माधुरी राय #मीटू कराना “चाहती थी”, मैंने सवाल पूछे तो भाग निकली

बिटिया खबर
: चारा-कंटिया लिये फेसबुक पर छाई हुई हैं खूबसूरत शातिर शिकारी बलाएं : रहने वाली पटना की, रहती हैं लंदन में और दोस्त हैं लखनऊ में : हालांकि नये लोगों के लिए यह मुश्किल है, लेकिन दिल के बजाय अपने दिमाग का भी इस्तेमाल कीजिए :

कुमार सौवीर
लखनऊ : सोशल मीडिया परस्पर वैचारिक आदान-प्रदान का जरिया है। एक ऐसा तंत्र जो जाने-अनजाने लोगों को भी एकसाथ जोड़ता है और अक्सर कई मजबूत रिश्तों का बायस बनता है। इसके बावजूद इसका चरित्र आभासी ही है। हालांकि घनिष्ठता के घेरे में प्रवेश करते ही यह वर्चुअल वर्ल्ड का लबादा उतार भी देता है।
लेकिन सोशल मीडिया का यह जरिया कई गंभीर खतरों और आशंकाओं को जन्म दे देता है। खासतौर पर उनके साथ, जो इससे जुड़े खतरों से अनजान या बचकानी हरकतें कर बैठ हैं। ऐसे लोगों को अपने शिकंजे में घेरने-दबोच के लिए सोशल मीडिया में घुसे धंसे लोग शातिर अंदाज में अपना शिकार फांसते हैं और फिर उसका शिकार करने की साजिशें बुनना शुरू कर देते हैं। सामान्य तौर पर ऐसे लोग स्त्री-वेश में आते हैं। खुद को बेहद आकर्षक, उन्‍मुक्‍त और सेक्‍स-अपील वाली भाव-भंगिमा वाली महिलाओं के तौर पर पेश करते हुए वे फोटोज अपलोड करते हैं। ऐसे लोग अपने बारे में न्यूनतम जानकारी ही देते हैं और उसके बाद अपने शिकार को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजना शुरू कर देते हैं।
सामान्य तौर पर ऐसे स्त्री-वेशी शिकारी अपने शिकार को सीधे-सीधे चारा चुग्गा नहीं भेजते हैं। बल्कि अपने शिकार की फ्रेंड लिस्ट में शामिल लोगों को अपनी फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजते हैं और कई लोगों को अपनी फ्रेंड लिस्ट में शामिल करने के बाद वह अपने शिकार करना चाहते हैं। कोई भी शातिर शिकारी अपने कई मित्रों से घिरे शिकार को आसानी से विश्वास में ले लेता है और उसके बाद वह उसकी मित्रता को स्‍वीकार कर लेता है। फिर इसके बाद घाघ शिकारी धीरे-धीरे अपने शिकार को दबोचना शुरू कर देता है। इसके बाद मैसेंजर पर उससे बातचीत का दौर शुरू हो जाता है। यह बातचीत शुरूआत में औपचारिक, फिर करीबी, फिर घनिष्ठ होते-होते बेहद निजी बातचीत तक उतर जाता है।
मेरे साथ भी ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं। लेकिन चूंकि मैं शुरू से ही ऐसी चालों से भुगत-समझ चुका हूं, इसलिए अब बहुत सतर्क रहता हूं। लेकिन ऐसा नहीं कि मैं ऐसे चक्कर में कभी नहीं फंसा। करीब 9 साल पहले ऐसे ही एक हादसे में ऐसा स्वाद मैं चख चुका हूं। तब मेरे तीन मित्रों ने मुझे बेहद सक्रियता से आगे बढ़कर मामला निपटाया था, जिनमें से एक थी गुड़गांव की प्रिया भाटिया, दूसरे गुड़गांव के ही वरिष्‍ठ सक्रिय पत्रकार अनिल आर्य और जोधपुर में फलोदी वाले चार्टर्ड अकाउंटेंट हरीकृष्ण पुरोहित। इन लोगों ने मुझे उन तनाव के क्षणों में पूरा दिलासा दिया और सिखाया कि मुझे ऐसे लोगों से कैसे निपटना चाहिए।
तो कल दोपहर मेरे पास एक निहायत खूबसूरत तस्वीर वाली राय माधुरी की ओर से मित्रता का निवेदन पहुंचा। मेरे कान फिर खड़े हो गए। मैंने तत्काल पूछ लिया कि “आपका परिचय ?” माधुरी का जवाब था कि मैं पटना की रहने वाली हूं और लंदन में पढ़ाई कर रही हूं, वह भी इकोनॉमिक्स सब्‍जेक्‍ट में। लेकिन इसके पहले ही मैं माधुरी राय की वाल को चेक कर चुका था। वहां कोई भी जानकारी नहीं थी। मैंने उसकी मित्र-मंडली को देखा तो उसमें अधिकांश लोग लखनऊ के दिखे थे और उसमें भी ज्यादा लोग पत्रकार क्षेत्र से नहीं था। यह हैरतनाक मामला था।
मामला मुझे साफ लग गया कि यह पूरा मामला मुझे मीटू जैसे किसी मामले में फंसाने की रणनीति के तहत है। यह ईत्‍मीनान होते ही मैंने उससे उसके मैसेंजर से बस यही चंद सवाल पूछे। और जैसा कि मेरी आशंका थी ही, मेरे सवालों से हकबकाये माधुरी राय नाम के व्यक्ति ने मुझे ब्लॉक कर दिया।

हैरत की बात है कि माधुरी राय के मित्रों में लखनऊ के वीरविक्रम बहादुर मिश्र, पत्रकार नावेद शिकोह, जनसत्‍ता डॉट कॉम के अम्‍बरीश कुमार और हाईकोर्ट के वकील अभय कुमार सिंह जैसे लोग मौजूद हैं।
तो दोस्तों ! यह माना कि खूबसूरत, आकर्षक, और अपील करती युवतियों की तस्वीर को देखते ही पुरुष आमतौर गिलौगील यानी फौरन तरबतर होने लगता है। इसलिए वह तत्‍काल भावनाओं में बह जाता है, सपनों में तैरना-उछलना शुरू कर देता है। यह खतरनाक प्रवृत्ति होती है, जिसको अगर तत्‍काल नहीं रोका जाए, तो अनर्थ होने की आशंका बेहिसाब होती है। इसे रोक पाना आम तौर मुमकिन नहीं होता है। लेकिन कम से कम हम इतना तो कर ही सकते हैं कि किसी ऐसी संदिग्ध आईडी से आ रहे प्रस्ताव को ठीक तरीके से खंगालें, जांच लें और एक फ़ीसदी ही सही लेकिन दिल के बजाय अपने दिमाग का भी थोड़ा-सा इस्तेमाल कर लें।
आपकी इज्जत आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। उसे दूसरों के जूतों के तले कुचलवाने से बेहतर होगा कि आप अपनी काल्पनिक यौन-इच्छाओं पर भी अंकुश कर लें।
बाकी आपकी मर्जी। आखिर आपकी किस्‍मत भी तो आपके ही हाथ पर दर्ज कर दी है विधाता ने, जिसे कौन मिटा सकता है।

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