: कहां गये वह सूचना-पट्ट कि “सड़क के बीचोंबीच से 220 फीट तक कोई निर्माण करना सख्त मना है” : कानून को ध्वस्त करते हैं, समर्पित होते तो विकास की बलि पर नहीं चढ़ाया जाता लाखों पुराने दरख्तों को :
देवेंद्र नाथ दुबे
लखनऊ : ऐसा लगता है कि हम भेंड़-चाल पर विश्वास करते हैं या फिर सुअर-चाल पर।
बुरा मत मानिये, यह शब्द केवल स्थिति को रेखांकित करने के लिये प्रयोग किये गए हैं। आज मेरे दिमाग में सुअर-चाल की बात आ रही है। यानी एक बात जो समझ में आ जाये, उसी पर सीधे चलते जाना। फिर न दायें देखना, न बायें। और फिर उसमें भेड़-चाल की मानसिकता जोड़ दीजिये तो चित्र पूरा हो जायेगा।
आजकल एक्सप्रेस-वे और सड़कों को चौड़ी करने की सोच चल रही है। उसके मूल में क्या कारण हैं? उसको नजर-अन्दाज भी कर दें तो क्यों यह नहीं सोचा जा रहा है कि इससे समस्या का समाधान नहीं हो रहा है, बल्कि समस्या बढ़ रही है। यदि दो गलियों की सड़क हो और सभी वहां बाईं गली में चलें, तथा जिसे ओवर-टेक करना हो वह दाईं ओर से ओवर-टेक करके फिर अपनी बाई गली में आ जाये, तो जाम लगने और दुर्घटना होने की सम्भावनाएं भी कम होंगीं तथा गति भी बनाई रखी जा सकती है। और वह भी बगैर हॉर्न बजाये।
चौड़ी सड़क पर लोग दायें से भी चलते हैं और बायें से भी। और कुछ तो लगातार अंग्रेजी के अक्षर “यस” की चाल में। अब तो स्वयं को भ्रम होने लगता है कि कानून दाएं से ओवरटेक करने का है या बदल गया है। अब यदि बहुत बढ़िया द्वि-गलीय सड़क बनाने पर दिमाग चले तो उतने ही खर्चे में ज्यादा सड़कें बनाई जा सकती हैं। बगैर लाखों की संख्या में हरे-भरे वृक्ष काटे, तथा बगैर भूमि अधिग्रहण किये। क्योंकि पुराना कानून है कि “इस सड़क के बीच से दोनो ओर २२० फीट तक कोई निर्माण करना मना है”। जरा गौर कीजिए कि पहले ऐसे सूचना-पट्ट सड़क के किनारे हर गांव, कस्बे और शहरी इलाकों में दिखलाई पड़ते थे। अब तो वे सब गायब हो गए हैं, कहींं भूला-बिसरा भी नहींंदीखता। जैसे कानून पालन करने की आदत हम सब मेंं गायब हो चुकी है।
इ-वे तो और मुसीबत हैं। पर उनकी चर्चा फिर कभी।
असली समस्या सड़कों की कम चौड़ाई नहीं, कानून का पालन न करने की हमारी आदत है। यह जरूर है कि भूमि-अधिग्रहण, वृक्ष काटने और बेचने, सड़क के किनारे उद्योगों के नाम पर जमीन देने और सड़क निर्माण में जितनी धन-राशि का आवागमन होगा, वह दो गलियों की स्तरीय सड़क निर्माण में सम्भव नहीं।