महिला दिवस: पुरुष माफ़ नहीं करते, औरत भूल नहीं पाती

दोलत्ती

: बहुत बवाली है मेडिकल साइंस। कहता है कि झंझटी है हारमोन : थोडा हम तुम्हारी तरह सोचें, कोशिश तो करो :
ढलान
दिल्‍ली : अमरीकी लेखक ..रॉबर्ट जॉर्डन लिखते हैं – “पुरुष भूल तो जाते हैं पर कभी माफ़ नहीं कर पाते – वहीँ महिलायें माफ़ तो कर देती हैं पर भूल नहीं पातीं” …:)) यहीं से शुरू होता है …पुरुष और महिला का आपस का द्वंध …पुरुष कहता है – जब मै सबकुछ भूल सकता हूँ ..फिर तुम क्यों नहीं …महिला पलट कर जबाब देती हैं – जब मै सबकुछ माफ़ कर सकती हूँ फिर तुम क्यों नहीं …:))
दोनों का मूल स्वभाव अलग है …फिर भी एक जिद है …वो मेरे जैसा क्यों नहीं …पुरुष उस महिला को आदरणीय बनाना चाहता है ….जो उसकी गलतीओं को भूल जाये …जो अपने अतीत को भूल कर मुझमे समा जाए …वहीँ दूसरी ओर महिला कहती है – पूजा उसी की करूंगी …जो मेरी गलतीओं को माफ़ कर दे …वही विशाल …!
द्वन्द जारी है …महिला का मन समुन्दर …न जाने तह में क्या क्या छिपा …पुरुष की जिद …समुन्दर में सिर्फ मै ही रहूँ …वश चले ..पुरे समुन्दर को सोख ले …जिद में पी जाये …खाली कर दे समुन्दर और उसमे खुद समा जाए …महिला की जिद ..पुरुष के ह्रदय को चीर दे …इतना छोटा कर दे ..जिसमे उसके अलावा कोई और न समा पाए …:))
बस खेल महिला के ‘मन’ का और पुरुष के ‘ह्रदय’ का – महिला कहे …मन में बहुत कुछ पर ह्रदय में सिर्फ तुम ही हो …पुरुष कहे …मन में सिर्फ तुम ही तुम …पर ह्रदय में बहुत कुछ …
पुरुष महिला के मन में सिर्फ खुद को देखने को बेकरार …वहीं दूसरी ओर महिला पुरुष के ह्रदय में सिर्फ और सिर्फ खुद को देखने को बेक़रार …
यह खेल सदिओं पुराना है …और यह खेल सदिओं तक चलेगा …:))
पर मेडिकल साईंस कहता है – दोनों में मेल / फिमेल का हारमोन – अर्धनारीश्वर का कांसेप्ट – थोडा तुम मेरी तरह सोचो – थोडा हम तुम्हारी तरह सोचें – …देखो ..आगे सफ़र सुहाना है .. 🙂

बात तो नये तर्ज पर दर्ज किया है DAALAAN.org ने। है न। यह आलेख स्‍पेन वाले राहुल मिश्र ने भेजा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *