भाग गया डीम्‍ड यूनिवर्सिटी का चांसलर-वीसी

दोलत्ती

: भ्रूण हत्‍या होने के आसार है बारहखंडी यूनिवर्सिटी का : स्वयं बारूद, स्वयं माचिस और स्वयं धमाका भी हैं उग्रनाथ :
कुमार सौवीर
लखनऊ : उग्रनाथ श्रीवास्तव जी व्यक्ति नहीं, मल्टी-कलर्ड पर्सनैल्टी हैं। स्वयं बारूद, स्वयं माचिस और स्वयं धमाका भी। लेकिन कभी भी चीथड़ों से डरना ही नहीं सीखा उग्रनाथ जी ने।
उनकी उम्र भले ही फास्ट-टैग लगाए 72 वाले माइल-स्टोन से उप्पर उड़ रही हो, लेकिन जवानी का जोश आज भी उनके होठों को अक्सर रसीला बना ही देता है। तुर्रा यह कि अनुभूत ज्ञानों की फुहारें बिल्कुल नियाग्रा-फॉल की तरह छूटती रहती हैं। वे साफ-साफ बात कहते हैं, भले ही वे निंदा कर रहे हों। चाहे अपनी निंदा, या फिर अपने देश, समाज अथवा अपनी जाति की निंदा। दीगर बात है कि वे खुद को निंदनीय हरगिज नहीं मानते।
उग्रनाथ श्रीवास्तव जी किसी के मोहताज नहीं रहते। उनकी अपनी निजी पार्टी है, नाम है “देहाती दल” जिसका नाम ही उन्होंने हाल ही “अल्ट्रा अर्बन नक्सली पार्टी” रख दिया है। इस पार्टी में वे इकलौते सदस्य हैं। इस पार्टी को चुनाव से परहेज है, इसलिए वे चुनाव में वोट डालने ही नहीं जाते।
उन्होंने अपने घर में ही एक डीम्ड यूनिवर्सिटी खोल रखी है, जिसका नाम है बारहखंडी विश्वविद्यालय। लेकिन नाम को लेकर इतना बड़ा विवाद खड़ा हो गया कि इस यूनिवर्सिटी का आजीवन चांन्सलर-सह-वीसी कार्यभार ग्रहण करने तक नहीं आया। अब वह कुलपति अपना मुंह जहां-तहां छिपाए भागा-भागा घूम रहा है। नाम है दिव्यरंजन पाठक। इसी पाठक के चलते ही इस यूनिवर्सिटी का फाटक नहीं खुल रहा है। परेशान-बेहाल हैं उग्रनाथ जी, कि उनको दूसरा कोई सुयोग्य कंडीडेट ही नहीं मिल पा रहा है। कारण है वही महाभारत वाला दुर्योधन का अंधा यानी पिता धृतराष्ट्र का पुत्र-मोह। नतीजा, भले ही महाभारत न शुरू हुआ हो, लेकिन यूनिवर्सिटी की द्रोपदी ने शौचालय में ही खुद को निर्वस्त्र करने का प्राचीन उद्यम स्टार्ट कर दिया है। फर्क सिर्फ इतना ही है कि इसमें लाक्षागृह का क्षेपक नहीं घुस पा रहा है। तो उसमें उग्रनाथ श्रीवास्तव जी क्या कर लें? आप आखिर क्या चाहते है कि उग्रनाथ जी अब अपना खोपड़ा फोड़ लें?
खैर छोड़िए यह सब। यह सुनिए कि अपनी लाला जाति यानी कायस्थ बिरादरी के बारे में उग्रनाथ श्रीवास्तव जी का क्या-क्या मानना है।
बोले:- “यह सब तो सिर्फ शासकों को ही तेल लगाते रहे हैं। हमेशा। जो जीता, उसी का जयजयकारा लगाने लगे। बहुत पुरानी बात तो नहीं जानता, लेकिन मुगलों और नवाबों के वक्त में उनकी खुशामद किया करते थे। हौंक-हौंक कर मांसाहार किया इन कायस्थों ने। अंडा और केक-पेस्ट्री की नई-नई डिशेज़ बनवाईं, चांपीं। कपड़े भी मुसलमानी और अंदाज तथा बोली भी मुसलमानी। लेकिन आजकल तो ये सब मोदी रंग से रंगे हैं। कट्टर हिन्दू। मांसाहार का नाम सुनते ही मुंह बिचकाते हैं, मानों घृणा से उल्टी कर मारेंगे। जय श्रीराम और भारत माता का जय जयकारा लगते हैं। नागपुर और संघ की प्रदक्षिणा करते हैं। बिस्तर से उठते ही सभी देवी देवताओं को प्रणाम, साइन पर दाहिने हाथ के अंगूठे को अपनी छाती पर गड़ाते हुए चिल्लाते हैं कि:- वतसलो मात्र बोमे। स्तुति के बाद राष्ट्रराधन के लिए शाखा में जाने की तैयारी करते है। अब मुझे क्या पता कि वे शाखा वाकई जाते हैं या नहीं। लेकिन न जाने किस-किस गोल-गोल के बारे में चर्चा जरूर करते हैं। बताते हैं कि गुरु जी की सेवा में वे भोपाल से लेकर इंदौर तथा अन्य गुरुओं के पास जायेगे, या जाते रहते हैं। अब मुझे क्या पता कि वे भोपाल में राघव जी के पास जाते हैं या फिर इंदौर में प्रदीप जोशी के पास? ऐसे गुरु लोग अब ट्रेडमार्क तो हैं नहीं कि ताज सिर्फ आगरा में ही मिलेगा। बीकानेरी भुजिया या आगरा वाला पंछी पेठा तो अब देश के हर शहर, गली, मोहल्ले में भी मिल जाता है।
है कि नहीं?”

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