मत लेना एलडीए के फ्लैट। महंगा ही नहीं, रद्दी भी है

दोलत्ती

: कमिश्‍नर मुकेश मेश्राम ! आप इतने भोले तो हर्गिज नहीं : किसके कार्यकाल में बने थे ऐशबाग, कानपुर रोड, पारा व जानकीपुर में हजारों फ्लैट : आज विलाप किया कि यह रद्दी बने हैं,चीत्‍कार शुरू :

कुमार सौवीर

लखनऊ : अगर आप लखनऊ में कोई फ्लैट खरीदने का मन बना रहे हैं, तो दोलत्‍ती के पास आपके लिए एक सलाह है। सलाह यह कि आप चाहे कहीं भी फ्लैट खरीद लीजिएगा, लेकिन भूल कर भी लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा बनायी गयी योजनाओं में फ्लैट मत खरीदियेगा। यकीन मानिये कि अगर आपने एलडीए के फ्लैट खरीदे तो आप जीवन भर अपने इस फैसले पर खून के आंसू बहाते रहेंगे। वजह यह कि यह फ्लैट न केवल घटिया बने हैं और बेहूदी लोकेशन में बना दिये गये हैं, कीमत भी बेतहाशा बढ़ाई गयी है। आशंका है कि यह फ्लैट जल्‍दी ही खंडहर में न तब्‍दील हो जाएं।
खुद एलडीए के आला अफसर भी यह मान रहे हैं। इतना ही नहीं, एलडीए के अध्‍यक्ष का काम भी सम्‍भालने वाले लखनऊ के मंडलायुक्‍त मुकेश मेश्राम ने भी इस बारे में खुलासा कर दिया है। मुकेश मेश्राम ने तो यहां तक कह दिया है कि इन फ्लैट को न तो खराब लोकेशन में तैयार किया गया है, बल्कि उनकी कीमत भी बेहिसाब रखी गयी है। मंडलायुक्‍त मेश्राम का कहना है कि वह समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर कोई इन फ्लैट को क्‍यों खरीदेगा। उनका कहना है कि इन फ्लैट्स की कीमत तो तत्‍काल पचीस फीसदी कम कर दी जानी चाहिए। आपको बता दें कि लखनऊ के मंडलायुक्‍त ही एलडीए के पदेन अध्‍यक्ष होते हैं। जबकि एलडीए के मुख्‍य प्रशासनिक अधिकारी होते हैं उपाध्‍यक्ष।

दोलत्‍ती सूत्र बताते हैं कि मुकेश मेश्राम ने इस मामले में एलडीए के इंजीनियरों पर भी सारी तोहमत थोप दी है। जबकि मामला ठीक वैसा ही नहीं है, जैसा मंडलायुक्‍त कह रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि एलडीए की हालत सिर्फ अचानक हो गयी है। दरअसल यहां की बर्बादी की यह कहानी तो काफी पुरानी है। उस वक्‍त भी, जब मुकेश मेश्राम एलडीए के उपाध्‍यक्ष हुआ करते थे। एलडीए का इतिहास है कि जो भी अफसर यहां आया है, उसने यहां मनमर्जी की है और एलडीए को दोनों हाथें-अंजुरियों से लूटा-खसोटा है। लेकिन आज जब सारे तोते हाथों से उड़ चुके हैं, लखनऊ विकास प्राधिकरण के आला अफसरों ने विधवा-रुदन शुरू कर दिया है।

ताजा वजह है हजारों बने फ्लैट, जो आज रद्दी बन चुके। लूट का आलम यह है कि इन मकानों के खंडहर में तब्‍दील होने की डुग्‍गी बजने लगी है। अकेले देवपुर पारा में डेढ़ हजार फ्लैट बने खड़े हैं, लेकिन सब के सब खाली। ऐशबाग टॉवर में ढाई सौ फ्लैट बनाये गये थे, लेकिन पिछले चार बरस में उसमें से केवल दो फ्लैट ही अब तक बिक पाये हैं। इतना ही नहीं, जानकीपुरम और कानपुर रोड योजना की हालत उससे भी ज्‍यादा बदतर है।
सूत्रों के अनुसार एलडीए में करीब तीन हजार फ्लैट खाली हैं। इनके खरीदार नहीं मिल रहे हैं प्राधिकरण ने 2019 में इनकी कीमतों में 3 से लेकर 13 लाख रुपए तक कमी की थी। इसके बावजूद बताया जाता है कि अभी भी यह कीमतें काफी ज्यादा हैं। दोलत्‍ती सूत्र बताते हैं आलम यह है कि ऐसे दो बेडरूम के फ्लैट की कीमत 50 लाख रुपए है। ऐसी हालत में कौन ऐसा मूर्ख होगा, जो इन फ्लैट को इस कीमत पर खरीद लेगा। खास कर तब, जब कोरोना संक्रमण-काल में सम्‍पत्ति को खरीदने वाले लोग ही नदारत हैं। हां, अपनी सम्‍पत्तियां बेचने वालों की तादात तो बाकायदा भीड़ लगाये खड़ी है। इनमें एलडीए भी एक है।

