: सुरमा बाजार में झुमका क्या मिला, बडा दारोगा का सपना पूरा : सपनों को साकार कर दिया बरेली के अभिनव प्रयासों ने :
कुमार सौवीर
लखनउ : तो ताजा खबर यह है कि बरेली का झुमका मिल गया है। वहीं, बरेली में भी, वह भी भरे बाजार। इस बरामदगी से पूरे इलाके में हंगामा खडा हो गया है। होली के ऐन वक्त पर सुरमई बरेली की सुरमा-भूमि पर झुमका मिल जाना ऐतिहासिक माना जा रहा है। माहौल में गीतों का शोर और चटखारे लगने लगे हैं। लेकिन बेहाली का आलम के बजाय यहां हर्ष और उल्लास वाली लहरें उछल रही हैं।
जी हां, करीब पचपन बरस से झुमका पूरी दुनिया में किसी दिलचस्प किस्से-कहानी तक की लोगों के दिल:दिमाग में चिल्ल-पों कराता रहता था। हालांकि बरेली इसके पहले भी अपने सुरमा और बेंत के फर्नीचर के व्यवसाय को लेकर खासा मशहूर था। लेकिन इस गीत ने बरेली की शोहरत को और भी ज्यादा चमका दिया।
लेकिन इस बरामदगी से सिर्फ बरेली ही नहीं, बल्कि गीतों के प्रेमी भी गदगद हैं। खास तौर पर बरेली के डीआईजी राजेश पांडेय। राजेश पांडेय को तो मानो कारूं का खजाना मिल गया है। उनकी बरसों की साध पूरी हो गयी इस विख्यात झुमका की बरामदगी के चलते। मस्ती में झूम रहे राजेश पांडेय ने बरेली की इस उपलब्धि को लेकर अपनी फेसबुक वाल पर खासा दिलचस्प पोस्ट डाली है। उन्होंने लिखा है कि: “झुमका गिरा रे….. बरेली के बाजार में ….. ” 1966 की मशहूर फिल्म ” मेरा साया ” का ये गाना बरेली को एक पहचान दे गया। मेरी डीआईजी बरेली की पोस्टिंग होते ही मित्रों शुभचिंतकों द्वारा हास-परिहास में हमेशा यह कहा जाता रहा कि” झुमका मिला कि नहीं”।
राजेश पांडेय लिखते हैं कि:आज बरेली का झुमका मिल गया। लखनऊ दिल्ली हाईवे पर बरेली शहर के प्रवेश मार्ग पर स्थित परसाखेडा चौराहे पर आज विधि-विधानपूर्वक एक पार्क में समारोहपूर्वक इस ” झुमके” को स्थापित किया गया और इस स्थान का नाम “झुमका तिराहा ” रखा गया।
सच बात तो यही है कि राजेश पांडेय की यह खुशी किसी पुलिसवाले के साथ ही उस मानवीय भाव की अभिव्यक्ति है, जो समाज में हो रही सकारात्मक गतिविधियों को अपने अंतस में बटोरने में जुटा रहता है और समाज की हर खुशी को अपनी खुशी के तौर पर देखता और महसूस करता है।
राजेश पांडेय ने यह पोस्ट डाली तो पूरे देश को पता चल पाया कि झुमका खोने और उसका बरेली से रिश्ता खोजने जैसे क्षेपक को साकार करना उन लोगों की अटूट और जोशीले मेहनत का प्रतीक है, जो हर क्षण नये तरीके से जीवन को खोजने, बीनते और महसूस करते हैं। दरअसल, इस परसाखेडा चौराहे के जोशीले युवाओं ने जिस तरह झुमका के क्षेपक को साकार कर दिया है, वह साबित करता है कि हमारे समाज में अवसाद और नैराश्य से बढते माहौल के बावजूद उल्लास की भावनाएं अभी मरी नहीं हैं, बल्कि मौका मिलते ही खुद में अंकुरण करने की जिजीविषा रखती हैं।