मरकज में 14 सौ इस्लामी जेहादी! अंजाम क्या होता

बिटिया खबर

: कोरोना-बम की साजिश होती तो मुल्क तबाह होता : न तो हिन्दू बचता न मुसलमान : इतनी भीड जुटी रही, तो पुलिस कहां थी : कहां से जुटे निजामुद़दीन के मरकज में इतनी तादात में मुसलमान :
कुमार सौवीर
लखनऊ : दिल्ली को राजधानी यूं ही नहीं कहा-माना जाता है। दिल्ली का मायने होता है देश के राष्ट्रीय समााज, और आम आदमी के चरित्र का रेखांकन।
लेकिन दिल्ली के निजामुद़दीन में जो तस्वीर सामने आयी है वह मानवता, समाज और देश तो कम, खुद मुस्लिम जमात के लिए भी मौत का कुंआ और इंसानियत के नाम पर एक बेहद शर्मनाक धब्बा है। यहां के मरकज यानी मदरसानुमा सराय में भूसे की तरह ठूंस-ठूंस कर भरे गये 1400 मुसलमानों की मौजूदगी दस-बीस नहीं, बल्कि लाखों सवाल भी सुलगाने लगी है।
आपको बता दें कि छह मंजिली इस इमारत में भेंडों के रेवड की तरह जुटा लिये गये थे यह 1400 से ज्यादा मुसलमान। उनके इस जमावडे पर चर्चा बात में हो जाएगी, लेकिन एक भयावह आशंका को महसूस करने की जहमत फरमाइये तो तनिक, कि अगर इन सैकडों में से एकभी कोरोना वायरस से ग्रसित होता, जिसकी आशंका अभी भी जारी है और सभी की जांच का काम चल रहा है। तो इन सब को कोरोना हो जाता और फिर हालत क्या हो सकती थी, इसका अंदाजा लगाते हुए रोंगटे खडे हो सकते थे। एक कल्पना यह भी कीजिए कि अगर इन सब की एकजुटता का मकसद इन लोगों को कोरोना-बम के तौर बनाने का रहा होता और पूरी तरह संक्रमित होकर यह पूरा मुल्क ही हमेशा-हमेशा के लिए श्मशान या श्मशान में तब्दील हो जाता। फिर न तो हिन्दू बचता, न इसाई, न बौद्व, जैन और न खुद मुसलमान।
अपनी तकरीरों के जरिये मुसलमानों में इस्लाम के प्रति ताकत, जोश और जेहादी ऐलान करने वाले मौलानाओं ने इस मरकज में किस मकसद से इतनी भारी जमावडा कराया था, यह आम आदमी के जेहन में काफी कुछ तो जाहिर हो चुका है, बाकी तो जांच का विषय बनेगा। खासतौर पर तब, जबकि इसमें विदेशी लोग भी ठुंसे हुए थे। हालांकि बाद में तो जांच के बाद ही तय पता चलेगा, लेकिन आशंका इतना जरूर है कि इन एक हजार चार सौ से ज्यादा लोगों को इस मरकज में पिछले कई महीनों से क्यों जुटाया गया था। ऐसे जमावडे का मकसद क्या था।
कहने की जरूरत नहीं कि इसका जवाब इन मौलानाओं को ही देना होगा। और आम मुसलमानों को भी अपने गिरहबान में झांकना पडेगा कि आखिरकार दीन के नाम पर इतनी बडी तादात में मरकज से जुडे ऐसी बडी तादात वाले मुसलमान कोरोना वायरस के दुनिया भर को दहशत पैदा कर चुकी बीमारी के बावजूद इस तरह निहायत जानलेवा हालातों में क्यों और कैसे जुट गये।
मुसलमानों की इस निहायत बेशर्म, हत्यारी और अराजक हरकत से अलग अब एक अहम सवालको जवाब तो पुलिस और प्रशासन को भी देना होगा कि निजामुद़दीन की इस मरकज में चौदह सौ से ज्यादा मुसलमान कैसे जुटे, और ऐसे दस दिनों के दौरान निहायत डरावनी, हालातों में पुलिस को उनकी मौजूदगी का पता ही क्यों नहीं चल पाया। पुलिस और प्रशासन के मुखबिर क्या कर रहे थे। अब इसका जवाब जवाब एकसाथ मुसलमान, उनकी जमात, मरकज के प्रबंधक, वहां के मौलाना, वहां मौजूद मुसलमान, वहां भरे विदेशी मुसलमान के साथ ही साथ प्रशासन और पुलिस को देना ही होगा। साफ कहें तो केंद्र सरकार की जिम्मेदारी सबसे ज्यादा बनेगी, क्योंकि पुलिस का नियंत्रण अरविंद केजरीवाल नहीं, बल्कि केंद्र सरकार के प्रधानमंत्री और उसके ग्रहमंत्री के जिम्मे पर है।
लेकिन सबसे पहला जवाब तो मुसलमानों ही देंगे।
इंशा अल्लाह और आमीन !

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