तीस खरब रूपये की सरकारी जमीन उपद्रवियों को सौंपी

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: पांच हजार उपद्रवियों की मौजूदगी को लगातार दूध पिलाता रहा प्रशासन : आखिर उस जमीन पर अनुमति देने की वजह क्या थी : कलेक्ट्रेट और एसएसपी ऑफिस से सटी है कब्जाई जमीन :

कुमार सौवीर

लखनऊ : दिल्ली हाईवे पर है यह बेशकीमती सरकारी जमीन। इस जमीन की मिल्कियत है उप्र के उद्यान विभाग के नाम पर। इसकी कीमत 3000 करोड़ रूपये बतायी जाती है। लेकिन 14 मार्च-14 को मथुरा के जिला प्रशासन ने इस जमीन पर अपना धरना-प्रदर्शन करने की इजाजत दे दी। जबकि इस पर ऐसे किसी भी धरना-प्रदर्शन आदि की इजाजत दी ही नहीं जा सकती थी। यह कृषि भूमि थी, राजनीतिक अखाड़ा नहीं। लेकिन प्रशासन ने सारे तर्क जमीन पर फेंक दिये और यह जमीन पहली बार सरकार के कब्जे  से निकल कर उन लोगों तक पहुंच गयी, जिनका कोई अता-पता तक नहीं था। प्रशासन को पता ही नहीं था कि यह लोग कहां से आये, उनका नेता कौन था और उनके तथाकथित संगठन कौन था।

प्रशासन ने यह इजाजत यह जानते हुए भी दे दी कि यह एक ऐसा अराजक संगठन है जो संविधान को ही देशद्रोही मानता है। वह न राष्ट्रपति को मानता है, न प्रधानमंत्री को। वह अपने नाम का सिक्के  चलाने का ऐलान करता है और अपनी ऊल-जुलूल मांगों और हरकतों से पूरी हिन्दी  बेल्टो में अराजकता फैला रहा है। वह एक रूपये में 60 लीटर डीजल और 40 लीटर पेट्रोल की मांग करता है। वह जनता की हुकूमत की नहीं, अपने हिसाब से संचालन चाहता है देश का।

लेकिन प्रशासन ने इन बातों को नजरअंदाज कर दिया। इसके पहले कभी भी इस जमीन पर ऐसी कोई अनुमति नहीं दी गयी थी, लेकिन जिलाधिकारी ने पहली बार ऐसा आदेश कर दिया। कहने वाले तो यही बता रहे हैं कि प्रशासन ने इस इजाजत के साथ ही यह इशारा भी कर दिया कि:- अब इत्‍मीनान से यहीं रहना। यह जमीन तुम्हारी ही है।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि यह सारा सुनियोजित हुआ। प्रशासन ने उद्यान विभाग से पूछा तक नहीं कि उसकी जमीन किसी प्रदर्शन के लिए दी जा सकती है या नहीं। यह तक समझने की कोशिश नहीं की गयी कि अगर ऐसे हजारों लोगों का जमावड़ा होगा तो इस भूमि पर चल रहा कृषि-उपयोग कर्म प्रभावित होगा या नहीं। यह तक नहीं देखा गया कि दो दिन तक इस जमीन पर जब आंदोलनकारी आयेंगे तो उनके लिए शौचालय की क्यात व्यवस्था होगी। यह भी नहीं सोचा गया कि दो दिन की इजाजत के अगर यह लोग जमीन को छोड़ने से इनकार कर देंगे तो फिर प्रशासन और पुलिस क्या करेगी। लेकिन प्रशासन को इस बारे में कोई लेना-देना नहीं था। प्रशासन के अफसर तो इस जमीन पर हर कीमत पर एक इतिहास बनाने पर आमादा थे। अभूतपूर्व फैसला करते हुए कि सरकार का यह विशाल भूखंड इन अनजान लोगों को थमा दिया जाए। ताकि वह लोग उस जमीन पर हमेशा-हमेशा के लिए कब्जा कर सकें। एक सूत्र का कहना है कि इसके लिए अफसरों को सरकार में बैठे लोगों का सख्ता इशारा हो चुका था।

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