: आंसू छलक पड़ेंगे संविदाकर्मियों का दर्द सुन कर : आरोप अनर्गल और क्षेत्राधिकार से परे, जांच के नाम पर शोषण भयावह : पैसा भी लेगें, औरत के बदन पर गिद्ध-दृष्टि भी : संविदा-तीन
कुमार सौवीर
लखनऊ : ( गतांक से आगे) दोलत्ती सूत्र बताते हैं कि इस मामले में पूर्वांचल का माहौल सबसे कुख्यात और स्त्री के प्रति निहायत दुर्दांत नरभक्षी की मानसिकता से ग्रसित है। पश्चिम में ऐसी हरकतें करने का साहस ही कोई नहीं कर पाता। अधिकांश मामलों में तो महिला संबंधित डॉक्टर को सीधे चप्पल या तमाचा रसीद कर देती है, या फिर अपने घरवालों को खबर दे देती है। अक्खड़ प्रवृत्ति वाले पश्चिम यूपी के लोग ऐसी हरकतों पर तत्काल कार्रवाई करते हैं। कई डॉक्टरों की तो सरेआम पिटाई होने की भी खबर हैं।
लेकिन पूर्वांचल में महिलाएं सकुची और संकोची होती हैं, इसलिए वे शुरुआती दौर में ही मामले को उठा पाने का साहस नहीं जुटा पाती हैं। पीडि़त महिला के परिवारीजन सबसे पहले तो ऐसी घटना के लिए उस महिला को ही दोषी ठहरा देते हैं, या फिर मामले को ही टाल देते हैं। अथवा यह सवाल उठा देते हैं कि तुम्हें नौकरी करने की जरूरत ही क्या है। दो-रोटी तो तुम्हें घर से मिल ही जाती है, फिर क्यों परेशान होती हो। तुम्हारी नौकरी के लिए मैं पूरी दुनिया से तो नहीं झगड़ सकता, चलो अब घर पर बैठो। जाहिर है कि ऐसी हालत में महिला का पूरा जोश ही ठण्डा हो जाता है।
दोलत्ती संवाददाता को मिली खबर के मुताबिक पूर्वांचल के एक जिले की एक एचआईवी-एड्स परामर्शदाता के साथ भी इसी तरह की साजिश बुनी जा रही है। बाकायदा जंगली कुत्तों की तरह गिरोह बना कर और षडयंत्र कर। पहले तो इस महिला पर ऐसे उन कार्यों में लापरवाही का आरोप लगाया, जो उसके कार्य-दायित्वों में आता ही नहीं है। इतने से भी काम नहीं चला तो यह आरोप लगाया गया कि वे अल्ट्रासाउंट कराने सिफारिश प्राइवेट सेंटरों तक मरीज को भेजती है। यह जानते हुए भी, कि यह काम तो डॉक्टर करता है, इसके बावजूद आरोप लगा दिया गया। और तुर्रा यह भी जोड़ दिया गया कि एक आशा कार्यकर्त्री को गालियां दी।
यह हालत तब है, जब हर अस्पताल में अधिकांश डॉक्टर भारी कमीशनखोरी, बेईमानी, अभद्रता और अश्लील हरकतें पकड़े जा चुके हैं, लेकिन उस पर कार्रवाई करने के बजाय, इस महिला परामर्शदाता पर जांच सीएमओ के स्तर पर बिठा दी गयी। उसके बाद से ही इस महिला की प्रताड़ना का पिटारा खोल दिया गया जांच के नाम पर। बयान के नाम पर उसे अक्सर दफ्तर कार्य-समय के बाद रोका जाने लगा, फिर उससे मोटी रिश्वत मांगी गयी। धमकी दी गयी कि आशा कार्यकर्ता को धमकी देने के आरोप में उसे पुलिस में मुकदमा दर्ज कराया जाएगाा। लेकिन यह महिला भी जी-दार निकलीा घूस पर साफ असमर्थता व्यक्त कर दी।
लेकिन जांच अधिकारी ने रोज-ब-रोज उसे फोन करना शुरू कर दिया। बहुत आत्मीयता का प्रदर्शन करते हुए इस महिला से जांच अधिकारी ने एक दिन कहा कि दफ्तर के बाद वह उस महिला के घर आयेगा। यह पूछने के बाद उसके घर कौन-कौन है, और कितने-कितने समय तक घरवाले लौटते हैं। सवाल यह है कि अगर कोई अधिकारी किसी संविदा महिला कर्मचारी पर लगे कतिपय आरोपों की जांच कर रहा है, तो वह जांच तो कार्यालय समय में ही होनी चाहिए, न कि दफ्तर के ड्यूटी-ऑवर के बाद। और दूसरी बात कि जिस महिला पर जांच चल रही है, उसके घर क्यों जाना चाहता है वह जांच अधिकारी। जाहिर है कि जांच-अधिकारी की प्रवृत्ति और उसकी मंशा ही अपवित्र और स्त्री के शील पर हमलावर कोशिश है।
सूत्र बताते हैं कि यह प्रताड़ना का दौर और प्रवृत्ति प्रदेश के लगभग सभी जिलों में बदस्तूर हो चुकी है। (जारी)