: फ्रेंच विभाग में कथित छेड़खानी पर लखनऊ यूनिवर्सिटी में बौखलाहट, जांच पर जांच के पैंतरे : खुद ही वकील, खुद ही जज बन चौधरी बन चुकी हैं निशी पाण्डेय : विश्वविद्यालय में अब शिक्षा नहीं, बुनी जाती हैं शिक्षकों के चीर-हरण की एकांकी :
कुमार सौवीर
लखनऊ : एक शिक्षक ने अपनी छात्रा को उसकी अभद्रता पर डांटा, तो दूसरी वरिष्ठ शिक्षक ने उसे अपनी खुन्नस निकालने का माध्यम बना लिया। अच्छी खासी सूती चादर थी, उसके सूत निकाल कर उसे टेरीलीन में तब्दील कर डाला। महाभारत के कौरव-पुरूष ने अपनी आंखों पर से पट्टी हटाने के बजाय उल्टे-पुल्टे आदेश जारी कर दिया। नतीजा यह निकला कि पूरी यूनिवर्सिटी में अब शिक्षा-शिक्षण के बजाय अब निजी स्वार्थों के पांसे बिछ चुके हैं और बाजियां लगायी जा रही हैं।
यह मामला है कि लखनऊ विश्वविद्यालय का। दो-टूक बात यह कि यहां की एक छात्रा ने फ्रेंच विभाग के एक प्रोफेसर पर आरोप लगा दिया कि उसके साथ प्रोफेसर ने छेड़खानी की है। जबकि उक्त प्रोफेसर एसपी सिंह का कहना है कि घटना के दिन बैक-पेपर के चलते यूनिवर्सिटी प्रशासन ने अचानक ही फ्रेंच क्लासेस कैंसिल किये जाने का फैसला किया था। यह खबर उन्हें ठीक क्लास शुरू होने के वक्त ही मिली थी। चूंकि उस समय केवल एक ही छात्रा वहां पहुंची थी, तो उन्होंने उस छात्रा से कह दिया कि आज क्लास नहीं होगी। एसपी सिंह बताते हैं कि इसी बात पर वह छात्रा भड़क गयी। उसने अभद्रता के साथ पूछा कि जब क्लास नहीं चलनी थी, तो मुझे क्यों बुलाया। इस पर प्रो सिंह ने उसे डपटते हुए आइंदा बदतमीजी मत करना।
बात इसी पर भड़क गयी वह छात्रा। उस छात्रा ने अपने साथियों के साथ प्रॉक्टर प्रो निशी पाण्डेय को इस मामले की खबर मिली तो उन्होंने उन बच्ची को बुलाया और अपने आफिस में पूरी दरख्वास्त बनवायी। इसी बीच पत्रकारों को बुला लिया कर मामले में पेट्रोल डालने की कवायद भी शुरू की गयी। उसके बाद उस छात्रा समेत सात पत्रकारों के जुलूस के साथ निशी पाण्डेय ने उस जुलूस का नेतृत्व किया और सीधे कुलपति प्रो एसबी निमसे के पास पहुंचीं। आनन-फानन कुलपति ने इस मामले की जांच का आदेश दे दिया। जांच कमेटी में निशी पाण्डेय समेत तीन वरिष्ठ शिक्षकों को सदस्य बनाया गया। निशी पांडेय इस जांच कमेटी की अध्यक्ष बनायी गयीं।
बस यहीं से विवादों ने जन्म लेना शुरू कर लिया। फ्रेंच भाषा भी उसी विभाग से सम्बद्ध है, जिसकी तीन बरसों तक निशी पाण्डेय विभागाध्यक्ष रही हैं। वैसे भी वे उस विभाग में वरिष्ठतम शिक्षक हैं। ऐसे में उन्हें इस जांच कमेटी में शामिल करना साजिश का अंग माना जा सकता है। नैतिकता का तकाजा भी यही होता है कि अपने विभाग के किसी मामले में सम्बन्धित शिक्षक पर दायर किसी आरोप की जांच में निशी पाण्डेय को शामिल नहीं किया जा सकता है। एक वरिष्ठ शिक्षक इस बारे में तर्क देते हैं कि एक ही विभाग का मामला हमेशा दूसरे विभाग के शिक्षकों के पास जांच के लिए भेजना चाहिए। वजह यह कि एक ही विभाग के शिक्षक को जांच अधिकारी बनाये जाने से वह पक्षपात कर सकता है, इसकी गुंजाइश सर्वाधिक होती है कि यह तो समर्थन करेगा या फिर विरोध।
लेकिन यह तनिक भी समझ का प्रदर्शन लखनऊ विश्वविद्यालय ने नहीं किया। नतीजा यह हुआ कि विश्वविद्यालय में फिर एक नया तांडव की आशंकाओं ने सिर उठा लिया।