जिला जज से मांग ली गुलाब के पौधों की कीमत

दोलत्ती

: पैैसा मांगने पर खफा जज बोले कि क्‍या हम तुम्‍हारा पैसा मार लेंगे : बांदा की पोस्टिंग में गजब सुख भरे दिन बीते रे भैया : एक जज की आत्‍मकथा- तीन :
राजेंद्र सिंह
बांदा: (गतांक से आगे) प्रथम : एक बार जिला जज गुप्ता साहेब ने मेरा लखनऊ साइड का प्रोग्राम देखा तब मुझे बुलाया और कहा कि वहां से गुलाब के 100 पौध ले आना । पिताजी की सीख थी कि सरकारी धन के संबंध में चैतन्य रहना और एक पैसे की भी गलती नही होनी चाहिए और बिना पैसे लिए कोई सरकारी खरीद न करना। मैं बोला पैसा दिलवा दीजिये ।
जज साहब….क्या तुम्हारा पैसा मार लेंगे ।
मैं…………….. सर्, हमारी सैलरी कम है , टी0ए0 का भुगतान नहीं हुआ है । मेरे पास पैसे नहीं हैं ।
जज साहब….तब तुम रहने दो ।
कटुता की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी थी ।
द्वितीय……मेरा प्रोग्राम झांसी की ओर ट्रेन चेकिंग का बना ।मुझे बुलाया गया और कहा गया कि ताल बीहट से मेरी बेटी दामाद को लेते आना ।मैंने कोर्ट आकर मुख्य टिकट परीक्षक को बुलाया और कहा कि अपना कार्यक्रम संशोधित करो और इलाहाबाद साइड का बनाओ । मैंने झांसी साइड का प्रोग्राम निरस्त किया और संशोधित कार्यक्रम भेज दिया । फिर मेरी पेशी हुई कि कार्यक्रम क्यों बदला ।मैने बताया कि यह मुख्य टिकट परीक्षक द्वारा बनाया जाता है ।उन्होंने बदल दिया । समझ गए कि मैंने ही ये कराया है । कटुता का अगला पड़ाव आ चुका था ।
अब बदले की भावना से मेरे प्रति कार्यवाही शुरू हो चुकी । मेरे दोनों चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को बदल कर हिस्ट्री शीटर को भेज गया जिसमें एक को लेप्रोसी की शिकायत थी । रेलवे स्टाफ को भी बदल गया और जज साहब ने अपना एक खास ऐय्यार , चंद्रकांता संतति वाला, पोस्ट किया जो मेरी हर गतिविधि की सूचना उन्हें देता था । मैं वी0वी0आई0 बन चुका था जिसका मिनट टू मिनट प्रोग्राम हाई कमान को भेजा जा रहा था ।
तृतीय.….सतना में आर0पी0एफ0 ने एक केडिया प्रतिष्ठान पर छापा मारा और कई कुंतल रेलवे का चोरी का लोहा आदि बरामद किया ।तीन लोगों पर 3 आर0पी0यू0पी0एक्ट में केस पंजीकृत हुआ , बाप , बेटा व बहू । मानिकपुर कोर्ट में केस फ़ाइल हुआ । अब मेरे पास इन लोगों को ज़मानत पर छोड़ने की पैरवी शुरू हुई ।पहले 3 वरिष्ठ अधिकारी मेरे घर पर आए और दबाव मेरे ऊपर बनाया की बेल कर देना। मैंने कहा मानिकपुर का केस है , मैंने फ़ाइल देखी नहीं , क्या बताऊँ। जितना चोरी का माल बरामद हुआ था उसमें ज़मानत मैं नहीं देता । वे तीनों चले गए ।
फिर एक दिन कानपुर से पी0के0 सिंह आये और बोले भैय्या केडिया के मामले में मेरे परिचित है , जबरदस्ती मुझे ले आये है , आप को जो मन आये कीजियेगा । हम मना किये थे कि उनके यहां जाना बेकार है । ससुरा रास्ते भर खिलावत पिलावत लाया है । आप जो चाहे करिए ।
फिर एक दो दिन बाद सुबह सुबह घंटी बजी, मैं बोलते हुए गया कि फिर कोई आ गया पैरवी करने और जाकर दरवाजा खोला तो मेरे साले के साले कानपुर से आये थे। मेरा चेहरा देखकर बोले जीजाजी क्या हुआ? मैं बोला कि जिसको देखो केडिया की पैरवी करने चला आ रहा है । खैर वे चाय वगैरह पी खा कर चले गए । बाद में मालूम हुआ कि वे भी सिफारिश करने आये थे लेकिन कर नहीं पाए ।
अब इस दौरान मेर इंचार्ज मुंसिफ था , उसे बदलकर मेरे इंचार्ज सी0जे0एम हो गए ।मुझे बड़ा अजीब सा लगा था । इसी बीच मेरा मानिकपुर कोर्ट का दिन आया, मैं वहाँ कोर्ट करने गया और रात में कुतुब से लौटा। मेरे पड़ोसी मनपोखि लाल शर्मा अपर जिला जज ने सुबह सुबह चाय के लिए बुलाया ।वे अकेले रहते थे, भाभी जी सरप्राइज राउंड पर आया करती थी । चाय पर मुझसे बोले कि कल वो कौन सा केडिया की बेल थी , मेरे यहाँ आई थी अपील में , मैंने बेल दे दी ।मेरी छठी इन्द्रिय जगी । मैं बोला कि वह तो मानिकपुर का केस था और कल मैं मानिकपुर कोर्ट कर रहा था तब बेल बाँदा से कैसे हो गई ।वे बोले कि सी0जे0एम0 ने खारिज की और जब मेरे यहाँ अपील में आई तो मैंने कर दीं । मैंने बाँदा स्टेशन कोर्ट जाकर बेल की फ़ाइल मंगाई । ऍप्लिकेशन पर नोट था ” बाँदा स्टेशन रेलवे कोर्ट में ताला लगा है और रेलवे मजिस्ट्रेट स्टाफ सहित बाहर गए हैं । ” अरे जब कैम्प कोर्ट मानिकपुर में था तब मैं कैसे बाँदा कोर्ट में होता ! बाद में पी0के0 ने बताया कि सी0जे0एम0 से सब बात हो गई थी और केडिया को आपके कैम्प कोर्ट के दिन बुलाया गया था । एक लाख में नीचे से खारिज होकर ऊपर से बेल हो गई । मैंने एक डिटेल रिपोर्ट बना कर हाई कोर्ट को भेज दिया ।। मेरे विरुद्ध एक लॉबी और बन गयी।
ये वो समय था जब अपने को लक्ष्मण और मुझे राम कहने वाले मुंसिफ विवेक दुबे और जिला जज गुप्ताजी के बीच प्रेम पत्रों का आदान प्रदान हो रहा था था । प्रेम पत्र यानी डी0ओ0 । 50 की संख्या पार हो चुकी थी । मुझे भी स्नेह पत्र मिलने शुरू हो गए ।हम लोग आपस मे राय बात करके बहादुरी पूर्वक इन ब्रह्मास्त्रों का उत्तर दे रहे थे थे । अब मैं और विवेक दुबे हिटलिस्ट में आ चुके थे । अन्य अधिकारी हम लोगों से कटे कटे रहने। लगे कि कहीं जज साहब उनको रगड़ न दे । आत्मविश्वास की कमी से ये स्थिती आती है । बाँदा में दो गुट में लोग बंट गए ।एक आध लोग निष्पक्ष भी थे । सिद्दीकी ए0डी0जे0 साहब बढ़िया शख्स थे । जे0बी0सिन्हा साहेब की भोजपुरी बोली मिठास घोलती थी । (क्रमश:)

