी गार्गी, इतने सवाल मत करो, कहीं ऐसा न हो कि इससे तुम्हारा भेजा ही फट जाए।

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साक्षात शिव तो मैं ही हूं, तुम्‍हारा सेवक

जीवन के हर सुख-दुख में समाए हुए हैं विद्यापति :
शिवभक्ति की एक नयी श्रृंखला नचारी का निरूपण किया
मैथिल से असम, बंगाल, उडीसा व नेपाल-अवध तक में जैकारा
जै-जै भैरवी असुर भयावनी, पशुपति-भावनी माया अनुष्ठान गीत
मिथिला की मधुबनी पेंटिंग तक में विद्यापति के गीत हैं 
अवाम तक कविता पहुंचाने के लिए अवहट्ट बोली अपनायी

बादशाह ने कहा- इतने बडे़ ज्ञानी हो तो आज इम्तिहान हो ही जाए। कवि ने चुनौती स्‍वीकार कर ली। बस फिर क्‍या था। एक संदूक में बंद करके उस कवि को कुंए में लटका दिया गया। बाहर एक नृत्‍यांगना अपने करतब दिखा रही थी। सवाल था कि बंद बक्‍से से देखो कि ऊपर क्‍या हो रहा है। और हैरत यह कि उस कवि के होंठों से कविता की धाराप्रवाह सरिता बह निकली। कुंए के बाहर का पूरा ब्‍योरा बखान कर दिया। बोल थे- माधव की कहुं संदर रूपै, कनक कदली पे सिंह चढ़ाइल, देखल नयन सरूपै। सजनि निहुरि फुकु आगि, तोहर कमल भ्रमर मोर देखल, मढन ऊठल जागि। जो तोहें भामिनि भवन जएबह, एबह कोनह बेला, जो ए संकट सौं जौ बांचत, होयत लोचन मेला।

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