: बाल, चश्मा और सदरी के साथ शक्ल-ओ-सूरत मंत्री बनने की है : पत्रकार अब खुली दलाली पर आमादा, ब्रजेश पाठक पर सामवेद का गायन स्टार्ट : नेता-अपराधी गठजोड़ का मामला इतना भोला भी नहीं :
कुमार सौवीर
लखनऊ : पत्रकार का नव-धंधा भी बड़ा करिश्माई बनता जा रहा है। विकास दूबे की दरिंदगी का ताकत बने रहे राजनीतिक शख्सियतों के चेहरों को बेनकाब होने के बाद जिस तरह राजनीतिक लोगों की छटपटाहट उमड़ी है, उसने पत्रकारिता में घुसे आपराधिक-चरित्रों को भी सक्रिय कर लिया। अब हालत यह है कि अपराधों के प्रश्रयदाताओं को बचाने की कोशिश में कैरम की गोटियां की तरह पत्रकारों ने स्ट्राइक मारना शुरू कर दिया है। लेकिन इस कवायद से राजनीतिक सड़ांध में धंसे लोगों को भले ही कोई राहत न मिल सके, लेकिन उसने विकास दुबे की जघन्य पैशाचिक कारस्तानी को धूमल जरूर करना शुरू कर दिया है।
पत्रकारों ने इस मसले में बुरी तरह घिर चुके प्रदेश सरकार के मंत्री ब्रजेश पाठक के पक्ष में लॉबी कर एक अजब किस्म की खबरों को फैलाना शुरू कर दिया है। सूत्र बताते हैं कि पहला दांव तो यह चलाया गया था कि जिस फोटो में विकास दूबे को बताया जा रहा है, वह अपराधी विकास नहीं दूबे नहीं, बल्कि एक राजनीतिक व्यक्ति है। लेकिन जल्द ही यह खुलासा हो गया कि ब्रजेश के साथ खड़ा व्यक्ति अपराधी विकास दूबे ही है। फिर यह तर्क दिया गया कि ब्रजेश पाठक एक राजनीतिक व्यक्ति हैं, और उनसे मिलने वालों की तादात काफीहोती है। और यह मुमकिन नहीं होता है कि वे अपने साथ फोटो खिंचवा रहे व्यक्ति के बारे में गहरी छानबीन कर ले पायें। लेकिन यह भी भी कोशिशें निरर्थक और निष्फल हो गयीं। इस का खुलासा दोलत्ती डॉट कॉम ने पहले ही कर दिया था। उस छानबीन पर केंद्रित खबर को अगर देखना चाहें, तो कृपया निम्न लिंक पर क्लिक कर दीजिएगा।
अब आखिरी दांव चलाया गया है कि ब्रजेश पाठक की यह फोटो पुरानी है, और उस वक्त की है, जब ब्रजेश पाठक बहुजन समाज पार्टी में थे। इस तर्क की भी धज्जियां उड़ने लगी हैं अब। पहली बार तो यह कि यह सबसे पहले ही साबित हो चुका है कि इस फोटो में ब्रजेश पाठक के साथ फोटो खिंचवाने में विकास दुबे इच्छुक नहीं था, बल्कि सच यह है कि खुद ब्रजेश पाठक ही लपक कर विकास दुबे के साथ चिपकने की कोशिश कर रहे हैं।
रही बात इस फोटो के बसपा सरकार में शामिल होने की, तो यह भी बिलकुल फर्जी अफवाह ही निकली है। दोलत्ती सूत्रों ने इस फोटो को परखा है, जांचा है। उसके बाद कम से कम चार तर्क सामने आये हैं:-
1- यह कहा जा रहा है कि ब्रजेश तो राजनीतिक शख्स हैं, और उनके साथ तो कोई भी अपनी फोटो खिंचवा सकता है। उसमें अगर विकास दूबे ने ब्रजेश पाठक के साथ फोटो खिंचवा लिया, तो उसमें ब्रजेश पाठक का कोई दोष नहीं। लेकिन यह दावा करने वाले लोग यह भूल जा रहे हैं कि ब्रजेश पाठक के सक्रिय राजनीति में घुसने से साथ ही साथ विकास दूबे भी राजनीति में न केवल सक्रिय हो चुका था, बल्कि अपनी आपराधिक हरकतों के चलते खासा चर्चित भी हो चुका था। सन-2001 में एक थाने में घुस कर विकास दुबे ने जिस तरह राजनाथ सिंह सरकार के एक मंत्री को पुलिसवाले का असलहा छीन कर थाना परिसर में ही गोलियों से भून कर उसे मार डाला था, उसके बाद से ही विकास दुबे की कुख्याति को कानपुर, उन्नाव और आसपास के जिलों तक पसर चुकी थी। लोग विकास दुबे के नाम से थर्राने लगे थे। ऐसी हालत में यह कहना कि विकास दुबे के नाम और उसकी शक्ल से ब्रजेश पाठक परिचित नहीं थे, यह गले से नीचे नहीं उतर रहा है।
2 – नीले रंग वाले बसपा के दौर मे ब्रजेश पाठक के सिर में घने बाल हुआ करते थे, जबकि भारतीय जनता पार्टी में आने के बाद ब्रजेश पाठक के सिर से बाल काफी कुछ उड़ गये।
3 – बहुजन समाज पार्टी में ब्रजेश पाठक को कभी भी चश्मा पहने नहीं देखा गया, जबकि भाजपा में आने के बाद ब्रजेश पाठक के चेहरे पर काला चश्मा चढ़ गया।
4 – बसपा सरकार के दौर में ब्रजेश पाठक जो सदरी पहना करते थे, उसमें हल्का नीला रंग हुआ करता था। जबकि भाजपा सरकार में आने के बाद ब्रजेश पाठक ने जिस रंग की सदरी पहनना शुरू किया, वह बसपा काल से विपरीत है।