दोलत्‍ती सूत्र बताते हैं कि हाल ही ऐशबाग टावर का निरीक्षण करने पहुंचे कमिश्नर मुकेश कुमार मेश्राम ने जब दो बेडरूम के फ्लैट की कीमत 50 लाख सुनी, तो उनके पांवों तले जमीन खिसक गयी। वे हैरान रह गए। उन्हें समझ में नहीं आया कि इसमें एलडीए ने क्या लगाया है जो कीमतें इतनी ज्यादा हैं ? यही हालत जानकीपुरम, कानपुर रोड तथा देवपुर पारा की भी है, जहां के फ्लैट्स की कीमतें भी बहुत ज्यादा हैं। जबकि इनकी लोकेशन अच्छी नहीं है। ऐशबाग में एलडीए ने 248 फ्लैट बनाए हैं लेकिन इसमें से 4 वर्षों में केवल दो फ्लैट ही बिके हैं।

इसी तरह देवपुर पारा में अकेले डेढ़ हजार से ज्यादा फ्लैट खाली हैं। प्राधिकरण के फ्लैट बहुत महंगे हैं। ऐशबाग में छोटे-छोटे फ्लैट की कीमत 50 लाख रुपए है। इतनी कीमत में इन्हें कौन खरीदेगा। एलडीए ने बिना जरूरत व डिमांड सर्वे के इनका निर्माण कराया है। दोलत्‍ती सूत्रों के मुताबिक अगर इन्हें जल्‍दी नहीं बेचा गया तो भविष्‍य में उनके खंडहर होने का अंदेशा हो जाएगा।

मगर असल सवाल तो यह है कि आखिर इन फ्लैट की यह हालत कैसी हुई और उनकी कीमत इतनी ज्‍यादा क्‍यों उचक गयी है? यह सवाल एलडीए के अध्‍यक्ष और लखनऊ के मंडलायुक्‍त मुकेश मेश्राम ही पूछ रहे हैं। लेकिन वह यह नहीं बता पा रहे हैं कि यह हालत की शुरुआत उस समय हुई थी, जब वे एलडीए के उपाध्‍यक्ष हुआ करते थे या नहीं। योजनाएं रातोंरात नहीं बन जाती हैं। इन फ्लैट को तैयार करने में अफसरों को लम्‍बा समय लगता है। कीमत भी कोई एक व्‍यक्ति नहीं तय करता है। अगर यह सब मुकेश मेश्राम के वक्‍त में नहीं भी हुआ होगा, तो फिर यह भी पूछना ही चाहिए कि आखिर किस अफसर के समय में यह करस्‍तानी हुई और उस वक्‍त कौन-कौन जिम्‍मेदार अफसर थे, जिन्‍होंने यह लापरवाही और लूट का माहौल बनाया।

बहरहाल, दोलत्‍ती सूत्र बताते हैं एलडीए इन फ्लैटों के न बिकने की वजह से अब कीमतें कम करने की तैयारी चल रहा है। कमिश्नर ने एलडीए से इनकी कीमतें कम करने को कहा है कि 25 फ़ीसदी तक कीमतें कम जाए, ताकि यह जरूरतमंदों की पहुंच में आ सकें। फिलहाल तो एलडीए ने इसके लिए एक कमेटी बना दी है। कमेटी अपना प्रस्ताव तैयार कर बोर्ड में रखेगी। कीमतें कम करने का अंतिम निर्णय बोर्ड लेगा। लेकिन यह सारी कवायद कब तक निपटा ली जाएंगी, इस बारे में कोई भी नहीं बता रहा है।

बहरहाल, दोलत्‍ती डॉट कॉम की यह जिम्‍मेदारी और दायित्‍व है कि हम आपको सलाह दे दें, जो हमने आपको दे दी है। बाकी आप जानें, और आपका काम जाने।

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