राजेंद्र सिंह यूपी के उच्‍च न्‍यायिक सेवा के वरिष्‍ठ न्‍यायाधीश रह चुके हैं। वे लखनऊ हाईकोर्ट के महानिबंधक और लखनऊ के जिला एवं सत्र न्‍यायाधीश समेत कई जिलों में प्रमुख पदों पर काम कर चुके हैं। हालांकि अपने दायित्‍वों और अपनी जुनूनी सेवा के दौरान उन्‍हें कई बार वरिष्‍ठ अधिकारियों का कोपभाजन भी बनना पड़ा। इतना ही नहीं, राजेंद्र सिंह को इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रोन्‍नत करने के लिए कोलोजियम में क्लियरेंस भी दी गयी थी। लेकिन विभागीय तानाबाना उनके खिलाफ चला गया। और वे हाईकोर्ट के जज नहीं बन पाये। अपने साथ हुए ऐसे व्‍यवहार से राजेंद्र सिंह का गुस्‍सा अब आत्‍मकथा लिखने के तौर पर फूट पड़ा। उनके इस लेखन को हम धारावाहिक रूप से प्रकाशित करने जा रहे हैं। उनकी इस आत्‍मकथा के आगामी अंक पढ़ने के लिए कृपया क्लिक कीजिए:-
एक जज की आत्‍मकथा

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