: जनकवि नागार्जुन, गुनगुन के साहसिक बयान में जो पुरुष है वह ‘अपराध’ कर रहा है : सनद रहे कि यह सब लिपाई है :
चंदन पांडेय
बैंगलोर: घरों को पहले गोबर से लीपा जाता था। चौके को रोज राख से या मिट्टी से लीपा जाता था। लीपने से अमूमन कचरा बैठ जाता है।
गुनगुन थानवी ने साहस बटोरा होगा तब यह कहने में सक्षम हो पाई होंगी कि हिंदी के प्रसिद्ध कवि नागार्जुन ने उनका यौन-शोषण किया जब वो महज सात वर्ष की थीं। गुनगुन को जितनी मानसिक पीड़ा पहुँची होगी उसकी कल्पना भी रूह कँपा सकती है। बयान कर सकने के इनके साहस को मैं सलाम करता हूँ।
फिर लिपाई क्या है?
गुनगुन ने अकेले पड़ जाने की कीमत पर भी जिस घटना को बयान किया उस पर आने वाली प्रतिक्रियाएँ। जो हिंदी के शिक्षक हैं, जो उन शिक्षकों के छात्र हैं और बाकी जो कहीं न कहीं कविता कहानी उपन्यास के ‘बिजनेस’ में हैं उन्हें क्या ही जाए! ज्यादातर लोग ‘हम गुनगुन के साथ हैं’ कह कर आगे बढ़ जा रहे हैं। कुछ लोग बाल यौन हिंसा पर अक्षर और कीपैड फिसला रहे हैं।
कुछ लोग नागार्जुन की कविताओं से इतने प्रभावित दिखना चाह रहे कि वो कुछ बोल ही नहीं पा रहे। कुछ लोग, महज कुछ लोग, इसे नैतिक-अनैतिक के खाँचे में डाल कर सोने जाने वाले हैं। और कुछ डेस्परेट लोग चारित्रिक दुर्बलता का हवाला दे रहे।
और सनद रहे कि यह सब लिपाई है।
दरअसल एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल कोई नहीं करना चाह रहा वह है: अपराध। महानुभावों, गुनगुन के साहसिक बयान में जो पुरुष है वह ‘अपराध’ कर रहा है। क्रूरता, शक्ति-प्रदर्शन, अपराध। क्योंकि गुनगुन उस समय महज सात वर्ष की थीं। जिसने उन्हें अपनी यौन हिंसा का शिकार बनाया वह ‘अपराधी’ है। वो नागार्जुन ही क्यों न हों।